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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org सुविचार सुविचार-संज्ञा, पु० (सं०) अच्छा विचार, सुन्दर न्याय या निर्णय श्रेष्ठ भाव या मत । सुविज्ञ - वि० (सं०) श्रति चतुर, प्रवीण, पंडित, विद्वान | संज्ञा, स्रो० (सं०) सुविज्ञता । सुविधा- पंज्ञा स्त्री० (सं०) सुभीता, समाई। सुवृत्ता-पंश, खो० (सं०) एक अप्सरा, १६ वर्णो ं वाला एक वर्णिक छंद (पिं० ) । सुवेल - पंज्ञा, पु० (सं०) लंका का त्रिकूटाचल (रामा० ) ! सुवेश - वि० (सं०) वस्त्राभरण से सुसज्जित, श्रलंकृत, सुन्दर वेश-युक्त, सुन्दर, सुरूपवान, श्रभूषित | सुमेध - वि० ६० (सं० सुत्रेश) सुन्दर, सुसज्जित, सुन्दर वेश-युक्त ! सुषित --- वि० दे० (० मुवेश) सुसज्जित, सुन्दर वेश-युक्त । १८०३ -- सुवेस - वि० दे० (सं० सुवेश) मनोहर, सुन्दर, सुवेश युक्त | सुब-- वि० (स०) सुध्दता से व्रत का पालन करने वाला | सुशोभन वि० (सं०) प्रति सुन्दर, दिव्य, श्रति शोभनीय | वि० दुशाभनीय । सुशोभित - वि० (सं०) अति शोभायमान, अत्यंत शोभित ! सुश्राव्य वि० (सं०) जो सुनने में प्रिय लगे, श्रुति-वि । (सुश्री - वि० (सं०) अतिशोभित, शोभायुक्त, अत्यंत सुंदर या धनी, कांतिमान ! Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुषुम्ना सुश्रुत - संज्ञा, पु० (सं०) सुप्रसिद्ध, सुश्रुतसंहिता के रचयिता एक प्रमुख श्रायुर्वेदाचार्य, उनका ग्रंथ । " शारीरे सुश्रुतः प्रोक्तः " - स्फु० 1 सुखा (दे० ) - सुश्रूषा – संज्ञा स्त्री० दे० (सं० शुश्रूप) सेवा, परिचर्य्या, टहल, खुशामद । यौ० - सेवा सुश्रूषा । सुन्लोक - वि० (सं०) यशस्वी, विख्यात, प्रसिद्ध धर्मात्मा । "सुश्लोक-शिखामणिः " सुशिक्षित - वि० (सं०) भलीभाँति शिक्षा प्राप्त, भली-भाँति सीवा हुआ ! स्त्री० - सुशिक्षिता । सज्ञा, सी० सुशिला । सुशील - वि० (०) उत्तम स्वभाव वाला, शीलवान, साधु, सज्जन, विनीत । "समुझि सुमित्रा राम सिय, रूप सुशील सुभाव'"रामा० । खो०- सुशील। सज्ञा, खो०सुनीता | या अवस्था । सुथुंग-संज्ञा, पु० (सं०) श्रृंगी ऋषि सुन्दर सुपुति - संज्ञा, स्रो० (सं०) घोर निद्रा, गहरी शृंग या सींग वाला | नींद, अज्ञान (वेदा० ), चार अवस्थाओं में से एक अवस्था, चित की वह अनुभूति या वृत्ति जिसमें जीव नित्य ब्रह्म की प्राप्ति करता हुआ भी उसका ज्ञान नहीं रखता (पा० योग० ) । सुषुम्ना -- संज्ञा, स्त्री० (सं०) शरीर की ३ प्रमुख नाड़ियों में से नासिका के मध्य भाग ( ब्रह्मरंध्र) में स्थित रहने वाली एक नाड़ी ( हठ योग ), १४ प्रमुख नाड़ियों में से नाभि के मध्य में स्थित एक नाड़ी (वैद्य० ) - भा० द० । सुप - संज्ञा, पु० दे० ( सं० सुख ) सुख । सुषमना- सुषमनि-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० सुषुम्ना ) एक नाही ( हठ योग ) । सुषमा - संज्ञा, स्रो० (सं० ) अति शोभा, श्रतिसुंदरता, सुखमा (दे०), १० वर्णों का एक वर्णिक वृत्त (पिं० ) । " सुषमा यस कहुँ सुनियत नाहीं ". सुपाना* - अ० क्रि० दे० ( हि० सुखाना ) सुखाना, ग या धूप में आर्द्रता मिटाना । सुपारा - वि० दे० (हि० सुखारा ) सुखारा, प्रसन्न, खुशी | - रामा० । सुषिर -संज्ञा, पु० (सं०) बेंत, बाँल, अग्नि, वायु बल ने बजने वाला एक बाजा । वि० - पोला, छिद्रयुक्त, छेददार । सुषुप्त - वि० (सं०) गहरी, निद्रा से युक्त, गहरी नींद में सोया हुआ, प्रति निद्रित । संज्ञा, स्त्रो० ६० (सं० सपुप्ति ) सोने की दशा For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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