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सुधंग १७८७
सुधाना सुधंग-संज्ञा, पु० दे० (हि. सु+ ढंग), संशोधन करना, ठीक या दुरुस्त कराना, उत्तम या अच्छा ढंग, अच्छी रीति ।
सुधराना।
| सुधराना-२० क्रि० (दे०) सुधार कराना । सुध, सुधि-संज्ञा, स्त्री० दे० ( सं० शुद्ध =
सुधां-प्रत्य० दे० (सं० पह) सहित, समेत, बुद्धि ) याद, स्मरण, स्मृति, स्याल, ध्यान, पता, खबर, चेत। "सुग्रीवहुँ सुधि मोरि
सुधांग-संज्ञा, पु० यौ० ( सं० सुधा+अंगबिसारी । सुध न तात सीता की पाई"
सुधांशु) चन्द्रमा। " नाम तौ सुधाँग पै रामा० । मुहा०--सुध दिलाना- याद |
विषाँग पो जनाई देत"-मन्ना० । दिलाना । सुध न रहना (होना)-भूल जाना, याद न रहना । सुध बिसरना
सुधांशु-संज्ञा, पु० यौ० (सं० सुधा-+-अंशु)
चन्द्रमा, सुधाकर, चाँद। भूल जाना। सुध बिसराना या बिसा
सुधा-ज्ञा, स्त्री. (सं०) पीयूष, अमृत, रना-किसी को भूल जाना । सुध
जल, गंगा, मकरंद, दूध, मधु, रस, मदिरा, भूलना-सुध बिसरना । यो०-सुध
अर्क, पृथ्वी, विष, एक वर्णिक वृत्त (पि.)। बुध (सुधि-बुधि)-होश-हवास । मुहा० ।
"सुधा-समुद्र समीप बिहाई", "मुये करैका -सुध बिसरना-चेत या होश में न
सुधा-तड़ागा"-रामा० । रहना । सुध बिसराना-बेहोश या अचेत
सुधाई-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि० सूधा = सीधा) करना । वि० दे० ( सं० शुद्ध ) शुद्ध। संज्ञा,
सीधापन, सिधाई, सरलता। स्त्री० दे० ( सं० सुधा) सुधा, अमृत, सुधी।
सुधाकर-संज्ञा, पु. (सं०) चंद्रमा। "लिखत सुधन्वा-संज्ञा, पु. (सं० सुधन्वन् ) विष्णु, सुधाकर लिखिगा राहू"-रामा० । श्रेष्ठ धनुर्धर, विश्वकर्मा, अंगिरस, एक राजा सुधागेह-संज्ञा, पु० यौ० (सं० सुधा+गेह(महा०) । संज्ञा, पु० (हि.) अच्छा धनुष ।। हि०) चन्द्रमा, सुधागृह । “नाम सुधागेह सुधमना --वि० दे० (हि० सुध =होश+ ताहि शशांक मलीन कियो, ताहु पर चाहु मन ) सजग, सचेत, सावधान, जिसे चेत बिनु राहु भखियतु है"-कविः ।। हो । स्त्री०-सुधमनी।
सुधाघट-संज्ञा, पु. यौ० (सं० सुधा+घट) सुधरना-अ० कि० दे० (सं० शोधन ) चन्द्रमा सुधापात्र। सँभलना, दुरुस्त होना, संशोधन होना, सुधाधर-संज्ञा, पु० (सं०) चन्द्रमा । बिगड़े हुये का बन जाना। स० रूप
"वसुधा घर पै बसुधाधर पै और सुधाधर पै सुधारना, प्रे० रूप-सुधरवाना, सुध
त्यों सुधा पै लसै"-रघु०।। राना।
सुधाधाम-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) चन्द्रमा । सुधराई-संज्ञा, स्त्री० (हि. सुधरना) सुधार,
"एरे सुधा-धाम सुधा-धाम को सपूत है के, बनाव, सुधारने की मजदूरी, सुधरने का
बिना सुधा धाम तू जरावै कहा वाम को"
-कुं० वि०। भाव।
सुधाधार-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) चंद्रमा। सुधर्म-संज्ञा, पु० (सं०) सुन्दर या उत्तम
सुधाधी-वि० (सं० सुधा) अमृत के समान । धर्म, पुण्य-कार्य, श्रेष्ठ कर्त्तव्य ।
सुधाना--स० क्रि० दे० (हि. सुध) स्मरण सधी -वि० सं० सुम्मिन् ) धार्मिक, या सुधि कराना, याद दिलाना, सुधि
धर्मात्मा, धर्मनिष्ट, सुधर्मिष्ठ ।। याना । अ० क्रि० दे० (हि० सूधा) सीधा सुधरवाना-स० क्रि० दे० (हि. सुधरना का । होनाया करना । स० क्रि० दे० (हि. सोधना) प्रे० रूप) कोई दोष या त्रुटि मिटाना, सोधना, सोधवाना-सोधने का काम
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