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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रकामी अकिंचनक अकामी-वि० (सं०७-+-काम) बिना कामना | अकाल पुष्प-संज्ञा, यौ० पु. (सं०' का, कामना-रहित, निस्पृह, काम-रहित, अकाल कुसुम । जितेन्द्रिय, इच्छा-विहीन, क्रि० वि० --(सं० अकाल मूर्ति-संज्ञा, यौ० पु. (सं.) नित्य अकर्म ) व्यर्थ, बेकाम, निष्काम निकम्मा, या अविनाशी पुरुष, ईश्वर।। निकाम (दे०) निष्प्रयोजन । अकालमृत्यु-संज्ञा, यौ० पु. (सं० अकाम---वि० (हिं०, सं० ) जितेन्द्रिय (हिं० स्त्री० ) असमय की मृत्यु, असाम बिना काम । यिक मृत्यु, अपक्क मरण । प्रकाय-वि० (सं० अ+काय ) काया या अकालवृष्टि-- संज्ञा, यौ. स्त्री. (सं० देह से रहित, शरीर न धारण करने वाला, कुसमय की वर्षा । जन्म न लेने वाला, निराकार, ईश्वर, काम अकालिक-वि. ( सं० अकाल+इक ) देव, अनंग, अदेह । असामयिक, बेमौका। प्रकार-संज्ञा, पु. ( सं० ) 'अ' वर्ण, (सं० आकार ) स्वरूप, प्राकृति, सूरत-शक्ल, अकाली-संज्ञा, पु० (सं० अकाल+ई-प्रत्य. (सं० अ+कार्य ) (हिं० अ--कार-काम) हिं० ) नानकपंथी साधू जो एक चक्र के साथ बेकार, बेकाम । सिर पर काली पगड़ी बाँधते हैं। प्रकारज -संज्ञा, पु. (सं० अ-कार्य) अकाव:--संज्ञा पु० (दे०) श्राक, मदार कार्य की हानि, हानि, अकाज, हर्ज, “पापु अकौवा (ग्रा०)। अकारज अापनों, करत कुसंगति साथ।" | अकास-संज्ञा, · पु० (सं० आकाश ) अकारण- वि० (सं० अ+कारण ) बिना आसमान, शून्य, “ ढील देत महि गिरि कारण, जिसकी उत्पत्ति का कोई कारण न परत, बँचत चढ़त अकास' । तु. हो, हेतु-रहित, स्वयंभू, क्रि० वि०' बेसबब, अकासदिया-संज्ञा, पु० यौ० ( सं० व्यर्थ, बिना कारण के। आकाश-दीपक ) कार्तिक में जो दीपक अकारन-(हिं०, दे०) बिना कारण । बाँस में बाँधकर आकाश में लटकाया अकारथ ---नि० वि० (सं० अकार्यार्थ ) जाता है। बेकाम, निष्फल, निष्प्रयोजन, व्यर्थ, लाभ अकामबानी-- संज्ञा, यौ० स्त्री. ( सं० रहित, फ़जूल " जन्म अकारथ जात "। आकाशवाणी ) देवबाणी, गगन-गिरा। अकाल-संज्ञा, पु. ( सं० ) अनुपयुक्त समय, अनवसर, “बिनही ऊगे ससि समुझि, अकासबेल-संज्ञा, यौ० स्त्री० (सं० प्रकाशदैहै अरघ अकाल"। वि०-कुसमय, दुर्भिक्ष, बेलि ) अमरबेल, अँवरबेल, आकाश-बौर । कासी -- संज्ञा, स्त्री० (सं० आकाशोय ) दुष्काल, मँहगी, घाटा, कमी, “ कलि बार आकाश से सम्बन्ध रखने वाली, चील, हि बार अकाल परै"-रामा० | ताड़ी-“बाँए अकासी दौरी आई" प० । अकालकुसुम-संज्ञा, यौ० पु. ( सं० अकाल + कुसुम ) बे ऋतु या बिना ठीक | A अकिंचन-वि० (सं०) निर्धन, कंगाल, समय के फूला हुआ फूल, अशुभ, बेसमय जो कुछ न हो, दीन, दुखी, कर्म-शून्य, की चीज़ । संज्ञा, पु०-दरिद्र पुरुष । अकाल जलद-संज्ञा, यौ० पु० (सं० ) अकिंचनता-संज्ञा, भा० स्त्री० (सं०) असमय के बादल । दरिद्रता, दीनता, निर्धनता।। अकाल पुरुष--संज्ञा, यौ० पु. (सं०) अकिंचनक-वि० पु. (सं० ) तुच्छ, प्रससिक्खों के ग्रन्थों में ईश्वर का एक नाम। | मर्थ, अकिंचित्कर। For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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