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सहेजना
साँगी अपना सा समझता हो, दयालु, दयावान, । साँई'- संज्ञा, पु० दे० (सं० स्वामी) स्वामी, सज्जन, भलामानुप, सदय । संज्ञा, खो० ।। सँईयाँ, सांइयाँ (ग्रा.) परमेश्वर, मालिक, (सं०) सहृदयता।
पति, भर्ता, मुसलमान फकीरों की उपाधि । सहेजना -- स० कि० द० ( अ० सही ) भली "माँई के दरबार में, कमी काहु की नाहि" भाँति जाँचना, गिनना, या सँभालना, खूब --कबी० । " साँई सब संसार में मतलब समझा-बुझाकर पौंपना या कह-सुनकर को व्यवहार"---गिर० । “जाको राखै सिपुर्द करना
साइयाँ"---कबी०। सहेजवाना-स० कि० द. ( हि० सहेजना साँऊगी--संज्ञा, स्त्री० (दे०) साँगी, गाड़ी का का प्र रूप ) सहेजने का कार्य दूसरे से भंडार । वि० ( प्रान्ती० ) ठीक रास्ते पर कराना !
स० कि० (दे०) सउगियाना। सहेट-मदत--संज्ञा, पु० दे० (सं० संकेत ) साँक--संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० शंका ) शंका, प्रेमी और प्रेमिकाओं के मिलने का पूर्व ! भय, डर, श्वास रोग । निश्चित या निर्दिष्ट स्थान, संकेत भवन, साँकडा - संज्ञा, पु० दे० (सं० शृंखला ) संकेतस्थान, मम्मिलनस्थल ।
पैरों का एक प्राभूषण विशेष, बड़ी मोटी सहेत, सहेतुक-वि० (सं०) जिसका कुछ और भारी जंजीर । प्रयोजन या मतलब हो, उद्देश्य या कुछ सांकर* ---- संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० शृंखल ) कारण से युक्त।
जंजीर, पकरी श्रृंखला । संज्ञा, पु० दे० सहेली-संज्ञा, स्त्री० द० (सं० सह + एली (सं० सकीर्ण) संकट, आपत्ति, कष्ट । -~-हि० प्रत्य० सम्वी, संगिनी,साथिनी दासी। वि० (दे०)-संकीर्ण, तंग, सकरा, कष्टमय, " गावहिं छवि अविलोकि सहेली दुःखमय । स्त्री० (दे०) साँकरी । “साँकरी रामा० । यौ० मस्त्री सहेली।
गली मैं प्रली कैयौ बेर अटकी"- पद्मा० । सहया* ----संज्ञा, पु० दे० ( सं० सहाय ) "साँकरन की साँकर सम्मुख होत ही".-. महायक, मददगार । वि० दे० ( सं० सहन ) राम० । अस सांकर चलि सकै न सहिष्ण,, सहन या बर्दाश्त करने वाला। , चाँटी"... पद्म। सहोक्ति --संज्ञा, मो. यौ० (सं.) एक सॉकरा ---वि० दे० । सं० संकट ) संकट, काव्यालंकार, जहाँ संग, साथ, महादि सँकरा, जंजीर. संकीर्ण, तंग। शब्दों के प्रयोग के साथ, अनेक कार्य एक साँख. साधू-संज्ञा, पु० दे० ( सं० शाल ) हो साथ होते कहे जायें (अ० पी०)। एक पेड़, शाल वृक्ष । सहोदर---संज्ञा, पु० (सं०) एक ही माता से सांख्य-संज्ञा, पु. (सं०) महर्षि कपिल-कृत उत्पन्न संतान, एक दिल वाला । वि०- एक दर्शन शास्त्र जिसमें सत्व, रज, तममयी सगा, अपना, ख़ास । स्त्री० सहोदरा। प्रकृति को ही मूल (सृष्टि सार) माना है। " मिलै न जगत सहोदर भ्राता"-रामा०।। "साँख्य शास्त्र जिन प्रकट बखाना"-रामा । सहोटी-संज्ञा, स्त्री. (दे०) चौखट, द्वार। सांग वि० (सं०) अंगों के सहित, पूर्ण । सहा--संज्ञा, पु० सं०) सह्याद्रि पर्वत ! साँग-संज्ञा, स्त्री० दे० ( सं० शक्ति ) शक्ति, विशेष । वि० (सं०) सहने योग्य, बर्दाश्त फेंक कर मारने की बरछी, बरछा, भाला।
करने लायक । ( विलो० --असहा)। वि० दे० (सं० साग ) सम्पूर्ण, पूरा, अंगों सह्याद्रि-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) एक पर्वत के सहित । विशेष (बंबई प्रान्त)।
| मांगी-संक्षा, स्त्री० दे० (सं० शक्ति ) शक्ति,
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