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प्रशोक-पुष्पमंजरी 《བད
अश्रांत अशोक-पुष्पमंजरी- संज्ञा, स्त्री० यौ० । अशौचनिवृत्ति-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) (सं० ) दंडक वृत्त का एक भेद विशेष। अशुद्धि से निवृत्त होना, अशुचिता का प्रशोक-बाटिका-संज्ञा. स्त्री० यौ० (सं०) नाश । शोक-नाशक रम्य उद्यान या उपवन, रावण अशौचान्त-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) अशौच की उस प्रसिद्ध वाटिका का नाम जिसमें । का अन्तिम दिवस, सूतक का श्राखीरी उसने सीता जी को रक्खा था और जिसे दिन । हनुमान जी ने उजाड़ डाला था, अशोक- । अशौर्य-संज्ञा, पु. ( सं० ) शूरता का वन, यह परम रमणीक वन था।
श्रभाव, भीरुता, कायरता, अशूरत्व, अशाच-सोच-संज्ञा, पु० दे० (सं० श्रविक्रम । अशोक ) शोक-रहित, शोकाभवा, सोच- अश्मंतक-संज्ञा, पु० (सं० ) मूंज की तरह रहित, शोच-हीन ।
की एक घास, जिससे प्राचीन काल में प्रशोचनीय-वि० (सं० ) जो शोच करने मेखला बनाते थे, श्राच्छादन, ढकना। योग्य न हो।
| अश्म-संज्ञा, पु० (सं० अश्+मन् ) पत्थर, प्रशोच्य-वि० (सं० ) शोक के अयोग्य । पर्वत, मेघ, बादल, पाहन, पहाड़ । वि० प्रशोचनीय।
_ अश्मक-संज्ञा, पु० (सं० ) दक्षिण के एक " अशोच्याननुशोचस्त्वम् "--गीता०। प्रान्त का प्राचीन नाम, बावनकोर । प्रशोध-संज्ञा, पु० (सं०) शोध या खोज अश्मकेश-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) अश्मक का अभाव ।
देश का राजा, जो महाभारत में लड़ा था। वि. जिसका शोध या खोज न हो। अश्मकुट्ट-संज्ञा, पु० (सं०) पत्थर से अन्न प्रशोधन-संज्ञा, पु० (सं०) न शुद्ध करना। को फूट कर खाने वाले वानप्रस्थ अशोधित-वि० (सं० ) जो शुद्ध न किया। विशिष्ट जन । गया हो, असंस्कृत, असंशोधित। अश्मज-संज्ञा, पु. (सं०) शिलाजीत, वि० श्रशोधनीय-न खोजने लायक, लोह, पत्थर से उत्पन्न वस्तु । शुद्ध न करने योग्य ।
अश्मदारण-संज्ञा, पु० (सं० ) पत्थर प्रशाभन—वि० (सं० ) असुन्दर, अश्री, काटने वाला अस्त्र ।
जो रम्य न हो, अरमणीक, कुरूप, असौम्य । अश्मरी-संज्ञा, स्त्री० (सं० ) पथरी नामक अशोभनीय-वि० (सं० ) जो शोभा के रोग, मूत्रकृच्छ्र रोग।
योग्य न हो, भद्दा, कुत्सित, अरमणीय। अश्रद्धा-संज्ञा, स्त्री० (सं०) श्रद्धा का प्रशोभा-संज्ञा, स्त्री. (सं० ) शोभा या अभाव, अभक्ति, घृणा, अविश्वास । सौंदर्य का प्रभाव, छटा-रहित, छवि-विहीन । अश्रद्धय-वि० ( सं० ) अनादरणीय, वि० कुरूप, बुरा, अनगढ़, भद्दा ।
भक्ति के योग्य जो न हो, अपूज्य, असेन्य, प्रशोभित-वि० (सं०) जो शोभित या घृण्य, घृणा के योग्य, असेवनीय ।
सुन्दर न हो, अरम्य, अरुचिर, अरोचक । अश्रय-संज्ञा, पु० (सं० अश्र+पा+ड) प्रशौच-संज्ञा, पु० (सं० ) अपवित्रता, राक्षस, निशाचार। अशुद्धता, किसी प्राणी के मरने या किसी प्रश्रवण-वि० (सं०) कर्णाभाव. बिना बच्चे के पैदा होने पर घर में मानी जानी। कान के, न सुनना। वाली एक प्रकार की अशुद्धि, मल त्याग के अश्रोत-वि० (सं० ) जो थका-माँदा न सम्बन्ध रखने वाली अशुचिता।
हो, अशिथिल।
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