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'अपराध।
इलावृत
इष्टापत्ति चीनी में पागा हुआ, इलायची या पोस्त | इश्क-संज्ञा, पु. (म.) मुहब्बत, प्रेम, का दाना।
चाह। इलावृत-संज्ञा, पु० (सं०) जंबूद्वीप के वि० आशिक, माशूक । ६ खंडों में से एक।
| इश्तहार-संज्ञा, पु० (०) विज्ञापन, इलाही-संज्ञा, पु० (अ.) ईश्वर, खुदा सूचना। वि० देवी।
इश्तियालक-संज्ञा, स्त्री० (दे० ) बढ़ावा, यौ० इलाहीगज़-अकबर का चलाया उत्तेजना । हुया एक प्रकार का गज़ जो ४१ अंगुल | इषण --संज्ञा, स्त्री० दे० (एषणा सं० ) ( ३०३ इंच ) का होता है और इमारतों कामना। के नापने के काम में आता है। इषु-संज्ञा, पु० (सं० ) वाण, शर, तीर, इल्लिजा-संज्ञा, स्त्री० ( अ ) निवेदन, कांड। प्रार्थना।
इषुधि-( इषुधी)-संज्ञा, पु० (सं० ) तूण, इल्म-संज्ञा, पु. (अ.) विद्या, ज्ञान, | तरकस, तूणीर। वि० इल्मी।
| इषुमान-वि० (सं०) तीर चलाने वाला, संज्ञा, स्त्री० इल्मियत-विद्वता।
तीरंदाज़ । इल्लत-संज्ञा, स्त्री. ( अ० ) रोग, बीमारी, इषुपल-संज्ञा, पु० (सं०) दुर्ग के द्वार झंझट, बखेड़ा, दोष, अपराध ।
की कंकड़, पत्थर फेंकनेवाली तोप। मु०-इल्तत पालना-कठिनाई रखना, इष्ट-वि० ( सं०) अभिलषित, चाहा बखेड़ा बना रहना।
हुआ, वाँछित, अभिप्रेत, पूज्य, पूजित । इल्ला-संज्ञा, पु० दे० (सं० कील ) छोटी संज्ञा, पु० यज्ञादि कर्म, अग्निहोत्रादि शुभ कड़ी फंसी, मस्सा, माँस-वृद्धि ।
कर्म, संस्कार, यज्ञ स्वामी, इष्टदेव, कुलदेव, इल्ली --संज्ञा, स्त्री० (दे० ) अंडे से अधिकार, वश देवता की छाया या कृपा, निकलते ही चींटी या ऐसेही कीड़ों का रूप। मित्र, प्रिय। यौ० इल्ली-बिल्ली भूल ना--होश- इपका-संज्ञा, स्त्री० (सं०) ईट, ईटा (दे०)। हवास टीक न रहना।
इष्टगंध-वि० यो० (सं०) सुगंधित द्रव्य, इल्वल-संज्ञा, पु० (सं०) एक दैत्य, एक सौरभ । मछली।
इष्टता-संज्ञा, स्त्री० (सं० ) इष्ट का भाव, इल्वला-संज्ञा, पु० (सं०) मृगशिरा नक्षत्र मित्रता।
के ऊपर रहने वाला २ तारों का अँड । इष्टदेव (इष्टदेवतो)-संज्ञा, पु. (सं. इव-अव्य० (सं० ) उपमा वाचक शब्द, यौ०) श्राराध्य देव, पूज्य देवता, कुल-देव,
समान, सदृश, नाई, तरह, सरीखा ( दे०)। उपास्य देव, प्रिय देवता । इशारा-संज्ञा, पु० (अ.) सैन, संकेत, | इष्ट मित्र-संज्ञा, पु० (सं०.) प्रिय मित्र, संक्षिप्त कथन, बारीक लहारा, सूचम आधार, | मित्रवर्ग। गुप्त प्रेरणा।
" इष्ट-मित्र अरु बंधुजन, जानि परत सब संज्ञा, स्त्री० इशारेबाजी।
कोय"-वृन्द। मु०-इशारे पर नाचना-संकेत पाते | इष्टापत्ति--संज्ञा, स्त्री० (सं०) वादी के ही श्राज्ञा पालन करना।
कथन में दिखाई गई ऐसी आपत्ति जिसे इशारे पर चलना--प्राज्ञानुसार करना। वह स्वीकार कर ले। भा० श० को०-३७
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