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अंटाचित करना
अंडा अंटा+चित ) पीठ के बल गिरना, सीधे लपेटने की लकड़ी, विरोध, बिगाड़, लड़ाई, पड़ना, औंधे का विपरीत।
कान की छोटी बाली, मुरकी । मु०-अंटाचित होना-सीधे गिर पड़ना, | अँटौतल-संज्ञा, पु. (हि. अँटना) तेली स्तंभित, अवाक या सन्न होना, बेकाम, या के बैल की आँख का ढक्कन । बरबाद होना, नशे से बेसुध, अचेत, अँठई-संज्ञा, स्त्री० (सं० अष्टपदी) किलनी, बेख़बर, चूर होना।
पाठ पैर वाला, एक छोटा कीड़ा। अंटाचित करना--पछाड़ देना । अंठी-अाँठी-(दे०) संज्ञा स्त्री० (सं० अष्टि अंटाबंधू-संज्ञा, पु० (हि० --अंटक-+-सं०- -गुठली, गोठ) चियां, गुठली, बीज, गिरह, बंधक ) जुए की कौड़ी।
गिलटी, कड़ापन, दही का थक्का ।। अँटिया-संज्ञा, स्त्री० (हि० अंटी ) घास या अंड-संज्ञा, पु० (सं० ) अंडा, अंडकोश, पतली लकड़ियों का बँधा हुआ छोटा गट्टा, फोता, ब्रह्मांड, कस्तूरी, लोक-मंडल, विश्व, पूला, मुर्रा, टेंट-कमर पर बंधी हुई धोती | वीर्य, शुक्र, बीज, रेंड या एरंड, कस्तूरी का के किनारे की तह ।
नाना, मृगनाभि, पंच प्रावरण,-दे. अँटियाना-स० कि. (हि. अंटी) अँगु- कोश, कामदेव, पिंड, शरीर, मकानों की लियों के बीच में छिपाना. चारों उँगलियों छाजन पर रखे हुए कलश । में लपेट कर तागे की पिंडी बनाना, घास अंडज-संज्ञा, पु. ( सं० अंड+ज-पैदा या पतली लकड़ियों का गठ्ठा बाँधना, होना) अंडे से पैदा होने वाले जीव, जैसे ग़ायब करना, हजम करना, टेंट या मुरी में | पक्षी, सर्प आदि। रखना।
अंडकटाह-संज्ञा, पु. (सं० यौ० अंड+ अंटी-संज्ञा, स्त्री. (सं० अष्ठि, प्रा० अहि, कटाह) ब्रह्मांड, विश्व ।। गांठ) उंगलियों के बीच की जगह, धाई, | अंडकोश-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) वृषण, गाँठ, धोती की कमर के ऊपर लपेट, शरारत, अंड, फोता, बैजा, ब्रह्मांड, विश्व-मंडल, बदमाशी।
लोक, सीमा, हद, फल का ऊपरी छिलका । म०-अंटी में रखना-टेंट या मुर्रा में अंड-बंड- संज्ञा, स्त्री० (अनु०) असम्बद्ध, उटखोसना।
पटांग प्रलाप, अनापशनाप, व्यर्थ की बात, अंटी करना- शरारत करना, धोखा देकर | बे सिर-पैर का बकना, इधर-उधर का, किसी की कोई वस्तु ले लेना, आँख बचा अटांय-सटांय, अस्तव्यस्त, अगड़-बगड़, कर चुपके से किसी का माल उड़ा देना। __ अंट-संट, बकबक। अंटी मारना---जुए में उँगलियों के बीच अँडरना- क्रि० अ० (सं० अंतरण ) बाल में कौड़ी का रख लेना, या छिपाना, कम निकलते समय धान के पौधे की दशा, तौलना, डांडी मारना, तराजू की डांडी में गर्भना, रेंडना। हेर-फेर करना।
अंडवृद्धि- संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं० अंड+ तर्जनी या अँगूठे के पास की उँगली के ऊपर वृद्धि ) अंडकोश के बदने या सूजने का रोग। मध्यमा या बीच की उँगली चढ़ाकर बनाई। अंडस- संज्ञा, स्त्री० (दे०) कठिनता, बाधा, गई एक मुद्रा, (जब कोई लड़का कोई संकट, असुविधा। अपवित्र वस्तु छू लेता है तब और लड़के भंडा-संज्ञा, पु० (सं० अंड ) अंड-पत्ती, छूत से बचने के लिये ऐसी मुद्रा बनाते सर्प आदि के उत्पन्न होने की एक सफेद हैं) सूत या रेशम की पिंडी, अंटरेन, मूस, गोल घस्तु । शरीर, देह, पिंड।
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