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उरगिनी उरगिनी*—संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० उरगी) रूमाल । यो० ( उर-+ माल ) हृदय पर पड़ी सर्पिणी, नागिन ।
हुई माला। उरज-उरजात—ज्ञा, पु. (सं० उरोज) उरमी—संज्ञा, स्त्री० (दे०) पीड़ा, दुःख । उरोज, कुच, स्तन । " ये नैना धैना करें, तू तौ पट उरमी रहित"-सुन्द० । उरज उमैठे जाँहि "। रही।
उररी-अव्य० (सं० ) स्वीकार । वि. उरझना* —अ० कि० (दे०) उलझना, उररीकृत-स्वीकृत। (हि०) फँसना, लिपटना, लिप्त होना, उरला—वि० (दे०) (सं० प्रापर, अवर - अटकना, श्रासक्त होना । " जिन महँ उरझत | हि० ला–प्रत्य०) पिछला विरला, निराला। विविधु-विमाना"-रामा० ।
उरविज*-संज्ञा, पु० दे० (सं० उर्वी+ उरझाना-स० कि० दे० (उरझना का स० ज= उत्पन्न ) भौम, मंगल । रूप ) उलझाना, फँसाना, अटकाना, लिप्त उरस-वि० (सं० कुरस) फीका, नीरस । संज्ञा, रखना । अ० क्रि०-फंसना । 'उर उर- पु. (सं० उरस् ) छाती, वक्षःस्थल, हृदय । माहीं''- रामा०।
उरसना-अ. क्रि० दे० (हि० उड़सना) उरझर-संज्ञा, पु० (दे० ) झकोरा, "पानी ऊपर नीचे करना, उथल-पुथल वरना, को सो घेर किधौं, पौन उरझरे किधौं'- चलाना । “स्वास उदर उरसति यौं मानौ सुन्द।
दुग्ध-सिंधु छवि पावै"-सू० । उरण-संज्ञा, पु० (सं.) भेड़ा, मेदा, यूरेनस | उरसिज-संज्ञा, पु० (सं० ) स्तन, उरोज । नामक ग्रह ।
उरस्त्राण-संज्ञा, पु० यौ० (..) कवच, उरद—संज्ञा, पु० दे० (सं० ऋद्ध, प्रा०, उद्ध) बख़्तर । एक प्रकार का पौधा जिसके दानों की दाल उरहन*— ( उरहना ) संज्ञा, पु. ( दे.) होती है, माष।
उलाहना, उराहनो, पोरहन (दे०)। उरध*-कि० वि० दे० ( सं० ऊर्ध्व ) ऊपर, उरा—संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० उर्वी) पृथ्वी। ऊर्ध्व । ऊरध (दे०)।
उराना-( उराजाना ) अ. वि.० (दे०) उरधारना--स० कि० (दे०) उधेड़ना, चुकना, ख़तम होना, समाप्त । " भूरि भरे फैलाना, बिखराना । यौ० (उर+ धारना) हिय के हुलास न उरात है "- ज० श०। हृदय में रखना।
उरारा--वि० दे० (सं० उरु) विस्तृत, उरबसी-संज्ञा, स्त्री० दे० ( सं० उर्वशी) विशाल, बड़ा। एक अप्सरा, एक भूषण । यौ० ( उर -+ बसी उराव( उराय)—संज्ञा, पु० दे० (सं. उरस् -- हि० ) दिल में बसी हुई। " तू मोहन + प्राव -- प्रत्य०) चाव, उमंग, हौसला, के उर बसी, है उरबसी समान"-बि० । उत्साह, उराउ, उराऊ, चाह, खुशी । 'तुलसी उरबी*—संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० उर्वी) उराव होत राम को स्वभाव सुनि"- कवि०। पृथ्वी, धरती।
उरहना-संज्ञा, पु. (दे०) उलाहना। उरमना*—अ० वि० दे० (सं० अवलंबन, | उरिण (ऊरिन) वि० (दे०) उऋण,
प्रा० अोलंबन ) लटकना । " तहँ कलसन ऋण से मुक्त होना। पै उरमति सुठार" - राम ।।
उरू-वि० सं०) विस्तीर्ण, विशाल, बड़ा, । उरमाना*---स० कि० दे० (हि. उरमना) संज्ञा, पु० (सं० जरु) जाँघ, जंघा । यौ. लटकाना।
उरुपथ–राजमार्ग, उरुव्यचा- संज्ञा, पु. उरमाल*---संज्ञा, पु० दे० (फा० रुमाल )। (सं० ) राक्षस ।
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