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सप्तऋषि १७०१
सफ़र सप्तऋषि-सप्तर्षि -- पंज्ञा, पु. यौ० (सं० समर्षि -- संज्ञा, पु० (सं०) सात ऋषियों का सप्तर्षि ) सात ऋषियों का समूह । " तबहि समूह या मंडल, गौतम, भरद्वाज, विश्वा. सप्तऋषि शिव पहँ पाये"-रामा। मित्र, यमदग्नि, वसिष्ठ, कश्यप, अत्रि इति, सप्तक-संज्ञा, पु. (सं०) सात पदार्थों का शतपथः । मरीचि, अंगिरा, अत्रि, पुलह, समूह, सात स्वरों का समूह (संगी०)। क्रतु, पुलस्त्य, वसिष्ठ-इति महाभारत । उत्तर सप्तजिह्वा -- संज्ञा, पु० यौ० (सं०) सप्तर्चिषा, दिशा में जदय होने वाले सात तारे जो सात जीभों वाला, अग्नि, श्राग।
ध्रुव तारे के चारो ओर घूमते दीखते हैं, मनताल · संज्ञा, पु० यौ० (सं०) ताड़ के (भूगो०)। ७ वृक्ष जिन्हें एक ही बाण से राम ने गिरा सप्तरातो---संज्ञा, स्त्री. (सं०) सात सौ का कर बालि वध की क्षमता प्रगट की थी। । समूह, सात सौ छंदों का समूह, सतसई, सप्तति-संज्ञा, स्त्री० (सं०) सत्तर, ७० की सतसइया (दे०)। संख्या।
सप्ताश्व-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) सात घोड़ों मप्तदश-वि• यौ० (सं०) सत्तरह, सत्रा । के रथ में बैठने वाले सूर्य ।
सप्तसागर --- संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) सात सप्तद्वीप-संज्ञा, पु. यौ० (सं० ) पृथ्वी में समुद्रः - क्षीर, दधि, घृत, इच्छु. मधु, स्थल के सात मुख्य बड़े विभाग, जम्बू , प्लक्ष. | मदिरा, लवण, सप्तदधि, सप्ताँबुधि । कुश, शाल्मलि, क्रौंच, शाक और पुष्कर सप्तस्वर---संज्ञा, पु. यो० (सं०) सात प्रकार द्वीप । यो०-सप्तद्वीप-नवखंड।
की ध्वनियाँ, सात स्वर, पड्ज, मध्यम, सप्तपदी-संज्ञा, स्त्री. (सं०) भाँवर, भौंरी, गान्धार, ऋषभ, निषाद, धैवत, पंचम व्याह, विवाह में वर बधु की अग्नि के चारों (संगी० - स, रे, ग, म, प, ध, नी)। पोर परिक्रमा की रीति, भाँवरि, भँघरी सप्ताल-ज्ञा, पु० (दे०) शफ़्तालू , सतालू । (दे०) । भाँवरी, भैउरी (ग्रा०)।
समाह-हाज्ञा, पु० (सं०) सात दिनों का सप्तपर्ण-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) छतिवन समूह, हफ्ता (फा०), ७ दिनों में पढ़ो सुनी वृक्ष । " पप्तपर्णो विशालत्वक् शारदो, . जाने वाली भागवत की कथा । वि० (सं०) विषमच्छदः"-अमर०।
साप्ताहिक। समपर्णी-संज्ञा, स्त्री० (सं०) लज्जावंती लता, सप्रीति-श्रव्य (सं०) प्रेम सहित, प्रेम से, लजालू ।
प्रीति से । “सुनि मुनीस कह वचन सप्रीती" सप्तपाताल-संज्ञा, पु. यो० (सं०) पृथ्वी -रामा०। के नीचे के सात लोक, अतल, वितल, सप्रेम-प्रत्र्य. ( सं० ) प्रीति-पूर्वक, प्रेम सुतल, रसातल, तलातल,महातल, पाताल । सहित, प्रीति से, स्नेह से । “ समय सप्रेम सप्तपुरी--संज्ञा, स्त्री० यौ० सं०) सात पवित्र विनीत ति, सकुच सहित दोउ भाय"-- नगर या तीर्थः --अयोध्या, मथुरा, हरिद्वार, रामा०। (माया) काशी, कांची, अवंतिका (उज्जयनी) सफ़-संज्ञा, स्त्री० (अ०) अवली, पाँति, पंक्ति, द्वारका ।
___ कतार, लंबी चटाई, सीतल पाटी, कक्षा । सप्तम-वि० (सं०) सातवाँ । स्त्रो०--प्तमी। सफतालू--संज्ञा, पु० (दे०) श्राड़ फल । सप्तमी - वि० स्त्री. (सं०) सातवीं, सप्तमी, सफ़र--संज्ञा, पु. (अ०) प्रयाण, यात्रा, सत्तिमी (दे०)। संज्ञा, स्त्री० (सं०) किसी प्रस्थान, अमण, राह चलने का समय या पक्ष की सातवीं तिथि, अधिकरण कारक ! दशा । संज्ञा, पु० मुसाकिर । " सफर जो (व्याक०)।
___ कभी था नमूना सेकर का"-हाली।
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