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श्राचारविरुद्ध
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श्राछा
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याचार विरुद्ध - वि० यौ० (सं० ) कुरीति, | प्राचित्य - वि० (सं० ) जो चिंतन में न व्यवहार विरुद्ध |
प्राचारज - संज्ञा, पु० दे० (सं० आचार्य ) श्राचार्य, विद्या- कला-पटु शिक्षक, पुरोहित । आवारजी - संज्ञा, स्त्री० दे० ( सं० चाचार्य) पुरोहिताई, श्राचार्य होने का भाव, श्राचार्य-वृत्ति ।
आ सके, ईश्वर, ब्रह्म । वि० [प्रचिंतनीय, प्राचिंतित । श्राचोट-संज्ञा, स्त्री० (दे० ) श्राघात, क्षत विक्षत, घाव अनाकृष्ट, बिना जोती हुई भूमि । प्रच्छन्न वि० (सं० ) ढका हुआ, श्रावृत. छिपा हुआ, व्याप्त, वेष्ठित, रक्षित, ( दे० ) आक्रन्न । प्राच्छा-अच्छा - अव्य० ( दे० ) भला, उत्तम, स्वीकारार्थक शब्द, हाँ । प्राच्छादक - संज्ञा, पु० (सं० ) ढाँकने या छिपाने वाला, श्रावरण, गोपनकारी । प्राच्छादन -संज्ञा, पु० (सं० ) ढकना, छिपाना, वस्त्र, कपड़ा, परिधान, छाजना, छवाई, आवरण | प्राच्छादनीय - वि० सं० ) ढाकने या छिपाने के योग्य, संगोपनीय । प्राच्छादित - वि० ( सं० ) ढका हुआ,
वृत, छिपा हुआ, तिरोहित ।
आचारवान - वि० (सं० ) पवित्रता से रहने वाला, सदाचारी, शुद्धाचरण या सुभाचार वाला ! प्राचार - विचार - संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) चार और विचार, चरित्र और मन सद्भाव, चाल-ढाल, रहने की सफ़ाई, शौच, व्यवहार-भाव |
श्राचारी - वि० (सं० प्राचारिन् ) श्राचारवान्, शास्त्रानुगामी, चरित्रवान, सच्चरित्र, सदाचारी |
संज्ञा, पु० रामानुजाचार्य के सम्प्रदाय का वैष्णव |
प्राचार्य – संज्ञा, पु० ( सं० ) वेदाध्यापक, वेदोपदेष्टा, उपनयन के समय गायत्री मंत्र का उपदेश करने वाला, गुरु शिक्षा, आचार और धर्म का बताने वाला, यज्ञ-समय में कर्मोपदेशक, पुरोहित, अध्यापक, ब्रह्मसूत्र के प्रधान भाष्यकार श्रीशंकर, रामानुज, मध्व और वल्लभाचार्य, वेद का भाष्यकार, धनुर्वेद का पंडित (जैसे द्रोणाचार्य ) किसी शास्त्र का पूर्ण पंडित |
वि० ( किसी विषय का ) विशेषज्ञ, शास्त्रपारंगत |
स्त्री० प्राचार्याणी - पंडिता, अध्यापिका, आचार्य की स्त्री ।
श्राचार्यता - संज्ञा भा० (सं० ) पांडित्य, विशेषज्ञता ।
स्त्री० आचार्या - मन्त्रोपदेशदात्री, भाष्यकारिणी, (विशेष प्रयोग — स्वयमेव श्राचार्य-कर्म करने वाली स्त्री तो श्राचार्य और आचार्य की पत्नी प्राचार्याणी है ) ।
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श्राच्छाद्य - वि० ( सं० ) श्राच्छादनीय,
वृत करने के योग्य, ढाकने के योग्य । श्राच्छिन्न - वि० (सं० ) छेदना, काटना,
कर्तन |
प्राछत– क्रि० वि० दे० ( हिं० क्रि० अ० श्रावना का कृदन रूप ) — होते हुए, रहते हुए, विद्यमानता में, मौजूदगी में, सामने, समक्ष, अतिरिक्त, सिवा, छोड़ कर, अत (दे० ) ।
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तुमहिं छत को बरनै पारा " -
रामा० ।
श्रावना - अ० क्रि० दे० होना ) होना, रहना, उपस्थित होना । प्राछाछ - वि० (३०) अच्छा, व० ब० प्राछे । स्त्री० आछी ।
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(सं० ग्रस्= विद्यमान रहना,