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उपायन
३४२
उपेक्ष्य
उपायन-संज्ञा, पु. (सं० उप + यप्+ भक्ति। वि० स० (दे० ) उपासना या अनट ) भेंट, उपहार, सौगात, नज़र, व्रत | पूजा करना, सेवा करना, भजन करना, की प्रतिष्ठा, समीप-गमन । “ब० व० आराधना करना। “संध्याहि उपासत ( उपाय ) उपायों या प्रयत्नों। ....तोरत भूमिदेव" -के० । अ० कि० दे० (सं० फूल उपायन मैं "-- रघु०।
उपवास ) उपवास करना, व्रत रहना, निराहार उपाया-क्रि० स० ( दे० ) उपराग (सं०) या अनशन रहना। उपायी-वि० (सं० ) उपाय करने वाला, | उपासनीय-वि० (सं०) सेवा करने योग्य, उपार्जक, खोजी।
सेव्य, अाराधनीय, पूजनीय। स्त्री० उपारना8 स० क्रि० दे० (स० उत्पाटना)। उपासनीया। उखाड़ना, " खायेसि फल अरु टिप | उपासित-वि० (सं० उप + आस-+ क्त ) उपारे "-रामा० ।
श्राराधित, सेवित, पूजित । स्त्री० उपासिता। उपार्जन--संज्ञा, पु० (सं० उप+ अर्ज+ । उपासी-वि० (सं० उपासिन् ) उपासना अनट ) लाभ करना, कमाना, पैदा करना, करने वाला. सेवक, भक्त, पाराधक । “ हम अर्जन, संचय, एकत्र करना । वि० उपार्ज- | व्रजवासी, प्रेम-पद्धति-उपासी ऊधौ "नीय प्राप्त करने योग्य ।
रत्नाकर । संज्ञा,स्त्री० (दे०) उपासना, पूजा, उपार्जित-वि० (सं० उप-+-अर्ज+क्त) | स्तुति “संध्यासी तिहुँ लोक के किहिनि संचित, कमाया हुआ, प्राप्त किया हुआ, | उपासी श्रानि"-के० । स्त्री. वि. दे. संगृहीत, एकत्रित।
( उपवास ) कृतोपवास, निराहार व्रत करने उपालम्भ--संज्ञा,पु० (सं० उप+या-- लभ वाली । पु० वि० (दे० ) उपासा।
+अल्) उलाहना, उराहनी (ब्र.) उपास्य-वि० (सं० उप-+पास+य ) शिकायत, निंदा । वि० उपाल-ध-। उपासना या पूजा के योग्य, आराध्य, सेव्य, उपालभन-संज्ञा पु० (सं०) उलाहना पूजनीय।
देना, निंदा करना । वि० उपालंभनीय- उपेन्द्र--संज्ञा० पु. (सं० ) इन्द्र के छोटे उलाहने के योग्य । वि० उपालंभित, भाई, वामन या विष्णु। उपालंभ्य।
उपेन्द्रवज्रा-संज्ञा, स्त्री० (सं० ) ग्यारह उपाव--संज्ञा, पु० (दे० ) उपाय (सं०) वर्णो का एक वृत्त " .. .. उपेन्द्रवज्रा उपाउ (दे०)।
__ जतजस्तोतो गौ । उपास-संज्ञा, पु० दे० (सं० उपवास ) उपेक्षण-संज्ञा, पु. (सं० ) विरक्त होना, अनशन, लंघन । संज्ञा, पु० दे० (सं० उपा- उदालीन होना, किनारा खींचना घृणा स्य ) इष्टदेव, उपासना के योग्य । करना, तिरस्कार करना। वि० उपेक्षणीय उपासक-वि० (सं० उप-+-पास - क् ) | --उदासीन होने योग्य ।
पूजा या आराधना करने वाला, भक्त। उपेक्षा--संज्ञा, स्रो० (सं० उप- ईन् । ड्) उपासन-संज्ञा, पु० (सं० उप- प्रास+ अस्वीकार, त्याग, उदासीनता, लापरवाही, अनट ) शुश्रूषा, सेवा, श्राराधना, धनुर्विद्या, विरक्ति, घृणा, तिरस्कार। श्रानुगत्य ।
उपेक्षित-वि. ( सं० उप+ईक्ष + क्त) उपासना-संज्ञा, स्त्री० (सं० उप- आस-- जिसकी अपेक्षा की गई हो, तिरस्कृत,
अन्- पा ) पास बैठने की क्रिया, आराधना, निदित, त्यक्त । स्त्री० उपेक्षिता । पूजा, टहल परिचर्या, सेवा, सुश्रूषा, उपेक्ष्य-वि० (सं.) उपेक्षा के योग्य ।
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