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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्फुट - स्पर्शजन्य १८३३ स्पर्शजन्य-वि० यौ० (सं०) संक्रामक, जो स्पष्टवादी-संज्ञा, पु. (सं०) स्पष्टवक्ता, छूने से उत्पन्न हो, छुतहा । साफ़ साफ कहने वाला। स्पर्शन=संज्ञा, पु. (सं०) स्पर्श, छूना, ' स्पष्टीकरण-संज्ञा, पु० (सं०) किसी बात श्रालिंगन । वि०-स्पर्शनीय, स्पर्शित । को ठीक ठीक या साफ़ साफ़ कहना या स्पर्शनेंद्रिय-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) स्पर्शे- । करना, लगी-लिपटी परखना, स्पष्ट करने न्द्रिय, त्वगिन्द्रिय, छूने या स्पर्श करने की की क्रिया, प्रकटीकरण । इन्द्रिय, त्वचा, खाल । स्पृक्का--संज्ञा, स्त्री० (सं०) लजालू, लाजवंती, स्पर्शमणि-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) पारस ब्राह्मी बूटी, अलबरग (प्रान्ती.)। पत्थर। स्पृश-वि०(सं०) छूने या स्पर्श करने वाला। स्पर्शास्पर्श-संज्ञा, पु० यौ० ( सं० स्पर्श + | स्पृश्य--वि० (सं०) स्पर्श करने योग्य, छूने अस्पर्श ) छूने या न छूने का विचार या योग्य । संज्ञा, स्त्री० (सं०) स्पृश्यता। भाव, छूत-पाक। स्पृष्ट---वि० (सं०) स्पर्शित, छुपा हुआ । स्पर्शित-वि० (सं०) जो छुपा गया हो, स्पृहणीय- वि० (सं०) श्राकांक्षनीय, इच्छा जिसका स्पर्श किया गया या हुआ हो। या कामना के योग्य, अभिलाषा करने योग्य, स्पर्शी-वि० (सं० स्पर्शिन् ) छूने वाला। वांछनीय, गौरवशाली। स्पर्शन्द्रिय-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं० त्वर्गिद्रिय, स्पृहा-संज्ञा, स्त्री० (सं०) आकांक्षा, अभि. स्वचा, खाल, स्पर्शज्ञान-कारिणी इंद्रिय ।। लाषा, कामना, इच्छा, चाह, वांछा । स्पष्ट-वि० (सं०) सान समझ में श्राने या "स्पृहावतीवस्तुपुकेषु मागधी"-रघु० । दिखाई देने वाला, प्रगट, सुव्यक्त, साफ़ स्पृही-वि० (सं०) आकांक्षी, इच्छा या साफ़, सपष्ट (दे०)। संज्ञा, पु. (सं.)। कामना करने वाला, इच्छुक, अभिलाषी। उच्चारण का एक प्रयत्न-भेद जिसमें दोनों | स्फटिक-संज्ञा, पु० (सं०) काँच जैसा पार. श्रोठ परस्पर छूते हैं। दर्शी एक मूल्यवान पत्थर, बिल्लौर पत्थर, स्पष्टकथन-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) साफ़ | सूर्य-कांत-मणि, काँच, शीशा, फिटकरी, साफ या ठीक ठीक कहना, जिसमें साफ़ फटिक (दे०)। " बभूव तस्य स्फटिकाक्षसमझ पड़े, स्पष्टवचन, किसी के कथन मालया'-माघ० । को ठीक उसी रूप में जैसे उसने कहा था, | स्कार-वे. (सं०) विपुल, बहुत, प्रचुर, कहना। विकट, अधिक, ज़्यादा, फाडा या फैला स्पष्टतया-स्पष्टतः-कि० वि० (सं०) यथार्थ हुश्रा । वि०-स्फारित । रूप से, साफ़ साफ़,ठीक ठीक,स्पष्ट रूप से। काल-संज्ञा, पु. (सं०) धीरे धीरे हिलना, स्पष्टता-संज्ञा, स्त्री. (सं०) यथार्थता, फड़कना, फुरती, तेजी, स्फूर्ति । वि०समाई, स्पष्ट होने का भाव । स्फालित । संज्ञा, पु० स्फालन । स्पष्टवक्ता- सज्ञा, पु० यौ०(सं०) स्फ़ साफ़ | स्फीत-वि० (सं०) वर्द्धित, बढ़ा या फूला कहने वाला, जो कहने में किसी का कुछ हुआ, समृद्ध । “स्फीतो जन पदो महान" भी लिहाज़ न करे। - वा. रा.। स्पष्टवाद-संज्ञा, पु. यो० (सं०) साफ या स्फुट-वि० (सं०) जो सम्मुख दिखलाई देता ठीक कहना, यथार्थवाद । संज्ञा, स्त्री. (सं०) हो, व्यक्त, प्रकाशित, विकसित, खिला स्पष्टवादिता, यथार्थ वादिता, सत्य- हुआ, साफ़, स्पष्ट, भिन्न भिन्न, अलग वादिता। अलग, फुटकल, पृथक । For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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