SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1829
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सेराब १८१८ सेवनीय "जनम सिरानो ऐसहि ऐसे।" स० क्रि०- सेवा ) सेवा । संज्ञा, पु० दे० (फ़ा० सेब ) शीतल या ठंढा करना। “जनम सेरानो जात सेब फल ( मेवा ) । " सेव कदम कचनार, है जैसे लोहे-ताव रे"- स्फु० । मूर्ति श्रादि । पीपर रत्ती तून तज"-फु० । का पानी में प्रवाह करना । “नदी सिरावत | सेवक-संज्ञा, पु. (सं० सेवा या टहल मौर"-तुल. । करने वाला, किंकर अनुचर, छोड़ कर कहीं सेराब–वि० (फ़ा०) जलाई, पानी से तर, न जाने वाला, दास, नौकर, भृत्य, चाकर, सींचा हुश्रा, सराबोर। भक्त, उपासक, निवास करने वाला, दरजी, सेरी-संज्ञा, स्त्री० (फा० ) तुष्टि, तृप्ति, प्रयोग करने या काम में लाने वाला। पासूदगी। “जा सेरी साधू गया सो तो | "सेवक सो जो करै सेवकाई"-रामा० । राखी मूंद'- कबी०।। स्त्रो०-सेविका, सेवकी, सेवकनी, सेल-संज्ञा, पु० दे० (सं० शल , भाला, सेवकिन, सेवकिनी। बरछा । संज्ञा, स्त्री० (दे०) माला, बद्वी। सेवकाई-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० सेवक + सेलखड़ी--संज्ञा, स्त्री० दे० (सं. शिला, आई --हि० प्रत्य० ) सेवक का काम, सेवा, शैल + खटिका ) एक प्रकार की खड़िया, ___टहल, नौकरी, दासता। सेलखरो, सिलाखरी (दे०)। सेवग--संज्ञा, पु० दे० (सं० सेवक ) दास, सेलना-अ० कि० दे० (सं० शेल) मर सेवक। जाना। सेवड़ा--संज्ञा, पु० (दे०) जैन मत के साधुओं सेला-संज्ञा, पु० दे० (सं० शल्लक ) रेशमी का एक भेद । संज्ञा, पु० दे० (हि. सेव ) चादर । मैदे के मोटा सेव या पकवान विशेष । सेलिया-संज्ञा, पु० (दे०) घोड़े की एक सेवति-संज्ञा, स्रो० दे० ( सं० स्वाति ) जाति । स्वाति नक्षत्र । सेली-संज्ञा, स्त्रो० (हि० सेल) छोटा भाला। सेवती- संज्ञा, स्त्री० (सं०) सफ़ेद गुलाब । संज्ञा, स्त्री० (हि. सेला ) छोटा दुपट्टा, गाँती (प्रान्ती०), यती-योगियों के गले | सेवन-संज्ञा, पु. ( सं०) खिदमत. सेवा, की माला या सिर में लपेटने की बद्धी, श्राराधना, परिचर्या, वास करना, उपासना, स्त्रियों का एक भूषण । उपयोग, नियमित व्यवहान. गंथना, प्रयोग, सेल्ल-सेल्ला-संज्ञा, पु० दे० (सं० शल) उपभोग, सीना, खाना, पीना । स्त्रीभाला, बरछा, सेल । सेवनीय, सवित, सेव्य, सेवितव्य । सेल्ह-संज्ञा, पु० दे० (सं० शल ) सेल, . सेवना*-स० क्रि० दे० (सं० सेवन ) सेवा भाला, बरछा। करना, उपासना करना, पूजना, प्रयोग या सेल्हा-संज्ञा, पु० दे० (सं० शल्लक ) सेला, उपभोग करना (अंडा) सेना। " सेवत रेशमी चादर। तोहिं सुलभ फल चारी"--- रामा० । सेवई-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० सेविक) लेमई। सेवनी- संज्ञा, स्त्री० (सं०) परिचारिका, दासी सेवर*-संज्ञा, पु. दे० (सं० शाल्मली) अनुचरी । “ स्वसेवनीमेव पवित्रयिष्यति" सेमर, सेमल, वृक्ष विशेष ।। -नैप० । सेव--संज्ञा, पु० दे० (सं० सेविका ) मोटे सेवनीय-वि० (सं०) सेवा या पूजा के योग्य, डोरे जैसे चने के आटे या बेसन से बने उपभोग या व्यवहार के योग्य, प्रयोग के एक पकवान ! *-संज्ञा, स्त्री० दे" (सं० लायक, सीने-योग्य । For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy