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समझाना
समया
समझाना-स० कि० (हि. समझना) शिक्षा समधिन --- संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० संबंधी)
देना, सिखाना, समझने में लगाना । बेटा या बेटी की सास, समधी की स्त्री। समझावा-पंज्ञा, पु० दे० ( हि० समझ ) | समधियान, समधियाना--संज्ञा, पु. यौ० सीख, सिखावन, शिक्षा, उपदेश ।
(दे०) समधी का घर या गाँव ! समझौता-- संज्ञा, पु० दे० ( हि० समझ ) समधी - संज्ञा, पु० दे० सं० संबंधी) पुत्र या परस्पर का निपटारा, सुलह ।
पुत्री का ससुर वि० सं०) समान बुद्धि समतल ---- वि० (सं०) जिसकी सतह बराबर वाला । म समधी देखे हम आजू"--- या हमवार हो, साफ. चिकना । " समतल
रामा। महि तिन-पल्लव डासी".. रामा ।
समधोरा ... संज्ञा, १० (दे०) दो समधियों साला----संज्ञा, स्त्री० (सं०) पादृश्य, तुल्यता,
की परस्पर भेंट करने या मिलने की एक बराबरी, समानता। “समता कहँ कोऊ
रीति (व्याह.), समधियारी (ग्रा.)। त्रिभुवन नाहीं "-- रामा० ।
समन - पल्ला, पु० दे० (सं० शमन) शमन, समताई-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० समता ) ! तुल्यता, समानता, बगाबरो।
यम, हिंसा, शांति, दमन । “मातु मृत्यु
पितु समन समाना"-रामा० ।। ममतल--- वि० दे० यौ० ( सं० समतुल्य ) रमान, सदृश, बराबर, तुल्य । " तदपि
समन्तात्-श्रव्य० (सं.) चारों ओर, सब
तरफ से। सकोच समेत कबि, कहैं सीय समतल "..---
समन्न----संज्ञा, पु० (दे०) सेहुड़ का पेड़ । रामा। समता--वि० दे० ( सं० समर्थ ) शक्तिशाली.
समन्वय--संज्ञा, पु० (सं०) मिलाप, मिलन, पराक्रमी, बली, समर्थ ।
संयोग, मेला, कार्य-कारण का प्रवाह, समत्रिभुज, समविवाह-संज्ञा, पु. यौ०
अनुगतता, विरोधाभाव । " तत्तु समन्व(सं० ) वह त्रिभुज क्षेत्र जिएकी तीनों भुजायें
यात् "... यो. द. समान हों, समविवाहु ।
समन्वित- वि० (सं०) संयुक्त मिला हुआ। समय-न-वि० यौ०६० (सं० समस्थल )
" भोजनं देहि राजेन्द्र पृत-सूप-समन्वितम्' समतल भूमि।
--भो० प्र० । समदन-संज्ञा, स्त्री० (दे०) नज़र, भेट। समपाद संज्ञा, पु० (सं०) वह छंद जिसके समदना---० कि० (३०) प्रेम से मिलना,
चारों चरण एक से हों (पिं० )। नज़र, भेंट या दहेज देना । “दुहिता समदौ
समबत्त-वि० (सं०) समान बल, पौरुष या सुख पाय अबै-रामः । "समदि काम पराक्रम वाला । "रामबल थधिक होह मेलिय सिर धूरी"---पद० ।
बलवाना'.-रामा० । समदर्शी- संज्ञा, पु. ( सं० समदर्शिन् । समभाव--- संज्ञा, पु० यो० (सं०) समता, या सब को समान या एक सा देखने वाला, बराबरी का भाव, समानता ! समदरसी (दे०)! " कहा बालि सुनु भीरु ! समय----संज्ञा, पु. (सं०) अवसर, काल, प्रिय, समदर्शी रघुनाथ'-रामा०। बेला, वक्त.मौका. अवकाश, फुरसत, अंतिम समदृष्टि-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) सब को ! काल, समै (दे०)! "समय जानि गुरु समान दृष्टि से देखना।।
प्रायसु पाई"-रामा० । समद्विबाहु --- संज्ञा, दु. यौ० (सं०) वह समया-संज्ञा. पु० दे० (सं० समय) अवसर, त्रिभुज क्षेत्र जिसकी दो भुजायें तुल्य हों। काल, बेला, वक्त, मौक़ा, अवकाश, फुरसत, भा० श० को०-२१४
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