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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आपीड़ सर्व० दे० ( हि० आप ही ) थापही, स्वतः स्वयमेव । www.kobatirth.org प्रापीड़-संज्ञा, पु० (सं०) सिर पर पहनने की चीज़, जैसे पगड़ी, सिरपेंच, शेखर, शिरोमाला, शिरोभूषण, मुकुट, कलँगी, एक प्रकार का विषम वृत्त ( पिंग० ) । प्रापीन - संज्ञा, पु० (सं० ) गोस्तन, इषत्स्थूल, कठोर, मोटा, बड़ा । 66 घु० । श्रापीनभारोद्वहन प्रयत्नात् " प्रापु – सर्व० दे० ( हि० ग्राप ) आप, २४३ " थापस, परस्पर । प्रापूरनाळ - अ० कि दे० (सं० भापूरण ) भरना, परिपूर्ण करना, संज्ञा, पु० पूरन । पूरण - वि० (सं० ) भरा हुआ, पूर्ण, भरा-पूरा । प्रापूरित - वि० (सं० ) परिपूर्ण, भरा हुआ, संतुष्ट । स्वयम् । पु पु कहँ सब भलो तुलसी० । आपुन - सर्व० दे० (हि० अपना ) अपना, आप, आपुनो (० )। प्रमाण, शब्द-प्रमाण पुस – संज्ञा, पु० दे० ( हि० प्रापस ) प्राप्तवर्ग - संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) चात्मीयजन, स्वजन, बंधु-बांधव, माननीय मित्र । प्राप्तवाक्य -- संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) आर्ष वाक्य, किसी विषय के मर्मज्ञ का कथन । प्राप्तसार संज्ञा, पु० (सं० ) आत्म-रक्षण, स्व शरीर- गोपन, स्वायत्त । प्राप्ति - संज्ञा स्त्री० (सं० ) प्राप्ति, लाभ । आप्तोकि – संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं० ) सिद्धान्त वाक्य प्राप्तवचन, विश्वस्त व्यक्ति का कथन । प्राप्यायित वि० (सं० भा + प्याय + क ) तृप्त, प्रीत, संतुष्ट, आनंदित, तर, वृद्धि, वर्धन, तर्पित, एक अवस्था से दूसरी अवस्था को प्राप्त, मृत धातु को जमाना या जीवित करना, दूसरे रूप बदला हुआ । श्रापूति-संज्ञा, स्त्री० (सं० ) ईषत् पूर्ण, सम्यक् पूरण, पूर्ति तक, समाप्ति तक । श्रापेक्षिक - वि० (सं० ) सापेक्ष, अपेक्षा रखने वाला, दूसरी वस्तु के सहारे पर रहने वाला, निर्भर रहने वाला | प्रापेक्षित - वि० (सं० ) जिसकी अपेक्षा, या परवाह की जाये, इष्ट, अभीष्ट (विलोमउपेक्षित ) | प्रापोशन - संज्ञा, पु० ( दे० ) भोजन के पूर्व का आचमन । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्राप्तव कहा हुआ, विश्वस्त, सत्य, बंधु, अभ्रान्त, विश्वसनीय | संज्ञा, पु० (सं० ) ऋषि, शब्द प्रमाण, भाग का लब्ध । प्राप्तकाम - वि० (सं० ) जिसकी समस्त कामनायें पूरी हो गई हों, पूर्ण काम । प्राप्तकारी - वि० (सं० ) प्राप्त करने वाला, विश्वस्त | प्राप्तगर्व - वि० यौ० (सं० ) आत्माहंकार, दुम्भ । प्राप्तग्राही - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) स्वार्थपर, श्रात्मम्भरि, लोभी, लालची । प्राप्तप्रमाण - संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) आर्ष For Private and Personal Use Only में आप्यायन -संज्ञा, पु० (सं० ) तृप्ति, वृद्धि, संतोष, जीवित, जगाना, रूपान्तर । प्रापृच्छा - संज्ञा, स्त्री० (सं०) श्रभाषण, आप्रच्छन -संज्ञा, पु० (सं० ) प्राते-जाते आलाप, जिज्ञासा, प्रश्न । समय मित्रों में परस्पर कुशल प्रश्न- ननित प्राप्त -- वि० (सं० ) प्राप्त, लब्ध, ( यौगिक श्रानंद, कुशल प्रश्नोत्तर | में) कुशल, दत्त, किसी विषय को ठीक वि० [प्राप्रच्छित । तरह से जानने वाला, साक्षात्कृतधर्मा, प्राप्लव-संज्ञा, पु० (सं० ) स्नान, अवगाहन प्रामाणिक, पूर्ण तत्वज्ञ या मर्मज्ञ का जलमय, डूबा हुआ, जल-निमन । भा० श० को ०-३२
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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