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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उज्यास ३०७ उठना उज्यास-संज्ञा, पु० (दे० उजास ) उजाला। उझाँकना--स. क्रि० (दे०) झाँकना, उपर उज्वल-वि० (सं०) दीप्तिमान, प्रकाशवान्, । से झाँकना, ऊपर सिर उठाकर देखना। श्वेत, शुभ्र, स्वच्छ, निर्मल, सफेद, बेदाग़। उउझलित-वि० (दे०) छोड़ा हुमा, उज्वलता-संज्ञा, स्त्री० (सं० ) कांति, दीप्ति, | डाला हुआ। चमक, सफ़ेदी, स्वच्छता, निर्मलता। उट-संज्ञा, पु. ( सं० ) तृण, तिनका, उज्वलन-संज्ञा, पु० (सं०) प्रकाश, दीप्ति, उर्ण, पत्ता । जलना, स्वच्छ करने का कार्य, ज्वाला का उटंगन संज्ञा, पु० दे० (सं० उट = घास ) उर्ध्वगमन । वि० उज्वलनीय, उज्वलिन। एक प्रकार की घास जिसका साग ग्लाया उज्वला-संज्ञा, स्त्री. (सं०) बारह अक्षरों जाता है, चौपतिया, गुवा, सुसना । का एक वृत्त। वि० स्त्री० -निर्मला, शुभ्रा। उटंग-वि० दे० (सं० उत्तुंग) ऊँचा, श्रोचा उज्यालन-स० क्रि० (दे०) जलाना, छोटा कपड़ा। प्रदीप्त करना । " उज्यालि लाखन दीपिका | उटकना -स० क्रि० दे० (सं० उत्कलन ) निज नयन सब कहँ देखि'-रघु०। अनुमान करना, अटकल लगाना, अंदाज़ उज भण-संज्ञा, पु० (सं०) विकास, करना। प्रस्फुटन, अन्वेषण। उटक्करलस-वि० (दे० ) उतावला, उज भित-वि० (सं० उत्+जम्भ+क्त) अविवेक। प्रफुल्ल, विकसित, प्रस्फुटित । उटज-संज्ञा, पु० (सं० ) कुटिया, झोपड़ी, उझकना - अ० क्रि० दे० (हि० उचकना)। पर्ण-कुटी, पत्रों से बना छोटा घर । उचकना, उछलना, कूदना. ऊपर उठना, । उठेंकन-वि० (सं० ) संकेत, इंगित, प्रसंग, उभड़ना, उदड़ना ताकने या देखने के लिये प्रस्ताव । वि० --उटुंकित-सांकेतित, ऊपर उठना या सिर उठाना, चौंकना। संज्ञा, चिंहित, उल्लेखित । पु. उझकन-पू० का० कि. उझकि । उट्री-संज्ञा, स्त्री. (दे०) खेल या लाग. "उझकि उझकि पद कंजनि के पंजनिपै"- डांट में बुरी तरह हार मानना, (हि. उठना) ऊ श०। क्रि० अ० सा० भू० स्त्रो० उठी, पु० उहा। उजपना-अ. क्रि० ( दे० ) खुलना उठंगन-संज्ञा, पु० दे० (सं० उत्थ+अंग ) ( विलोम-झपना ) " बरुनी मैं फिरै न झपैं। आड़. टेक, प्राधार, प्राश्रय ।। उझ पलमैन सनाइबो जानती हैं"- | उठंगना-प्र० कि० दे० (सं० उत्थ+अंग) हरि० । टेक लगाना, लेटना, पड़ रहना, सहारा लेना। उझरना-प्र० क्रि० दे० (सं० उत्सरण, प्रा. उउँगाना-स० कि० दे० ( हि० उठेगना) उच्छरण ) ऊपर की ओर उठना, उचकना।। खड़ा करने में किसी वस्तु को लगाना, उमलना-स० क्रि० दे० (सं० उज्झरण) भिड़ाना, बंद करना ( किवाड़)। किसी द्रव पदार्थ को ऊपर से नीचे गिराना, | उठना-प्र. क्रि० दे० (सं० उत्थान ) किसी ढालना, उँडेलना, रिक्त या खाली करना। वस्तु के विस्तार के पहिले की अपेक्षा अधिक अ० क्रि० (दे०) उमड़ना, बढ़ना, उझि- ऊँचाई तक पहुँचने की स्थिति या दशा, लना (दे० ), "...मनु सावन की सरिता ऊँचा होना खड़ी स्थिति में होना हटना, उझली"-सुन०। जगना, उदय होना, ऊँचाई तक ऊपर बढ़ना उमिला संज्ञा, स्त्री. (प्रान्ती०) उबाली या चढ़ना - जैसे लहर उठना ऊपर जाना, हुई सरसों जो उबटन के काम में आती है। या चढ़ना, आकाश में छा जाना, कूदना, For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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