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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रानन्दपट २४४ प्रानतान " खरभर परी देव आनन्दे जीत्यो पहिली प्रानन्दित-वि० (सं० ) हर्षित, सुखी, रारि"-सूर० । प्रसन्न । श्रानन्दपट-संज्ञा, पु. ( सं० ) नव. श्रानन्दी-वि. (सं० ) हर्षित, प्रसन्न, विवाहिता वधू का वस्त्र, नवोढा का कपड़ा। सुबी या मुदित रहने वाला, श्रानन्द प्रानन्द पूर्ण-वि० ( सं० ) सुखमय, । देने वाला। मोदमय, हर्षयुक्त। प्रान-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० आणि = अानन्द-प्रभव-संज्ञा, पु० (सं० ) रेत, मर्यादा, सीमा ) मर्यादा, शपथ, सौगन्द, वीर्य, शुक्र। कसम, विनय, घोषणा, दुहाई, ढंग, तर्ज, आनन्दमत्ता-संज्ञा, स्त्री०( सं० ) आनन्द क्षण, लमहा, शान, शर्म, दबाव, भय । संमोहिता स्त्री। " फिरी धान ऋतु बाजन बाजे"-५० । प्रानन्दमय कोष-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) " देहौं मिलाय तुम्है हौं तिहारियै थान पंचकोष के भीतर कोष विशेष, सत्व, करौं वृषभानु लली से"..-रवि० । प्रधान, ज्ञान, कारण शरीर, सुवुप्ति । " कोऊ मानत न ान है" - सुन्दर० । श्रानन्दशय्या-संज्ञा, खो० ( सं० ) नवोदा- हठ, अकड़. ऐठ, ठसक, अदब, लिहाज़, शयन, नवनायिका की सेज। प्रण, प्रतिज्ञा, टेक । प्रानन्दसंमोहिता-संज्ञा, स्रो० यौ० मु०-पान की प्रान में-शीघ्र ही, (सं०) रति के आनन्द में निमग्न होने पर तत्काल, फ़ौरन, चटपट। मुग्धता या प्रसन्नता ( मोह ) को प्राप्त हुई वि० दे० दूपरा, और। प्रौदा नायिका। " श्रान भांति जिय जनि कछु गुनहू ".- प्रानन्दार्णव-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) सुख रामा० । सागर, हर्ष-समुद्र। कि० अ० ( हिं० श्राना ) श्राकर, (शानि) अानन्माश्र-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) सुख लाकर । से उत्पन्न होने वाले आँसू, प्रमोदाश्रु । । " पानि धरे प्रभु पाप".-रामा० । प्रानन्दवर्धन-संज्ञा, पु. ( सं०) सन् प्रानक-संज्ञा, पु० (सं०) डंका, भेरी, ८५५ से ८८० के बीच में से काश्मीर- दुन्दुभी, गरजता हुअा बादल । नरेश अवन्ति वर्मा के राज्य-काल में थे, धानकदुन्दुभी- संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) ये संस्कृत के सुप्रसिद्ध कवि एवं अलंकार- | बड़ा नगाड़ा, कृष्ण के पिता वसुदेव जी। लेखक थे, इन्होंने काव्यालोक, ध्वन्या- " बालक अानकदुन्दुभी के भयो बाजत लोक और सुहृदयालोक नामक प्रमुख ग्रंथ दुन्दुभी श्रानके द्वारे"। संस्कृत में रचे । श्रानत-वि० (सं० ) नम्रीभूत, विनम्र, अानन्दगिरि-संज्ञा, पु. (सं० ) ईसवी विनीत, अवनत, संज्ञा, पु० श्रानतन । ६ वीं शताब्दी में एक प्रधान कवि और स० कि० (दे०) लाता है, लाते हुए। स्वामी शंकराचार्य के शिष्य थे, इन्होंने पानतान-संज्ञा, स्त्री० (दे० ) असम्बद्ध "शंकर दिग्विजय" नामक काव्य संस्कृत बात, दूसरी दूसरी, और से और । में रचा, गीता की टीका और कई उपनिषदों अव्य०-अन्य प्रकार । पर भाष्य लिखे। संज्ञा, स्त्री० (हि. आन = दूसरी+तान = प्रानन्दि-संज्ञा, पु. ( सं० ) श्राह्लाद, गाना ) दूसरी तान या रागिनी। सुख, प्रमोद। संज्ञा, स्त्री० (दे० ) टेक, मर्यादा । For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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