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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३०२ उचाटना उच्चाटना - स०क्रि० दे० (सं० उच्चाटन ) उच्चाटन करना, जी हटाना, विरक्त या उदासीन करना, " लोग उचाटे श्रमरपति, कुटिल कुअवसर पाइ - रामा० । प्रे० कि० "9 उचटवाना-उचाट कराना । उचाटी - संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० उच्चाट ) उदासीनता, अनमनापन, विरक्ति, उदासी । उचाटू - वि० ( दे० ) ( हि० उचाट ) व्यग्रचित्त, उखड़ा हुआ, उदासीन, विरक्त । उच्चाड़ना - स० क्रि० ( हि० उचड़ना ) लगी या सटी हुई चीज़ को अलग करना, नोचना, उखाड़ना । उच्चानाक - स० क्रि० दे० (सं० उच्च + उठाना, 66 चित चखन उच्चाय करण ) ऊँचा करना, ऊपर उठाना चंद्रचूड़ चेत्यौ कै "" - रघु० । उचायत -- संज्ञा, पु० (दे० ) किसी दूकान से बराबर उधार लेते रहना । उचारक संज्ञा, पु० (दे०) उच्चार (सं० ) उच्चारण । उच्चारन - संज्ञा, पु० ( दे० ) उच्चारण (सं०) उच्चारन ( दे० ) | उचारना–स० क्रि० दे० (सं० उच्चारण ) उच्चारण करना, मुँह से शब्द निकालना बोलना, " घाँस पछि मृदु बचन उचारे " - रामा०, "भई पुष्प वर्षा सब जयजय सब्द उचारे ", - हरि०, सा० भू० उच्चारयो"ज्ञात होत कुलगुरु सूरज हय मंत्र उचार्यो सा० व० उचारें, क्रि० स० (दे० ) उचाड़ना, उखाड़ना । उचित - वि० (सं० ) योग्य, ठीक, मुनासिब वाजिब, उपयुक्त, समीचीन, न्यस्त, विदित, न्याय-युक्त, ( संज्ञा, भा० - श्रौचित्य ) उचेतना - स० क्रि० (दे० ) उकेलना, छीलना, उखाड़ना । I उचार - संज्ञा, पु० (दे० ) ठोकर, ठेस, चोट । उचौंह* - वि० ( हि० ऊँचा + मौंहा - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उच्चारण प्रत्य० ) उचैहा (दे० ) ऊँचा उठा हुआ, उभड़ा हुआ । स्त्री० उचौंही । उच्च - वि० (सं० ) ऊँचा, श्रेष्ठ बड़ा, उत्तम, महान उन्नत, उत्तुंग, ऊर्ध्व । उच्चतम - वि० (सं० ) सब से ऊँचा, सर्व श्रेष्ठ, सर्वोत्तम । I उच्चतर - वि० (सं० ) दो में से अधिक ऊँचा, उत्तम या अच्छा । उच्चता - संज्ञा, स्त्री० (सं०) ऊँचाई, श्रेष्टता, बड़ाई, उत्तमता, बड़प्पन, भेटता उच्चभाषी - वि० यौ० (सं० ) कटुवक्ता । उच्चमना - वि० यौ० (सं० ) ऊँचे या उन्नत मन वाला, उदार हृदयी, महामना । उच्चरण - संज्ञा, पु० (सं० ) कंठ, तालु, जिह्वा श्रादि से शब्द निकलना, मुँह से शब्द फूटना । उच्चरना 66 स० क्रि० दे० (सं० उच्चारण ) उच्चारण करना | बोलना, वि० उच्चरित - उच्चारण किया हुआ, कथित । उच्चाट- संज्ञा, पु० (सं० ) उखाड़ने या नोंचने की क्रिया, अनमनापन, उचटना, उदास, भई वृत्ति उच्चाट भरि भभरि श्रई छाती " - हरि० । उच्चाटन - संज्ञा, पु० (सं० ) लगी या सटी हुई चीज़ को अलग करना, उचालना, उखाड़ना, विश्लेषण, नोंचना, किसी के चित्त को कहीं से हटाना, ( तंत्र के छः अभिचारों या प्रयोगों में से एक ) अनमनापन, विरक्ति, उदासीनता, । वि० उच्चटित - उच्चाट किया हुआ, वि० उच्चाटनीय -- उच्चाट करने योग्य । उच्चार - संज्ञा, पु० (सं० उत् + चर् + घञ् ) मुँह से शब्द निकालना, बोलना, कथन । संज्ञा, पु० विष्ठा, मल, मूत्र, पुरीष । उच्चारण-- संज्ञा, पु० (सं० उत् + चट् + णि + अनट् ) कंठ ओष्ठ, जिल्हा आदि के द्वारा मनुष्यों का व्यक्त और विभक्त ध्वनि निकालना, मुख से सस्वर व्यंजन बोलना, For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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