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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्राग प्राख्या २२४ प्राख्या—संज्ञा, स्त्री० (सं०) नाम, कीर्ति, | "सूरदास प्रभु ऊख छाँडि के चतुर यश, व्याख्या, अभिधान ।। विचोरत आग"-। पाख्यात-वि० (सं० ) प्रसिद्ध, विख्यात, वि. जलता हुश्रा, बहुत गर्म, जो उष्ण कहा हुआ, राज-वंश का वृत्तान्त, कथित, या तप्त हो, कुपित । उक्त, व्याकरण का धातु-प्रकरण । | मु०-प्राग उठाना-झगड़ा करना, आख्याति-संज्ञा, स्त्री. (सं) नामवरी, कुपित करना। ख्याति, कीर्ति, शुहरत, यश, कथन, प्राग खाना अंगार निकालना--बुरी उक्ति। संगति और बुरा कर्म । श्राख्यान-संज्ञा, पु. (सं० ) वृत्तान्त, आगदना-चिता में भाग छुलाना, फंकना। कथा, गाथा, वर्णन, बयान, कहानी, आग दबाना-क्रोध, या झगड़ा दबा किस्सा, उपन्यास के ६ भेदों में से एक, देना। स्वयमेव लेखक के ही द्वारा कही गई | प्राग लगाना-झगड़ा कराना, क्रोध दिलाना कहानी, उपन्यास, इतिहास । बुराई पैदा करना । गरमी करना, जलन आख्यानक-संज्ञा, पु० (सं०) वृत्तान्त, पैदा करना, जोश या उद्वेग बढ़ाना, वर्णन, बयान कहानी, कथा, पूर्व वृत्तान्त, भड़काना, चुगली करना, बिगाड़ना, नष्ट कथानक। करना, जलाना। कुढ़न होना मँहगी या आख्यानिकी-संज्ञा, स्त्री. (सं० ) दंडक गिरानी होना, अप्राप्त होना। वृत्त का एक भेद। आग लगना-वावेला मच जाना। क्रोध श्राख्यायिका-संज्ञा, स्त्री० ( सं० ) कहानी, श्राजाना, बुरा लगना। कथा, गाथा किस्सा, उपदेशप्रद कल्पित आग लगे-बुरा हो, नाश हो, श्रागी कहानी, ऐसा पाख्यान जिसमें पात्र भी लागै, बरै ( दे० )। स्वयं अपना अपना चरित्र अपने मुंह से प्राग लगा के दूर हाना-झगड़ा-बखेड़ा कुछ कुछ कहें, उपकथा, इतिहास, उपल- कराके अलग हो जाना (लो०-अाग लगा ब्धार्थ कथा। के जमालो दूर खड़ी)। प्रागंतुक-वि० ( सं० ) पाने वाला, | श्राग फैलना-बुराई या वावेला फैलना । आगमनशील, जो इधर-उधर से घूमता- श्रग लगाना ( पानी में) अनहोनी बाते फिरता आजाये, अस्थायी, अचानक पाया होना या कहना, असम्भव कार्य करना, हुआ, अतिथि। जहाँ लड़ाई की कोई भी बात न हो वहाँ श्रागंतुक घर-संज्ञा, पु० (सं० यो०)। भी लड़ाई लगा देना। अाकस्मिक ज्वर, धातु प्रकोप के बिना ज्वर । श्राप लगाकर तमाशा देखना-लड़ाई भाग --संज्ञा, स्त्री० दे० ( सं० अग्नि ) लगवा कर प्रसन्न होना। उष्णता की चरम सीमा तक पहुँची हुई आग लगे कुया खादना-अनिष्ट आने वस्तुओं में दिखाई देनेवाला. तेज था | पर देर में होने या फल देने वाला प्रतीकार प्रकाश का समूह, अग्नि पागा (दे०) करना। वन्दर, जलन, अनल, ताप, गरमी, " श्राग लगे खोद कुंवाँ कैसे आग बुझाय" वैश्वानर, कामाग्नि, काम का वेग, क्राध, -बूंद। पाचन-शक्ति, वात्सल्य, प्रेम डाह, ईयया॑ ।। आग लगे श्रोर धुमान हा-कारण रहे संज्ञा, पु० अख का अगोरा । और कार्य न हो। For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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