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श्रोख
घाँकी तिल, अति प्रिय व्यक्ति, परम प्रिय । आँखो- संज्ञा, स्त्री० (दे० ) आँख, अक्षि । प्रांख की पुतली।
(सं०) ब० व. प्रांख-प्रोखो। कि० श्राख का नारा होना- प्रिय होना। अांखू-माखू - अत्र्य० यौ० (दे०) अक्खोअखि की पुत्लो-आँख के भीतर रंगीन मक्खो , झूठ-मूठ । भूरी झिल्ली का वह भाग जो सफंदी पर श्रोग*--संज्ञा, पु० दे० (सं० अंग) अंग, की गोल काट से होकर दिखाई पड़ता है, अवयव, देह स्तन । अति प्रिय व्यक्ति, प्यारा मनुष्य । ......" श्राँग मोरि अँगराइ"- वि० । प्रोखों के डारे-आँखों पर लाल रंग आंगन-संज्ञा, पु० दे० (सं० अंगण ) घर की बारीक नसें।
के भीतर का सहन, चौक, अजिरप्राख-भौं टेही करना-ऋद्ध होना। अँगनाई-अंगनैश (दे०)। अग्वि-भौं मटकाना-मुँह बिराना, मूर्ख श्रौगिक-वि० (सं० ) अंग-सम्बन्धी, बनाना इशारा करना।
अंग का। प्रोख-संज्ञा, पु० दे० (स. अक्षि) विचार- संज्ञा, पु० (सं०) चित्त के भावों को प्रगट विवेक, परख, शिनाख्त, पहिचान, कृपा- करने वाली चेष्टाये-जैसे भ्रूविक्षेप, हाव दृष्टि, संतति, आँख के आकार का चिन्ह, । आदि, रस के कायिक अनुभाव, नाटक के (सुई का छिद्र)।
अभिनय के चार भेदों में से एक। ब० ब० आँखं, अँखियाँ, अँखियान, प्रागिरम-संज्ञा, पु० (सं० ) अँगिरा-पुत्र, अंखड़ियाँ ( दे० )।
बृहस्पति, उतथ्य और संवत, अंगिरा के प्रांखडा-संज्ञा, स्त्री० ( दे० ) अाँख ।। गोत्र का पुरुष। आँखफाड़ा--( रिड्डा )-संज्ञा, पु० । वि० अंगिरा सम्बन्धी, अंगिरा का । (दे० ) हरे रंग का एक कीड़ा या पतिंगा, प्रांगी -संज्ञा, स्त्री. (दे०) अँगिया, प्रकृतज्ञ, बेमुरौपत, कृतघ्न ।
- चोली। अखि-मिचौलो-संज्ञा, स्त्री० यौ० (दे०) गुर* ( श्राँगुल )-संज्ञा, पु. दे. (हि० भाँख+ मोचना ) लड़कों का एक (हि० अंगुल ) अँगुल, अंगुर । खेल जिसमें एक लड़का अपनी आँखें बंद “बावन आँगुर गात "-रहीमः । करता है और सब लड़के छिप जाते हैं, श्राँगुरी* (अाँगुरि )-संज्ञा, स्त्री० दे० जिन्हें वह ढूंढ़ता और छूता है, जिसे वह | (हि. अँगुली ) अँगुली, उँगली-अंगुरी ढूंढ़ कर छू लेता है, फिर वह आँख बंद | (दे० ) आँगुरिया, अंगुरिया। करता है-श्रांख-मिचौनी, आँख- | "गयो अचानक आँगुरी ....." वि० । मोचनी, अाँख-मिहीचनी (दे०)। "काहू उठायो न आँगुर हू है"-रामा० । " खेलन आँख मिहीचनी आजु"...... । आँच- संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० अर्चि) गरमी, मति।
। ताप, लौ, आग की लपट, आग, प्रताप, "आँख-मीचनी संग तिहारे न खेलिहैं".-1 चोट, हानि । अखि मुंदाई-श्राख-मुचाई-संज्ञा, स्त्री० मु०-श्रांच खाना-गरमी पाना, श्राग (दे० ) प्रांख-मिचौनी, छुवाछुअव्वल, पर चढ़ना, तपना।
आँख-मुदधल, आँख-मीचली (दे०)। श्रांच दिखाना--भाग के सामने रखकर प्रांखा- संज्ञा, पु० (दे० ) एक प्रकार की गरम करना। चलनी, खुरजी।
श्रांच दना-गरम करना ।
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