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साधू १७४३
सापराध साधू-संज्ञा, पु० दे० (सं० साधु ) संत, साधु, करना, उत्तरदायी या ज़िम्मेदार बनाना, महात्मा, सज्जन, भलामानुस । वि० (दे०) पम्मिलित करना (बुराई में)। प्रे० रूपसीधा, आर्य, श्रेष्ठ । “सब कोउ कहै राम | सनाना, सनावना, सनवाना। सुठि साधू”– रामा०।
सानी संज्ञ, स्त्री० दे० (हि० सानना) खारी साधी, साधी-संज्ञा, पु० दे० (सं० साधु) या खली पानी प्रादि में सान कर पशुओं को संत, साधु, साधव (दे०), साधवः (सं०)। देने का भोजन । वि० अ०) द्वितीय, दूसरा, "कहत कबीर सुनौ भाई साधो ''--1 समता या तुल्यता का, बराबरी या मुकाबले साध्या--वि० (सं०) सिद्ध करने योग्य, जो ।
का कि० वि० (हि.)-सनी हुई। यौ---- सिद्ध हो सके, सरल, सहज, जिसे सिद्ध या लासानी -... अप्रतिम, अद्वितीय, अद्वैत । प्रमाणित करना हो (न्या०) रेखा-गणित में मुहा० --सानी न होना ( रखना )सिद्ध करने योग्य सिद्धान्त । संज्ञा, पु० --- समान न होना। देवता, वह पदार्थ जिसका अनुमान किया
सानु-संज्ञा, पु० (सं०)पर्वत-शृंग, पहाड़ की जावे ( न्या. ) सामर्थ्य,शक्ति । “ततःसाध्यं
चोटी, अन्त', शिखर, सिरा, चौरस भूमि, समीक्षेत् पश्चादिषगुपाच रेत्".-लो०रा० ।
जंगल, वन । “पाश्चात्य भागमिह सानुयु वि० (सं०) सम्भव, साधन करने योग्य या
संनिषण्णाः " - माघ । जिसे पूर्ण या सम्पन्न कर सके। वि० --
सानुकूल-वि० (सं०) प्रसन्न, कृपालु, दुस्साध्य। विलो०- असाध्य ।
दयालु । संज्ञा, स्त्री० (सं० ) सानुकूलता, साध्यता---संज्ञा, स्त्री० (सं० ) साध्य का !
पु. (सं०) सानुकूल्य। धर्म या भाव, साध्यत्व। साध्यवसानिका--संक्षा, स्त्री० (सं० )
सानुकरण---वि० (सं०) अनुकरण-पूर्वक ।
सान्निध्य-हाज्ञा, पु० (सं०) समीपता, निकलक्षणा का एक भेद (सा० द०)।
टता, सामीप, सन्निकटता, मुक्ति या मोक्ष साध्यसम-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) वह हेतु या कारण जो माध्य की भाँति साधनीय
__ का एक रूप या भेद। हो ( न्या० )।
साप, सापा - संज्ञा, पु० दे० ( सं० शाप ) साध्वी--वि० स्त्री. (सं०) पतिवता, पवित्र । शाप, साप, बददुश्रा । “साँचे साप न या शुद्ध चरित्र वाली स्त्री । यौ०-सती.
लागई, साँचे काल न खाय "..- कवी० ।
सापयश-वि० (सं०) अयश के साथ । साध्वी। सानंद-वि० (सं०) हर्ष या आनंद के साथ,
r-वि. lione या ग्रानेटमा सम्पत्ति-वि० स्त्री. (सं०) आपत्तिया श्रानंद-पूर्वक, सहर्ष ।
सापत्य - वि० (सं०) सपत्य या लड़के के सान, शान--- संज्ञा, पु० दे० ( सं० शाण )
के साथ । विनो-अनपत्य । बाद रखना, वह पत्थर जिस पर हथियार सापत्न्य--सझा, पु० (स०) सातपन, सौत का पैने किये जाते हैं। महा-सानदेना या लड़का, सपली या सौत का धर्म या कार्य । धरना (रखना)-धार पैनी या तेज़ करना। सापना - स० क्रि० दे० (सं० शाप) शाप सान (शान ) रचना (चढ़ाना ) ! या बददुश्रा देना, कोसना, गाली देना। उत्तेजित या उत्साहित करना।
संज्ञा, पु० (दे०) सपना, स्वम (सं.)। मानना-स० कि० दे० ( हि० अ० कि० सापराध--वि० (सं० ) अपराधविशिष्ठ सनना ) मिश्रित करना, मिलाना, गधना, | अपराधयुक्त, दोषी, सदोष, कलंकी, कसूरी, चूर्णादि को द्रवपदार्थ में मिला कर गीला गुनहगार, गनाही।
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