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सोवन १८२८
सोहराना सोवन -संज्ञा, पु० दे० (हि. सोवना)| प्रादि भेजे जाते हैं, लेंहदी, सिंदूर वास्त्रासोने की क्रिया का भाव ।
भूषणादि सोहगो की वस्तुएँ । सोवना -अ० क्रि० दे० (हि. सोना) सोहन ---वि० दे० ( सं० शोभन ) सुहावना, सोना, नींद लेना।
अच्छा लगने वाला, सुंदर । “ मोहन को सेवा-संज्ञा, पु० दे० (हि० सोया ) सोया, मुख सोहन जोहन जोग ---व० रा. ।
एक प्रकार की भाजी या साग, साया। संज्ञा, पु० (दे०) नायक, सुंदर व्यक्ति। संज्ञा, सोवाना-स० क्रि० दे० (हि. सुलाना ) स्त्री० (दे०) एक बड़ा पक्षी विशेष । स्त्री०-- सुलाना, सुवाना।
सोहनी। सोवैया*-संज्ञा, पु० (हि. सोवना) | सोहन-गपड़ी--संज्ञा, सी० यौ० ( हि.) सोने वाला।
एक प्रकार की मिठाई, मोहनपपरी (दे०) सोषक-संज्ञा, पु० दे० (सं० शोषक ) मोहन-हलवा, सोहन-हलुवा- संज्ञा, पु० सोखने वाला, शोषक।
दे० यौ० ( हि. सोहन । हलवा-अ.) एक सोषण-सोपन*-संज्ञा, पु. दे० ( सं० स्वादिष्ट मिठाई । शोषण ) सोखने वाला । वि.-सोपनीय. मोहना-अ० क्रि० दे० (सं० शोभन ) सोषित ।
छजना, सजना, फबना, सुशोभित होना, सोषना*-- अ० क्रि० दे० (हि. सोखना) अच्छा या प्रिय लगना सोभना। स. रूपसोखना । स० रूप सोपाना, प्रे० रूप- सोहाना. सुहाना । वि० (दे०) शोभन, सोषवाना।
मनोहर, सुन्दर, सुहावना, मोहावना । स्रो. सोषु-सोलु*-वि० ( हि० सोखना ) सोखने -सोहनी! वाला।
सोहनी-- संज्ञा, स्त्री० ० ( सं० शोधनी ) सोसन-संज्ञा, पु० दे० ( फा० सेसन ) एक | झाड़, बुहारी, बढ़नी । वि० स्त्री० ( हि० फूल, सोखन, शोषण (सं.)। यो०-गुले- सोहना ) सुंदर, सुहावनो। सौसन ।
मोहबत - संज्ञा, पु० दे० ( अ० मुहब्बत ) सोसनी-वि० दे० ( फा० सौसनी) सोपन संग, साथ, संभोग, संगत, प्रसंग । वि.
के फूल के रंग का, लालीमिला नीला रंग। माहवती। सोऽसि-वाक्य० (सं० सोऽसि ) सो तू है, सोहंमोहमस्मि-वा० (सं०) सोऽहम् ,
सोऽहमस्मि । “सोहमस्मि इति वृत्ति सोऽस्मि*-बा० यौ० (सं०) सोऽहम्, वह अखंडा"- रामा। मैं हूँ, सोऽहमरिम।
मोहर, सोहल, मोहला-संज्ञा, पु० दे० सोह-क्रि० वि० ( हि० सोहना ) सोभा (हि० सोहना ) मांगलिक गीत बच्चा पैदा देना। " मध्य वाग सर साह सुहावा" | होने पर स्त्रियों से गाया जाने वाला गीत, -रामा० । क्रि० वि० दे० (हि० सौह ) स्वाहर !ग्रा०) । संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० सूत शपथ, कसम, सौंह (व.)।
का ) सूतिका-गृह, सोवा, सौरी। सोह-सोहंग-वा० दे० (सं० सोऽहम् ) सोहरल-संज्ञा, स्त्री० दे० ( अ० शोहरत ) सोऽहम् ।
(अ०) प्रख्याति, कीर्ति, शुहरत। सोहगी-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. सोहाग) सोहराना -- स० क्रि० दे० (हि. सुहलाना ) तिलक चढ़ने के बाद व्याह की एक रीति धीरे धीरे पलना या हाथ फेरना, सोहजिसमें लड़की के हेतु वस्त्राभरण और सिंदूर | रावना, साहलाना ।
तस्वमसि ।
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