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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org प्रासाद प्रसाद - संज्ञा, पु० (दे० ) श्रासाद माह, (सं० ) श्राषाढ़, आसाढ़ी । २७३ आसूदगी आसी - वि० (दे० ) श्राशी: (सं० ) । प्रासीन - वि० (सं० आलू + ईन ) बैठा हुआ, विराजमान, उपस्थित, स्थित, सीना (दे० ) । प्रासादन - संज्ञा, पु० (सं० था + सद् + णिच् + अनटू ) प्राप्रण लाभकरन, मिलन | प्रासादित - वि० (सं० ग्रा+सद् + णिच् + क्त ) प्राप्त, लब्ध, मिलित, भक्षित । आसान - वि० ( फा० ) सहज, सरल, सुगम । , श्रासानी - संज्ञा स्त्री० ( फ़ा० ) सरलता, सुगमता, सुभीता, सुविधा । आसाम - संज्ञा, पु० ( दे० ) भारत के उत्तर-पूर्व में बंगाल का एक भाग, एक पूर्वीय प्रान्त, कामरूप ( प्राचीन ) । प्रासामी - वि० (दे० ) आसाम निवासी संज्ञा, पु० ( फा० ) अभियुक्त देनदार, काश्तकार, धनवान व्यक्ति- - जैसे- २ लाख के श्रासामी । प्रासार- संज्ञा, पु० ( अ० ) चिन्ह, लक्षण, चौड़ाई | संज्ञा, स्त्री० (दे० ) मूसलाधार वृष्टि । आसावरी – संज्ञा स्त्री० ( १ ) श्री नामक राग की एक रागिनी । संज्ञा, पु० एक प्रकार का कबूतर । प्रसासन - संज्ञा, पु० यौ० दे० ( प्रशा सन) नग्न, दिगंबर, नंगा, महादेव, शिव । प्रसिख – संज्ञा स्त्री० दे० (सं० प्राशिष) आशीर्वाद । " तुलसी सुतहिं सिख देइ श्रासु देइ पुनि श्रसिख दई " | प्रसिद्ध - वि० (सं० आ + सिध् + क्त ) अवरुद्ध, वंदीभूत, बंधुवा, बंदी | प्रासिधार - संज्ञा, पु० (सं० ग्रास + धृ + घञ्) युवा और युवती का एक स्थान में विकृत चित्त से श्रवस्थान -रूप व्रत । ध्यासिन - संज्ञा, पु० (दे० ) आश्विन ( सं० ) कुँवार । • ग्रासिखवचन - संज्ञा, पु० ( दे० ) आशीवचन (सं०) आशीष, प्रासिर्वाद (दे० ) । मा० श० को ०–३५ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 66 एकबार प्रभु सुख श्रासीना " - रामा० । 66 प्रभु आसन आसीन " - रामा० । आसीस - संज्ञा, स्त्री० (दे० ) आशिष, (सं० ) आशीर्वाद । संज्ञा, पु० (दे० ) उसीस, तकिया । प्रासु - क्रि० वि० ( दे० ) आशु (सं० ) जल्दी, शीघ्र, सर्व० - इसका । प्रासुग-संज्ञा, पु० (सं०) वायु, वाण, प्रसुतोस - संज्ञा, पु० (दे० ) आशुतोष ( सं० ) महादेव, शिव । वि० (दे० ) जल्द प्रसन्न होने वाला । आासुन - संज्ञा, पु० ( दे० ) आश्विन् (सं०) कार मास, निधि, मुनि, वसु, ससि साल में, घासुन मास, प्रकास, दिन । आसुर - वि० (सं० ) असुर सम्बन्धी, विवाह की एक विशेष रीति, ( स्मृति० ) । यौ० प्रासुरविवाह – कन्या के मातापिता को द्रव्य देकर किया जाने वाला विवाह (स्मृति० ) । संज्ञा, पु० (दे० ) असुर, राक्षस । आसुरी - वि० (सं० ) असुर सम्बन्धी, असुरों का, राक्षसी । 0 यौ० प्रासुरी- चिकित्सा - शस्त्र चिकित्सा, चीड़-फाड़ कर के रोग अच्छा करना । प्रासुरी माया - चक्कर में डालने वाली राक्षसी चाल, धूर्तता, छलछद्म । संज्ञा स्त्री० असुर की स्त्री, राक्षसी । आसूदा - वि० (फ़ा० ) संतुष्ट, तृप्त, संपन्न, भरा-पूरा । आसूदगी - संज्ञा स्त्री० ( फ़ा० ) तृप्ति, संतोष | For Private and Personal Use Only (दे० ) आशुग मन ।
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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