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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra उजियार २६६ प्रकाश, उजियार ( उजियार ) संज्ञा, पु० दे० (सं० उज्वल ) उजाला ( हि० ) रोशनी, कुल-दीपक, वंश भूषण, ( घर का उजाला ) । वि० प्रकाशमान, उज्वल । 'ताहू चाहि रूप उँजियारा (4 -- प० । स्त्री० दे० उजियारी - उज्यारी- संज्ञा, ( उजियारी हि० उजाली ) उतारी (दे० ) चाँदनी, प्रकाश, उजेरी (दे० ) । उजियारी मुख इंदु की, परी उरोजनि श्रानि " 66 -ल० वि० । www.kobatirth.org — "" वि० प्रकाश युक्त | उजेरा ( उजेरो ) संज्ञा, पु० दे० उजेला ) उजाला, प्रकाश, रोशिनी, (दे० ) उजियर, उजियार । 66 करे उजेरो दीप पै"- -वृन्द । उँदुर - संज्ञा, पु० (सं०) चूहा मूसा इंदुर । उँह - अव्य० ( अनु० ) स्वीकार, घृणा, या बेपरवाही आदि का सूचक शब्द, वेदनासूचक शब्द, कराहने का शब्द | उँहूँ - अव्य० ( अनु० ) हाँ या हूँ का विलोम, नहीं । करति उहूँ उहूँ 1 उ – संज्ञा, पु० (सं० ) ब्रह्म, नर, मनुष्य । अव्य० * भी - "अउरऊ एक गुप्त मत, ' रामा० । (( "" उमना - स० क्रि० ( दे० ) उगना, उदय (सं० ) होना । (6 -प० । उचा सूक जस नखतन माँहा "उचानाक - स० क्रि० दे० (सं० उदय ) उगाना, मारने को हथियार तैय्यार करना, उठाना, उदित करना । (सं० उद्गुरण) मारने के लिये हाथ तानना । उइ - वि० दे० ( हि० उस ) उस, वे 1 क्रि० स० दे० (सं० उदय, उमना, दे० ) उठी, उगी । उई - क्रि० स० (दे० ) उचना का सामान्य भूतकाल स्त्री० । सर्व० (दे० ) वे ही, वे भी, वेई ( ० ) । ( हि० उजेरो ל' उकडू उऋगा - वि० सं० उत् + ऋण) ऋण मुक्त, ऋण से उद्धार होना, जो ऋण मुक्त हो । उप - स० क्रि० (दे० ) उगे, निकले, उदय हुये, देख पड़े, उना का सामान्य भूतकाल मैं व० व० का रूप । उओ (ब) स० क्रि० (दे० ) उगा, उदित हुआ, सा० भूतकाल उच्च (दे० ) विधि० उौ - उधो (दे० ) उयो । उकचनाछ - अ० क्रि० दे० (सं० उत्कर्ष ) उखड़ना, अलग होना, उचड़ना, उठ भागना, पर्त से अलग होना, हट जाना, उठ जाना । "6 सिंह सों डराय याहू ठौर सों उकचिहौं । -भू० । उकरना -- स० कि० दे० ( हि० उघटना ) उखाड़ना, भेदन करना, गुणवान को प्रकाशित करना, बार बार कहना, गड़ी वस्तु निकालना | उकटा - वि० दे० (हिं उकटना ) उकटने वाला, एहसान जताने वाला । स्त्री० उकटी | संज्ञा, पु० किसी के किये हुये अपराध या अपने उपकार को बार बार जताने का कार्य । यौ० दे० उकदा पुरान— गई -बीती और दबी-दबाई बातों का फिर से सविस्तार Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कथन । उकठना - अ० क्रि० दे० ( सं० अव बुरा + काट) सूखना, सूख कर कड़ा होना और टेढ़ा हो जाना, ऐंट जाना । 66 'जिमिन नवै पुनि उकठि कुकाठू 66 रामा० । प० । दीठि परी उकठी सब बारी " उकठा - वि० दे० ( हिं० उकठना ) शुल्क, सूखा, एंठा । स्त्री० उकठी । I "उकठे बिटप लागे फूलन - फरन" -- विन० । " उकठी लकरी बिन पात बढी " उकडू – संज्ञा, पु० दे० (सं० उत्कृतोरु ) घुटने मोड़ कर बैठने की एक मुद्रा जिसमें For Private and Personal Use Only ܙܙ
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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