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इष्टापूर्ति
इष्टापूर्ति - संज्ञा, पु० (सं० ) लोकोपका रार्थ यज्ञ, कूप आदि की रचना |
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इष्टालाप - संज्ञा, पु० (सं० ) अभीष्ट या far कथोपकथन |
इष्टि - संज्ञा, स्त्रो० (सं० ) इच्छा, अभि
लाषा, यज्ञ,
इष्य - संज्ञा, पु० (सं० ) वसन्त ऋतु । इष्वास संज्ञा, पु० (सं० ) धनुष, कार्मुक, धनु ।
इस - सर्व० दे० (सं० एषः ) यह शब्द का विभक्ति के पूर्व श्रादिष्ट रूप जैसे- इसको । इस पंज - संज्ञा, पु० दे० ( अ० स्पंज ) समुद्र में एक प्रकार के प्रति सूक्ष्म कीड़ों के योग से बना हुधा मुलायम रुई सा सजीव पिंड़ जो पानी खूब सोखता है, और जिसमें बहुत से छेद होते हैं, मुर्दा, बादल । इसपात -संज्ञा, पु० दे० ( ० प्रयस्पत्र,
पुर्त० स्पेडा ) एक प्रकार का कड़ा लोहा । इसबगोल - संज्ञा, पु० ( फ़ा० ) फ़ारस की एक झाड़ी या पौधा जिसके गोल बीज हकीमी दवा के काम में आते हैं । इसरार - संज्ञा, पु० ( इसलाम - संज्ञा, पु० ( धर्म | वि० इसलामिया ।
० ) हठ, अनुरोध । ० ) मुसलमानी ।
1
इसलाह - संज्ञा, स्त्री० ( ० ) संशोधन | इसाई - वि० ( ० ) ईसा के अनुयायी । इसारत8 - संज्ञा, स्त्री० दे० ( ० इशारा ) संकेत, इशारा ।
इस्से - सर्व० दे० (सं० एषः ) यह का कर्म एवं संप्रदान कारक का रूप । इस्तमरारी - वि० ( ० ) सब दिन रहने वाला, स्थायी, नित्य, अविच्छिन्न ।
ई-हिंदी वर्ण माला का चौथा स्वर या अक्षर | ( इ + इ ) संयुक्त स्वर ।
to इस्तमरारी बंदोबस्त - ज़मीन का वह बन्दोबस्त, जिसमें मालगुज़ारी सदा के लिये नियत कर दी जाती है और फिर घटती-बढ़ती नहीं, यह बंगाल - बिहार के प्रान्तों में जारी है। इस्तिंजा - संज्ञा, पु० ( श्र० ) पेशाब कर चुकने पर मिट्टी के ढेले से इंद्री की शुद्धि । इस्तिरी - संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० स्तरी - तह करने वाला) कपड़ों की तह बैठाने वाला धोबियों या दर्जियों का श्रौज़ार, तह बैठना | इस्त्री (दे० ) स्त्री । इस्तीफ़ा - संज्ञा पु० दे० ( ० इस्तेफ़ा ) नौकरी छोड़ने की दरख्वास्त, त्याग-पत्र | इस्तेमाल - संज्ञा, पु० ( ० ) प्रयोग, उपयोग । वि० इस्तेमाली । इस्त्री ( इस्त्रि ) - दे० संज्ञा स्त्री० (सं० स्त्री० ) स्त्री, इस्तिरी ।
इस्थिति - संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० स्थिति ) दशा, अवस्था ।
इस्थिर - वि० दे० (सं० स्थिर ) निश्चल,
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अचल, ठहरा हुआ ।
इह - क्रि० वि० (सं० ) इस जगह, इस लोक में, इस काल में, यहाँ, इस । सर्व ० वि० ) तब इह नीति की प्रतीति गहि जायगी " -- ऊ० श० ।
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इहसान - संज्ञा, पु० ( ० ) एहसान, कृतज्ञता, निहोरा (दे० ) ।
इहाँ
क्रि० वि० (दे० ) यहाँ ( हि० ) वाँ ( ० ) ।
हूँ हैं - क्रि० वि० (दे० ) यहाँ हीं । इहैवि० (दे० ) यही ।
इहिं - क्रि० सर्व० (दे० ) यहाँ : वि० इस |
ई
जो इ का दीर्घ रूप है और जिसके उच्चारण का स्थान तालु है ।
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