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सिचाना
१७६०
सिताखंड पक्षी। " मन मतंग गैयर हने, मनसा भई गले वाला । संज्ञा, पु० (सं० शितकंठ) महासिचान"-कबी० ।
देव जो। “दस कठ के कंठन को कठुला सिचाना-स. क्रि० दे० (हि. सिचना का सितकंठ के कंठन को करिहौं' - रामा।
सक रूप) पानी दिलाना, सिंचाना। सितकर --संज्ञा, पु. यौ० (सं०) सितांशु, सिच्छा- संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० शिक्षा शिक्षा, चन्द्रमा, सितरश्मि । उपदेश, सीख । " चक्रधर-सिच्छा की सितता-मज्ञा, स्त्री० (सं०) सफ़ेदी, उज्व. समिच्छा करि लैहों मैं"- श्रव०।। लता, श्वेतता, धवलता। सिजदा- संज्ञा, पु. (अ.) प्रणाम, सितपत्त ---संज्ञा, पु० यौ० (सं०) हंस पक्षी, दण्डवत ।
धवल या श्वेत पक्ष शुक्ल पक्ष । सिझना--अ० कि० दे० (सं० सिद्ध) आँच सितभानु- संज्ञा, पु० यौ० (सं०) चंद्रमा, पर पकना, सिझाया जाना।
सितरश्मि । सिझाना - स० कि० दे० (सं० सिद्ध) श्राँच सितम-संज्ञा, पु. (फ़ा०) अन्याय, जुल्म, पर पका कर गलाना, तपस्या करना, रस । अत्याचार, अनर्थ, ग़ज़ब । " तिसपै है यह या तेल आदि में तर करना, सिझावना सितम कि निहाली तले उसकी" - (दे०)। प्रे० रूप-सिझवाना।
सौदा। सिटकिनी- सज्ञा, स्त्री. (अनु०) चटकनी, सितमगर--संज्ञा, पु. (फ़ा०) अन्यायी,
चटखनी, कीवाड़ बंद करने का यंत्र। जालिम, अत्याचारी । " माशूक सितमगर सिटापिटाना--अ० क्रि० दे० (अनु०) दब ने मेरी एक न मानी'- स्फुट० । जाना, मंद पड़ जाना।
सितमदीदह-वि० (फा०) जिसने अन्याय सिट्टी--सज्ञा, स्त्री० दे० (हि० सीटना) बहुत या जुल्म देखा हो. मज़लूम ।
ही बढ़ बढ़ कर बोलने वाला', वाकपटुता। सितरी-संज्ञा, स्त्री० (दे०) पसीना, स्वेद। मुहा०--सिट्टी (सिट्टी-पट्टो) भूलना- सितला-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० शीतला) सिपिटा जाना।
शीतला, चेचक, सीतला। सिठनी-सज्ञा, स्त्री० दे० (सं. अशिष्ट) व्याह सिनवराह-- सज्ञा, पु. यौ० (सं०) श्वेत
के समय गाने को गाली, सीठना प्रान्ती०)। शूकर, सफेद सुअर । सिठाई--- संज्ञा, स्त्री० दे० (हि० सीठी) नीर- सितवराह-पत्नी - संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०)
सता. फीकापन, मंदता । विलो-मिठाई। भूमि, पृथ्वी। सिड़-सज्ञा, स्त्री० (दे०) पागल पन, सनक, ! सितसागर--संज्ञा, पु० यौ० (सं०) श्वेत धुन, उन्माद।
। सागर, क्षीर सागर, सफेद समुद्र । सिड़ी-वि० दे० (सं० शृणक) उन्मत्त, पागल, सितांशु- सज्ञा, पु० यौ० (स०) सितरश्मि, बावला, सनकी, धुनी।
चन्द्रमा (दे०), शीतांशु। सित-वि० (सं०) उज्वल, श्वेत, धवल, सिता-संज्ञा, स्त्री. (सं०) मिश्री. शक्कर,
सफेद, चमकीला, स्वच्छ, सान । “करन चीनी। “दूनी सिता डारि दिन प्रति सो समीप भये सित केसा" रामा० । संज्ञा, खवाइये" -- कुवि० । शुक्ल पक्ष, मोतिया, पु. (सं.) उजाला पाख, शुक्ल-पक्ष, चाँदी, मल्लिका, शराब, मद्य । " सिता, मधुक, चीनी, शक्कर । 'सितोपलापाड़शकं स्यात्" | खजुर"-भा० प्रा० । -भा० प्र०।
सिताखंड-- संज्ञा, पु० (सं०) मिश्री, शहद सितकंठ-वि० यौ० (सं०) सितग्रीव, श्वेत । से बनाई हुई शक्कर ।
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