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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - पथ्य। सुन्ना १७६० सुपेद, सुपेत सुन्ना-संज्ञा, पु० दे० ( सं० शून्य ) शून्य, सुपारी, सुपाड़ी----संज्ञा, स्रो० दे० (सं० बिंदी, साईफ़र । सुप्रिया) पूग, छालिया (प्रान्ती०) । पूँगी. सुन्नी--संज्ञा, पु. (अ०) चारयारी, चारों फल, नारियल की जाति का एक पेड़ जिसके खलीफाओं को प्रधान मानने वाला मुसल- छोटे फल पान में काट कर खाये जाते हैं, मानों का एक समुदाय । विलो०-शिया । इस पेड़ के बेर जैसे कड़े फल, गुवाक सुपंथ-संज्ञा, पु० (हि०) सुन्दर मार्ग, सदा- (प्रान्ती०)। मुहा०-सुपारी लगनाचार, अपना मार्ग या कर्तव्य, स्वपथ सुपारी का हृदय देश में अटकना जो दुखदायी (सं.)। होता है । सुपारी फोड़ना-निठल्ले सुपक्क-वि० (सं०) भली भाँति पका हुआ। बैठे रहना। सपारी में खेलना-व्यर्थं संज्ञा, स्त्री० सुपक्कता। अपव्यय या हानिप्रद कार्य करना। सुपच-संज्ञा, पु० दे० (सं० श्वपच ) | सपार्श्व - संज्ञा, पु० (सं०) जैन मत के २४ चाँडाल, डोम, भंगी। तीर्थकरों में से ७वें तीर्थकर. सुन्दर सुखद, सुपत-वि० दे० (सं० मु+पत= इज्जत- | पड़ोस । हि० ) प्रतिष्ठित, सम्मानित । सुपास -- संज्ञा, पु० (दे०) पाराम, सुख, सुपत्थ-संज्ञा, पु० दे० (सं० सुपथ ) सुपंथ, | सुवाय, सुखद निवास स्थान या पड़ोस । उत्तम मार्ग, अच्छा रास्ता, सन्मार्ग, अच्छा | "जहँ सब कहँ सब भाँति सुपासा"-रामा० । सुपासी-वि० दे० (हि. सुपास ) सुखद, सुपथ-संज्ञा, पु० (सं०) सत्पथ, सदाचार, सुखदायी, सुख देने वाला। “सीकर ते सन्मार्ग, उत्तम रास्ता, अच्छी राह, सदा त्रैलोक्य सुपासी"-रामा० । " तुलसी वसि चरण, र, न, भ, र (गण) और दो गुरु चरें | हर पुरी राम जपु जो भयो चहै सुपासी" वाला एक वार्णिक छंद (पिं०)। संज्ञा, पु. -विन० । दे० ( सं० सुपथ्य ) सुन्दर या उचित पथ्य । सुपुत्र--संज्ञा, पु० (सं०) अच्छा लड़का, वि० (सं० सु+पथ) समतल, बराबर।। सुपूत (दे०)। सुपना, सपना-संज्ञा, पु. १० ( सं० स्वप्न) सुपुर्द-संज्ञा, पु० दे० (फ़ा० सिपुर्द) सौंपना, स्वप्न, सोना, सपनो। सुपनाना-*स० क्रि० दे० (हि. सुपना) पिपुर्द करना, सुपुरुद, सिपुरद (ग्रा०)। स्वम दिखाना, सपनाना (द०)। सुपूत-संज्ञा, पु० दे० (सं० सुपुत्र ) सपूत। सुपरस-संज्ञा, पु० दे० ( सं० स्पर्श ) स्पर्श, अचछा लड़का, सुपुत्र । "लोक छाँड़ि तीनै छूना, सुखद स्पर्श। चलें, सायर, सिंह, सुपूत"-नीति । सुपर्ण संज्ञा, पु. (सं०) पक्षी, गरुड़, विष्ण, सुपूती---संज्ञा, स्रो० दे० ( हि० सुपूत +ई+ किरण, घोड़ा। संज्ञा, पु० (सं.) सुन्दर पत्र प्रत्य० ) सुपुत्रता, सप्रती (दे०), सुप्तपन, सुपर्णी-संज्ञा, स्त्री० (सं०) गरुड़ की माता, सुपूत होने का भाव । सपर्ण, पद्मिनी, कमलिनी। संज्ञा, पु. ( सं० सुपेत-वि० दे० ( फा० सुफ़ेद ) सफेद, सु+पर्ण ई०-प्रत्य० ) सन्दर पत्तों वाला। उज्वल, सपेद (ग्रा.)। सुपात्र-संज्ञा, पु. (सं०) किसी कार्य के सुपेती-संज्ञा, स्त्री० दे० (फा० सफेदी) योग्य या उचित व्यक्ति, श्रीष्ठ या उत्तम, सफ़ेद होने का भाव, श्वेतता, धवलता, सुयोग्य पात्र, उपयुक्त व्यक्ति, अच्छा बरतन । सफ़ेद रजाई या तोशक । "दानं परम् किंच सुपात्रदत्तम्'-प्र०२०। | सुपेद, सुपेता-वि० दे० ( फा० सुक्कैद ) संज्ञा, स्त्री० -सुपात्रता । सफ़ेद, उजला, साफ़, स्वच्छ । For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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