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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org उडुपथ उडुपथ – संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) आकाश, गगन | उडुराज - संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) चंद्रमा | उडुस - संज्ञा, पु० दे० (सं० उद्देश ) खटमल । उड़ेरना ( उडेनना ) - स० क्रि० (दे० ) ढालना, डालना, गिराना, उलझना, रिक्त या खाली करना । ३११ -- प० । उड़ैनी – संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि० उड़ना ) जुगुनू " साम रैन जनु चलै उड़नी ' उडोहाँ—वि० दे० (हि० उड़ना + श्रौंहाँप्रत्य० ) उड़ने वाला । उड्डयन – संज्ञा, पु० ( सं० ) उड़ना, उड्डीन (सं० ) उड़ना | उड्डीयमान- त्रि० (सं० उड्डीयमत् ) उड़ने वाला, उड़ता हुआ, श्राकाशगामी । स्त्री० उड़ीयमती । उढ़कना - अ० क्रि० दे० ( हि० अड़ना ) 39 ना. ठोकर खाना, रुकना, ठहरना, सहारा लेना, टेक लगाना, भिड़ाना, औंधाना । उदकाना - स० क्रि० ( हि० उढकना ) किसी के सहारे खड़ा करना, भिड़ाना, टेक देकर रखना, श्राश्रित करना । उड़ना - स० क्रि० दे० ( १ ) बाहर निकालना " " रोवत जीभ उ - सू० । संज्ञा, पु० (दे० ) कपड़ा लत्ता श्रोदना ( हि० ) । उदरना - स० क्रि० दे० (सं० ऊड़ा ) चिवाहिता स्त्री का पर पुरुष के साथ चला जाना । घाघ कहै ये तीनौ भकुवा, उदरि जाय श्री रो —घाघ । 64 उदगी - संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० उढ़ा ) जो स्त्री विवाहिता न हो वरन दूसरे पुरुष की हो और दूसरे के साथ स्त्री होकर रहने लगे, उप पत्नी, रखैली, रखुई (दे०) सुरैतिन । प्राढरी (दे० ) । पु० उदरा, प्रांढरा (दे० ) । उढ़ाना - स० किं० (दे० ) थोहाना ( हि० ) ढाँकना, श्राच्छादित करना, कपड़े से ढाकना । उदारना - स० क्रि० ( हि० उढ़रना ) दूसरे की स्त्री को दूसरे के साथ भगाना, उदरने के लिये प्रवृत्त करना, परस्त्री को ले भागना । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उतरना स्त्री० (दे० ) उदावनी- उदौनी-संज्ञा, श्रोदनी ( हि० ) चादर | उतंक -संज्ञा, पु० दे० (सं० उत्तंक ) वेदमुनि के शिष्य एक ऋषि गौतम-शिष्य एक ऋषि । वि० दे० (सं० उत्तुंग ) ऊँचा । उतंग - वि० दे० (सं० उत्तुंग ) ऊंचा, बलंद, श्रेष्ठ, उच्च, ताको तदगुन कहत हैं. भूषन 6. बुद्धि उत्तंग - भू० । श्रोछा. ऊंचा ( कपड़ा) उत - वि० दे० (सं० उत्पन्न ) उत्पन्न, पैदा, वयः प्राप्त, जवान | 68 उत उत् - उप० (सं० ) उद्, एक उपसर्ग | उत४ – क्रि० वि० दे० ( सं० उत्तर ) वहीं, उधर, उस ओर, उत्त, उतै (दे० ) रु हैं पितु-मातुल, हमारे दोउ" श्र०ब० । उतथ्य -संज्ञा, पु० ( सं० उतथ् + य ) मुनि विशेष अंगिरा - पुत्र, वृहस्पति का ज्येष्ट सहोदर । संज्ञा, पु० यौ० (सं०) उतथ्यानुज- बृहस्पति । उतन - कि० वि० दे० ( हि० उ + तनु ) उस तरफ़, उस ओर । उनना - वि० ( हि० उस + तन = प्रत्य—सं० तावान् से उस मात्रा का, उस क़दर । उतपात - संज्ञा, पु० दे० ( सं उत्पात) उपद्रव, अशान्ति, आफ़त, शरारत । For Private and Personal Use Only उतपानना * - स० क्रि० (सं० उत्पन्न ) उत्पन्न करना, उपजाना, पैदा करना । श्र० क्रि० उत्पन्न होना, पैदा होना । उनमंगळ संज्ञा, पु० यौ० दे० (सं० उत्तम + अंग ) सिर । C4 उतर - संज्ञा, पु० दे० ( उत्तर ) जवाब, बदला, दक्षिण के सामने की दिशा, उतर देत छisहु बिन मारे " - रामा० । उतरन - संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि० उतरना ) पहिने हुए पुराने कपड़े, उतारा हुआ वस्त्र | संज्ञा, पु० उतरने का काम । उतरना - अ० क्रि० दे० (सं० अवतरण ) ऊंचे स्थान से सँभल कर नीचे थाना, ढलना, अवनति पर होना, ऊपर से नीचे आना, देह की किसी हड्डी या उसके किसी
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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