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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उगाही ३०० उघाड़ना "अब तुम आये प्रान-व्याज उगहन को। उग्रा-संज्ञा, सी० (सं० )दुर्गा, कर्कशा स्त्री, ऊ. श०। अजवाइन, बच, धनियाँ। उगाहो-संज्ञा, स्त्री० हि० उगाहना ) रुपया- उघटना-प्र० क्रि० दे० (सं० उत्कथन ) पैसा वसूल करने का काम, वसूली, वसूल ताल देना, सम पर तान तोड़ना, दबी किया हुआ रुपया-पैसा, वसूलयाबी। हुई बात को उभाड़ना, कभी के किये हुए उगिलना–स० क्रि० (दे० ) उगलना | किसी के अपराध और अपने उपकार को (हि.)। बार बार कह कर ताना देना, किसी को उगिलवाना-उगिलाना-स० क्रि० (दे० ) भला-बुरा कहते कहते उसके बाप-दादे को उगलाना, उगलवाना, दोष स्वीकार कराना, भो भला-बुरा कहने लगना, प्रगटना । पंजे से छुड़ाना। उघटहि छंद, प्रबंध, गीत, पद, राग, "गिल्यो बँदेल खंड उगिलायौ".-छत्र। तान, बंधान "उग्गाहा-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० उद्गार या, उघटा-वि० ( हि० उघटना ) किए हुए प्रा० उग्गाहो ) आर्या छंद के भेदों में से उपकार को बार बार कहने वाला, एहसान एक। जताने वाला। उग्र-वि० (सं०) प्रचंड, उत्कट, तेज़, घोर । संज्ञा, पु० ( दे० ) उबटने कार्य । संज्ञा, पु० महादेव, वत्सनाग, विष, सूर्य, उघट-पंची-संज्ञा, स्त्री० ( देर ) उलाहना, एहसान। बच्छनाग ( वत्सनाभ ) नामक विष, उघटाना-उघटवाना स० कि. (हि. क्षत्रिय पिता और शूद्र माता से उत्पन्न उघटना से प्रे० रूप ) ताना दिलाना, एक संकर जाति शिव की वाय-मूर्ति एहसान जतवाना, प्रगट कराना। केरल प्रदेश, रौद्र, तीषण, क्रोधी, कठिन, उघडना-प्र. क्रि० दे० (सं० उदघाटन ) कठोर, भयानक । खुलना, आवरण का हट जाना, नग्न. उग्रगंध-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) लहसुन, होना, प्रकट होना, प्रकाशित होना. कायफल, हींग, तीचण गंधवाला । भंडा फूटना। उग्रगंधा-संज्ञा, स्त्री. (सं० ) अजवायन, | उघरना-प्र० कि० दे० (सं० उद्घान ) अजमोदा, बच, नकछिकनी। उधड़ना वि. उघरा स्त्री० उघरी। उग्रचंडा-संज्ञा, स्त्री० (सं० ) भगवती देवी "उघरे अंत न होइ निबाह"... रामा। की एक मूर्ति विशेष, जिसके अष्टादश | उधरि-पू. का. कि. खुलकर, खुल्पम खुल्ला । भुजायें हैं और जो कोटि योगिनी-परिवेष्टित उघगटा-वि० दे० ( हि० उघरना । है, जिसकी पूजा श्राश्विन कृष्णा नवमी खुला हुअा, स्त्री० उघराटी। को होती है। उघराटी-संज्ञा, पु० (दे.) खुला स्थान , उग्रता-संज्ञा, स्त्री० (सं० ) तेज़ी, प्रचंडता, | उघाड़ना-स० कि० दे० (हि० उघड़ना कर कठोरता। स० रूप ) खोलना, आवरण हटान. उग्रतारा-संज्ञा, स्त्री० (सं० ) देवी की ( अावरण के विषय में ) खोलना एक मूर्ति जिसका दूसरा नाम मातंगिनी है। आवरण-रहित करना (श्राकृत के सम्बन्ध में) उग्रसेन-संज्ञा, पु. ( सं० ) मथुरा का | नग्न या नंगा करना, प्रकट करना, गुप्त बात. यदुवंशी राजा जो पाहुक का पुत्र और को प्रकाशित करना या खोल देना, अंडा कंस का पिता था। फोड़ना। For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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