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हरनाकुस, हरिनाकुस
हरसना हरनाकुस, हरिनाकुस -संज्ञा, पु० दे० (फा० हरामजादः ) नटखटी, बदमाशी, (सं० हिरण्यकशिपु) दैत्य-राज, हिरण्यकशिपु, शठता, दुष्टता, शरारत । वि०-हरामजादा । प्रहलाद का पिता।
हरमुष्ठा- संज्ञा, पु० (दे०) हृष्ट-पुष्ट, हट्टा-कट्टा, हरनाच्छ-हरिनाच्छा*-संज्ञा, पु. दे. मोटा-ताजा, बलवान । ( सं० हिरण्याक्ष ) हिरण्याक्ष नामक दैत्य, हरये*-अव्य० दे० ( हि० हरुवा ) धीरे हिरण्यकशिपु का छोटा भाई।
धीरे, रसे रसे, हौले-हौले, हरएँ । हरनी-संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि. हिरन ) मृगी, हरवल*--संज्ञा, पु० दे० ( तु. हरावल ) छिगारी, हिरन की मादा, हरिनी, हिरनी।
सेना का अग्रभाग, वे सिपाही जो सेना में
| सब से भागे रहते हैं। हरनोटा-संज्ञा, पु० दे० (हि. हिरन ) हिरन
हरवली-संज्ञा, स्त्री० ( तु० हरावल ) फौज का बच्चा. हिरनौटा, हरिनौटा।
की अफसरी या सरदारी, सेना की अध्यक्षता। हरफ़-संज्ञा, पु० (अ०) वर्ण, अक्षर, हर्फ,
हरवा-संज्ञा, पु० दे० (सं० हार ) माला, हरूक (दे०) । मुहा०-किसी पर हरफ़
हार । वि. हरुवा, हलका। आना-दोष या अपराध लगना, कलंक
हरवाना-प्र. क्रि० दे० (हि. हड़बड़ ) लगना । हरफ़ उठाना- वर्ण या अक्षर
शीघ्रता, या जल्दी करना, उतावली या पहिचान कर पढ़ लेना।
आतुरता करना । स० कि० दे० (हि. हारना) हरफा-रेवड़ी-संज्ञा, स्त्री० दे० ( सं० हरि- हारना का प्रे० रूप । पर्वरी ) कमरख की जाति का एक पेड़ और
हरवाह-हरवाहा-संज्ञा, पु० दे० (सं० उसके फल ।
हलवाह ) हल चलाने या जोतने वाला । हरबर-क्रि० वि० दे० (सं० शीव हि० हड़बड़) स्त्री-हरवाहिन । संज्ञा, न्त्री०-दरवाही। हड़बड़, शीघ्रता, शीघ्र, घबराहट के साथ। हरष*-संज्ञा, पु० दे० ( सं० हर्ष ) पानंद राम-काज को काज जानि तह मुनिवर प्रमोद, खुशी, सुख, मोद, प्रसन्नता, हरख हरबर प्रायो"-रा. घु० । संज्ञा, स्त्री. (दे०)। " सिय-हिय हरष न जाय कहि" (दे०) हरबरी-शीघ्रता, श्रातुरता
-रामा०। संज्ञा, पु० (दे०) हरषन, हर्षण हरबराना -अ.क्रि० दे०(हि. हड़बड़ाना) हड़बड़ाना, शीघ्रता करना, शीता के हरपना*---अ० क्रि० दे० (सं० हर्ष+नाकारण घबरा जाना।
प्रत्य० ) प्रसन्न या हर्षित होना, मुदित हरबा-संज्ञा, पु० दे० (अ० हरबः ) औज़ार,
होना, प्रानंदित होना, हरखना (दे०)। अस्त्र, हथियार।
" हरषि सुरन दु'दुभी बजाई "-रामा० । हरबोंग-वि० दे० यौ० (हि० हल -- बोंग )
हराना* - अ० क्रि० दे० (हि० हरष - लहम र, गँवार, देहाती. अक्खड़, मूर्ख,
भाना-प्रत्य० ) प्रसन्न या हर्षित होना, जड़ । संज्ञा, पु० अत्याचार, अंधेर, उपदव,
खुश होना, हरखाना (दे०) । स० कि.
हर्षित या प्रसन्न करना। कुशासन ।
हरषित-वि० दे० (सं० हर्षित ) हर्षित, हरम-संज्ञा, पु० (अ०) जनानखाना, अंत:
प्रसन्न, मुदित । " हरषित भई सभा सुनि पुर । संज्ञा, स्त्रो०-रखेली स्त्री, मुताही दासी, __ बानी"--स्फु०। पत्नी । यो०-हरमसरा-अंतःपुर, रसना-अ० कि० दे० (हि. हरषना) जनानखाना ।
प्रसन्न या हर्षित होना मुदित होना । स० हरमजदगी, हरामजदगी-संज्ञा, स्रो० रूप-हरसाना, हरसावना ।
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