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लता।
सोमलता १८२७
सावज सोमलता-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) सोम- पु. ( 'हे. ) सोरठा छंद (पिं० ) एक लतिका, सेामवल्ली, सोमवल्लरी, एक श्रोड़व राग ( संगी०)। लता।
| सोरठा--संज्ञा, पु० दे० (सं० सौराष्ट्र) ४८ सोमवंश-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) चंद्र-वंश । मात्राओं का एक मात्रिक छंद जिसके प्रथम सोमवंशीय-वि० (सं०) चंद्रवंश-संबंधी, और तृतीय चरण में ग्यारह, ग्यारह और चंद्र-वंश में उत्पन्न व्यक्ति।
दूसरे और चौथे चरण में तेरह, तेरह मात्रायें सोमवती अमावास्या-संज्ञा, स्त्री० यौ०. होती हैं, दोहे को उलट देने से सोरठा बन (सं०) सोमवार को पड़ने वाली अमावास्या । जाता है, (पिं० )। जिसे शुभ मानते हैं ( पुरा० )। सोरनी --संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि० सँवारना+ सोमवल्लरी----संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) ब्राह्मी- ई-प्रत्य . ) झाइ, बुहारी, कूचा, विरात्रिबूटी, र, ज, र, जर (गण) वाला एक वर्णिक
नामक एक मृतक-संस्कार जो तीसरे दिन छंद, तूण, चामर छद (पि०)।
होता है। सोमवल्ली-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) सोम- सोरखा-संज्ञा, पु. (दे०) शोरबा, रसा,
सुरुवा (दे०)। सोमवार--संज्ञा, पु. यौ० (सं०) चंद्रवार । सोरह-सोलह-वि० दे० (सं० षोडश) सोमवारी--संज्ञा, ४० दे० ( सं० सोमवती) षोडश, दश और छै। संज्ञा, पु०-2 अधिक
सोमवती अमावस्या, सोमवारी अमावस। दश की संख्या, षोडश या अंक, १६ । साम-सुत-संज्ञा, पृ.० यौ० (सं०) बुध । मुहा०-सोलही आने-पूरा पूरा, संपूर्ण, सोमात्मज-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) बुध, सब का सब । सोलह आने पावरत्ती चंद्रात्मज ।
(मुहा० )। सोमावती--- संज्ञा, सो० (सं०) चंद्रमा की सोरही-लही--संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. माता।
सोलह ) जुआ खेलने की सोलह चित्ती सीमास्त्र-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) एक अस्त्र कौड़ियाँ, इनसे खेले जाने वाला जुआ। या बाण।
सारा-स्वाग*-संज्ञा, पु० दे० (फा० शोरा) सोमेश, मोमेश्वर--संज्ञा, पु० यौ० (सं०)
शोरा । वि. दे० ( हि० सोलह ) सोलह । शिवजी सोमनाथ जी, एक संगीताचार्य । सोलंकी-संज्ञा, पु० (दे०) क्षत्रियों का एक सोय*-सर्व दे. ( हि० सोही+ई ) सोई, ।
ह० साहा+इ ) साइ, राज-वंश जो प्राचीन काल में गुजरात का वही, सो। " करहु अनुग्रह सेोय"- अधिकारी था। रामा०। अ० कि० पू० का० ( हि० सोना ) सोलहसिंगार-संज्ञा, पु० दे० यौ० ( सं० सोकर।
गार ) सब श्रृंगार मिलकर, उबटन साया- संज्ञा, पु० दे० ( सं० मिश्रेय ) साप्रा,
स्नानादि, सोरहसिगार। सोवा, एक प्रकार की भाजी या साग । सा०
सोला --- संज्ञा, पु. (दे०) एक ऊँचा झाड़ भू० कि० वि० ( हि० सोना )।
जिसकी डालियों के छिलकों से टोप (हैट) सार* -- संज्ञा, पु० दे० (फा० शोर ) शोर, बनता है। संज्ञा, पु० वि० (दे०) सोलह, कोलाहल, हल्ला, प्रसिद्धि, ख्याति, नाम। आग की लपट ।। संज्ञा, सो० दे० (सं० शटा ) मूल, जड़। सोलाना-१० क्रि० दे० (हि. सुलाना ) सोरठ-संज्ञा, पु०दे० (सं० सौराष्ट्र ) दक्षिणी सुलाना। काठियावाड़ या गुजरात का पुराना नाम, सोवज-संज्ञा, पु. (दे०) सावज (हि.) वहाँ की राजधानी ( सूरत नगर )। संज्ञा, वह वन पशु जिसका लोग शिकार करते हैं।
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