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अंत समय
अंत्यज अंत समय-संज्ञा. पु० यौ० (सं० ) अंतिम अंतरात्मा, संकल्प, विकल्प, सुख-दुख, काल, मृत्यु समय।
निश्चय, स्मरणादि का अनुभव करने वाली अंतस्नान -संज्ञा, पु. (सं० ) यौ० यज्ञ भीतरी इंद्रिय, मन, विवेक, नैतिक बुद्धि, समाप्ति पर किया गया स्नान, अवभृत भला-बुरा पहिचानने और बताने वाली स्नान ।
शक्ति । अंतस्सलिल-वि० यौ० ( सं० अन्तस -+
अंतः पटी-संज्ञा, स्त्री० (सं०) यौ०, चित्र सलिल ) जिसके जल का बहाव या प्रवाह
में नदीपर्वतादि का चित्रण जो चित्र का पृष्ठ बाहर न दिखाई दे, भीतर ही रहे, (स्त्री०
भाग सा रहता है, चित्रपट पर दिखाया अंतस्सलिला)
हुआ, स्वाभाविक दृश्य, नाटक का परदा, अंतस्सलिला-वि० यौ० स्त्री. (सं० ) संज्ञा स्त्री०-छानने के लिये छानने में रखा सरस्वती और फालगू नदी।
हुश्रा सोमरस । अंतहपुर - (अन्तःपुर) संज्ञा, पु० यौ० अंतः पुर -- संज्ञा, पु. (सं० यौ० अन्तः (सं० ) घर की स्त्रियों के रहने का भाग, | +पुर) अंतः पुरिक-ज़नाना, भीतरी जनान ख़ाना, घर के भीतर का हिस्सा। ।
भाग, महल के अंदर का हिस्सा, रनिवास । अंतावरी-संज्ञा, स्त्री० ( सं० अँत्रावलि, अंतः पुरिक-संज्ञा, पु. ( सं० ) अन्तःअंतावरी ) आँतों या अतड़ियों का समुदाय, पुर-रक्षक, कंचुकी। "अन्तावरि गहि उड़त गीध पिसाच कर गहि
अंतः राष्ट्रीय-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) वि० धावहीं" रामा० ।
सार्वराष्ट्रीय । अंतापरि--संज्ञा स्त्री० दे०-अंतावरी, प्रांतों
| अंतः शरीर- संज्ञा, पु० यौ० ( सं० ) लिंगका समूह, अँतोरी।
शरीर। अंतावशायी- संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) नाई,
अंतः संज्ञा-संज्ञा, पु. स्त्री० यौ० (सं०)
अनुभव, चेतना, जो जीव अपने सुख-दुख हज्जाम, हिंसक, चांडाल, कसाई। अंतिक-संज्ञा, पु. ( सं०) समीप, पास,
का अनुभव न कर सके. जैसे वृक्ष ।।
अंतः सत्व-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) गर्भनिकट, सन्निधान ।
वती। अंतिम-वि० (सं० अन्त+इम् ) पिछला,
अंतःश्वेत-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) हाथी । सब से बाद का, शेष, अवसान, चरम, अन्त
अंत्य-वि० (सं० अंत) शेष का, अंत का, वाला, पाखीरी, सब से बढ़ कर।
अंतिम, सबसे पिछला, अधम, नीच, अंतिम यात्रा-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०)
जघन्य, संज्ञा पु० जिसकी गणना अंत में मृत्यु, महाप्रस्थान, महायात्रा, मरण ।
हो-लग्नों में मीन, नक्षत्रों में रेवती, दस अंतउर-अंतघर-संज्ञा, पु० (सं० सागर की संख्या ( १०००, ०००, ०००, अन्तःपुर ) अंतःपुर, जनान ख़ाना।
०००, ०००) यम । . अंतेवर-संज्ञा पु० (दे० ) अंतावरी। अंत्यकर्म-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) अंत्येष्टि अंतवासी-संज्ञा, पु० यौ० (सं० अन्ते + क्रिया, प्रेतकर्म । वासो वस +णिनि ) विद्यार्थी, ब्रह्मचारी, | अंत्यज- संज्ञा, पु० (सं० अंत्य+ज ) अंतिम प्रान्तस्थायी, ग्राम के बाहर रहने वाला, वर्ण से उत्पन्न, शूद्र, अछूत जिसे और चांडाल, अंत्यज, गुरु के समीप रहने वाला। जिसका छुवा हुआ अन्न-जल द्विज लोग न अंतःकरण -संज्ञा, पु. (सं०) सद् सद् ग्रहण करें-धोबी, चमारादि सप्त जाति, विवेचनी शक्ति, हृदय ।
जधन्यज, भघरज | अंत्यजन्मा-शूद्र ।
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