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सरीकता
१७२०
सरोसामान सरीकता-संज्ञा, स्त्री० दे० ( का० शरीक + इस वक्त, अभी, इस दम, इस समय ता-हि० प्रत्य०) हिस्सा, साझा, साथ, के हेतु। मेल ।
| सरे बाजार-क्रि० वि० (फ़ा० ) हाट में, सरीखा-वि० दे० (सं० सदृश ) जैसा, बाजार में, सब लोगों या जनता के सन्मुख, तुल्य, बराबर, समान, सदृश ।
सब के सामने, खुले श्राम । सरी-वि० (दे०) शरीफ़, ( फ़ा० ) भला. संरेस--संज्ञा, पु० दे० ( फा० सरेश ) सरेश, मनुष्य ।
एक ललदार वस्तु. जो भैप श्रादि के चमड़े सरीफा---संज्ञा, पु० दे० (सं० श्रीफल ) एक या मछली के पोटे को पका कर बनाई छोटा पेड़ और उसके गोल मीठे फल, जाती है, सरेस प्रान्ती.)। शरीफ़ा।
सरो-संज्ञा, पु. (दे०) भाऊ जैसा एक सरीर -संज्ञा, पु० दे० (सं० शरोर) सदा हरा रहने वाला सीधा वृन । शरीर, देह, अंग। “राम-काज छन-भंग सरोकार - सज्ञा, पु० (फा०) वास्ता, लगाव, सरीरा"-रामा० । वि०, संज्ञा, पु० (दे०) ताल्लुक, सम्बन्ध, प्रयोजन, परस्पर व्यवहार। शरीरी । वि० (दे०) शरीर ( फ़ा०) “श्र.प को हमसे सरोकार नहीं क्या मानी" बदमाश, दुष्ट ।
-स्फु०। सरीरहप-संज्ञा, पु. ( सं० ) रेंगने वाला सराज --- संज्ञा, पु. ( सं० ) कमल । " मुखजन्तु. साँप, सर्प आदि ।
सरोज मकरन्द छवि "-रामा०। सरुज--वि० (सं०) रुग्ण, रोगयुक्त, रोगी। सरोजना-२० क्रि० (दे०) प्राप्त करना,
" क्षण भंगी है सरुज शरीरा'-- वासु। पाना। सरुष-वि० (सं०) कुपित को प्रयुक्त । सराजिनी—संज्ञा, खी० ( सं०) कमलों का सरुहाना-अ० कि० (दे०) अच्छा होना।। समूह, कमलों का तालाब, कमल का फूल, " अजों न सरुहें निठुर तुम, मये और ही कमलिनी। भाय"-मति।
सरोट -संज्ञा, पु. दे० (हि. सिलवट ) सरुहाना-स० क्रि० (दे०) रोन-युक्त करना, बिछौने में पड़ी सिलवट या शिकन, मुरीं । अच्छा करना।
सरोता-सरौता-संज्ञा, पु. (दे०) सुपारी सरूप-वि० (सं०) साकार, थाकार वाला, काटने का हथियार, सरउता (ग्रा०)। रूप-युक्त, समान, सदृश, तुल्य, सम, सरोद-संज्ञा, पु. ( फ़ा० ) बीन जैसा एक सुन्दर, रूपवान । संज्ञा, पु० (दे०) स्वरूप । बाजा। सरूर--संज्ञा, पु० दे० (फ़ा० सरूर) प्रसन्नता, सरोरूह-- संज्ञा, पु० (सं० ) कमल ।। खुशी, हष, हलका नश।।।
सरोवर--संज्ञा, पु० (सं०) तड़ाग ताल, सरेख, सरेखा -वि० दे० (सं० श्रेष्ठ) झील, तालाब, पुवरा । " तथा सरोवर चतुर, सज्ञान, होशियार चाला , सयाना, ताकि पियासा"-रामा०। बड़ा और समझदार । संज्ञा, स्त्री० सरेखी। सरोष-वि० (सं० ) सक्रोध, कोप-युक्त, "हँसि हँसि पूछहि सखी सरेखी"---पद्मा० । कुपित । " सुनि सरोष भृगुवंश-मणि, बोले संज्ञा, स्त्री० (दे०) सरेखता- चतुरता। गिरा गंभीर"- रामा० । सरेखना-अ.क्रि० (दे०) सहेजना, सौंपना, सरो-सामान -- संज्ञा, पु. (फा०) मालसिपुर्द करना ।
असबाब, सामग्री. उपकरण, सामान, सरदस्त-क्रि० वि० (फा०) इस समय, | मालटाल ।
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