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उज्यास ३०७
उठना उज्यास-संज्ञा, पु० (दे० उजास ) उजाला। उझाँकना--स. क्रि० (दे०) झाँकना, उपर उज्वल-वि० (सं०) दीप्तिमान, प्रकाशवान्, । से झाँकना, ऊपर सिर उठाकर देखना।
श्वेत, शुभ्र, स्वच्छ, निर्मल, सफेद, बेदाग़। उउझलित-वि० (दे०) छोड़ा हुमा, उज्वलता-संज्ञा, स्त्री० (सं० ) कांति, दीप्ति, | डाला हुआ।
चमक, सफ़ेदी, स्वच्छता, निर्मलता। उट-संज्ञा, पु. ( सं० ) तृण, तिनका, उज्वलन-संज्ञा, पु० (सं०) प्रकाश, दीप्ति, उर्ण, पत्ता । जलना, स्वच्छ करने का कार्य, ज्वाला का उटंगन संज्ञा, पु० दे० (सं० उट = घास ) उर्ध्वगमन । वि० उज्वलनीय, उज्वलिन। एक प्रकार की घास जिसका साग ग्लाया उज्वला-संज्ञा, स्त्री. (सं०) बारह अक्षरों जाता है, चौपतिया, गुवा, सुसना ।
का एक वृत्त। वि० स्त्री० -निर्मला, शुभ्रा। उटंग-वि० दे० (सं० उत्तुंग) ऊँचा, श्रोचा उज्यालन-स० क्रि० (दे०) जलाना, छोटा कपड़ा। प्रदीप्त करना । " उज्यालि लाखन दीपिका | उटकना -स० क्रि० दे० (सं० उत्कलन ) निज नयन सब कहँ देखि'-रघु०। अनुमान करना, अटकल लगाना, अंदाज़ उज भण-संज्ञा, पु० (सं०) विकास, करना। प्रस्फुटन, अन्वेषण।
उटक्करलस-वि० (दे० ) उतावला, उज भित-वि० (सं० उत्+जम्भ+क्त) अविवेक।
प्रफुल्ल, विकसित, प्रस्फुटित । उटज-संज्ञा, पु० (सं० ) कुटिया, झोपड़ी, उझकना - अ० क्रि० दे० (हि० उचकना)। पर्ण-कुटी, पत्रों से बना छोटा घर । उचकना, उछलना, कूदना. ऊपर उठना, । उठेंकन-वि० (सं० ) संकेत, इंगित, प्रसंग, उभड़ना, उदड़ना ताकने या देखने के लिये प्रस्ताव । वि० --उटुंकित-सांकेतित, ऊपर उठना या सिर उठाना, चौंकना। संज्ञा, चिंहित, उल्लेखित । पु. उझकन-पू० का० कि. उझकि । उट्री-संज्ञा, स्त्री. (दे०) खेल या लाग. "उझकि उझकि पद कंजनि के पंजनिपै"- डांट में बुरी तरह हार मानना, (हि. उठना) ऊ श०।
क्रि० अ० सा० भू० स्त्रो० उठी, पु० उहा। उजपना-अ. क्रि० ( दे० ) खुलना उठंगन-संज्ञा, पु० दे० (सं० उत्थ+अंग ) ( विलोम-झपना ) " बरुनी मैं फिरै न झपैं। आड़. टेक, प्राधार, प्राश्रय ।। उझ पलमैन सनाइबो जानती हैं"- | उठंगना-प्र० कि० दे० (सं० उत्थ+अंग) हरि० ।
टेक लगाना, लेटना, पड़ रहना, सहारा लेना। उझरना-प्र० क्रि० दे० (सं० उत्सरण, प्रा. उउँगाना-स० कि० दे० ( हि० उठेगना)
उच्छरण ) ऊपर की ओर उठना, उचकना।। खड़ा करने में किसी वस्तु को लगाना, उमलना-स० क्रि० दे० (सं० उज्झरण) भिड़ाना, बंद करना ( किवाड़)। किसी द्रव पदार्थ को ऊपर से नीचे गिराना, | उठना-प्र. क्रि० दे० (सं० उत्थान ) किसी ढालना, उँडेलना, रिक्त या खाली करना। वस्तु के विस्तार के पहिले की अपेक्षा अधिक अ० क्रि० (दे०) उमड़ना, बढ़ना, उझि- ऊँचाई तक पहुँचने की स्थिति या दशा, लना (दे० ), "...मनु सावन की सरिता ऊँचा होना खड़ी स्थिति में होना हटना, उझली"-सुन०।
जगना, उदय होना, ऊँचाई तक ऊपर बढ़ना उमिला संज्ञा, स्त्री. (प्रान्ती०) उबाली या चढ़ना - जैसे लहर उठना ऊपर जाना, हुई सरसों जो उबटन के काम में आती है। या चढ़ना, आकाश में छा जाना, कूदना,
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