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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - उतरना ३१२ उतला जोड़ का नीचे ( या अपने स्थान से ) हट उतरवाना-स० क्रि० (हि. उत्तरना ) उत. जाना, काँति या स्वर का फीका पड़ना, घट रने का काम कराना। जाना. उग्र प्रभाव या उद्वेग का दूर होना, उतरहा-वि० ( दे०) उत्तर दिशा के देश घट जाना, या कम होना ( नदी उतर गई) का निवासी। बाढ़ का घट जाना, वर्ष, मास या नक्षत्र उतरा-संज्ञा, स्त्री० (दे०) उत्तराषाढ़ विशेष का समाप्त होना, थोड़े थोड़े अंश नक्षत्र का समय, उत्तरा नक्षत्र । में बैठ कर किये जाने वाले काम का पूर्ण . उतराई-संज्ञा, स्त्री० ( हि० उतरना ) उपर होना, ( मोज़ा उतारना ) पहिनने का से नीचे आने की क्रिया, नदी के पार उतरने विलोम, शरीर से वस्त्रादि का पृथक करना. का कर या महसूल, नीचे की भार ढालू ( वस्त्र उतारना) खराद या साँचे पर भूमि, ढाल ( नीचाई ) । “ पद पद्म धोइ चढ़ाई जाकर बनाई जाने वाली वस्तु का चढाइ नाव न नाथ उतराई चहौं'-तु.। तैय्यार होना, भाव का कम होना, डेरा, उतराना--प्र. कि० दे० . ( सं० उत्तरण ) करना, बसना, टिकना, ठहरना , नकल होना, ___ पानी के ऊपर तैरना, पानी की सतह पर खिंचना, अकित करना या होना, बच्चों श्राना उफान या उबाल आना, देख पड़ना, का मरना, भर आना, संचारित होना प्रगट होना, सर्वत्र दिखाई पड़ना । अ० क्रि० ( थन में दूध उतरना ) भभके में खिंचकर दे० ( हि० इतराना ) घमंड करना । तैयार होना, सफाई के साथ करना, उतरायत वि० दे० (हि. उतरना) उचड़ना, उघड़ना, धारण की हु वस्तु का उतारा हुआ, काम में लाया हुआ छोड़ा अलग होना, तौल में पूरा ठहरना किसी हुआ, त्यक्त । बाजे की कसन का ढीला होना. जिपसे । उनगरा-- वि० स्त्री. द. (हि. उत्तर ) उसका स्वर विकृत हो जाता है, जन्म लेना, उत्तरीय, उत्तर दिशा की ( वायु ) उतरहरी, अवतार लेना, श्रादर या शकुन के लिये उतराही ( दे० ), "जो उतरा उतगरी किसी वस्तु का शरीर या मिर के चारों ओर : पावै अोरी का पानी बड़ेरी धावै " .वाघ । घुमाना, वसूल होना, एकत्रित होना । स० उतराव-- संज्ञा, पु० । दे. ) उतार ढाल, क्रि०-पार करना, ( सं० उत्तरण ) नदो, नाले ढालू भूमि । या पुल के एक ओर से दूसरी ओर जाना, . उनरावना-स. कि. (दे० ) किसी की कम होना, बंद होना, अप्रिय होना। सहायता से नीचे लाना, उतारने को प्रेरित मु०-उतर कर-निम्न श्चेणी का, घट कर, या प्रवृत्त करना । नीचे दरजे का, आगे या बाद का, (चित्त उतराहा-क्रि० वि०, वि० (दे० ) उत्तरीय ध्यान से ) उतरना-विस्मृत होना, भूल (सं.)। स्त्री० उतराही, उत्तर की ओर की। जाना, नीचा अँचना, अप्रिय लगना। वि० उत्तर की वायु--" उठी वायु आँधी (चेहरा ) उतरना-मुख का मलिन उतराही" प० । होना, रंग फीका पड़ना, मुख पर उदाली उतराहा - कि० वि० द० (सं. उत्तरछा जाना, खेद, सोच या शोक होना, हाँ-प्रत्य० ) उत्तर की ओर । ( अांखों में खून ) उतरना--क्रोध श्रा उरिन-- वि० दे० (हि. उऋण ) ऋणजाना । पानी उतरना--( मेाती का) आब मुक्त, उऋण । या कांति जाना. ( अंड कोश में ) अंड-वृद्धि उल्ला -०ि दे० ( हि० उतावला ) व्यस्त, का राग होना। प्रातुर, न्यग्र, उतावला । संज्ञा स्त्री. उसाता। For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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