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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org - मुद्रा० । " नमो नमो अर्हत को " श्रर्ह - वि० (सं० ) पूज्य, योग्य, उपयुक्त, श्रेष्ठ, उत्तम, जैसे- पूजाई । संज्ञा, पु० (सं० ) ईश्वर, इंद्र | अर्हणा -- संज्ञा, स्त्री० (सं० ) पूजा, श्राराधना, उपासना । ग्रहणीय - वि० (सं० ) पूजनीय, पूज्य | वि० अति-पूजित, श्राराधित । अ - वि० (सं० ) पूज्य, मान्य, पूजनीय | अर्हत्- अर्हन्– वि० (सं० ) पूजा, सम्मान । संज्ञा, पु० जिन देव, ईश्वर ( जैनियों के ) । अर्हन्नित्यथ जैन- शासन-भृताः "" ܕܕ --- "" ह० ना० । अलं-- अव्य० (सं० ) देखा " लम् काफ़ी । अलंकार - संज्ञा, पु० (सं० ) ज़ेवर, गहना, आभूषण, भूषण, विभूषण, किसी बात को चारु चमत्कार चातुर्य के साथ कहने का ढंग, या रुचिर रोचकता पूर्ण प्रकाशन-रीति ( काव्य ० ) नायिका के सौन्दर्य के बढ़ाने वाले हाव-भाव या श्रांगिक चेष्टायें ( साहि० ) । प्रलंकारिक - वि० ( सं० ) सम्बन्धी, अलंकार से युक्त, अलंकारविभूषित, १५७ चमत्कृत | विभूषित, प्रलंकित- - वि० (दे० ) अलंकृत, (सं० ) श्रभूषित, सजाया हुआ, चमत्कृत, सुसज्जित । अलंकृत - वि० सं०) विभूषित, अच्छी तरह सजाया हुआ, चारु चमत्कृत, समाभूषित, काव्यालंकार युक्त, सँवारा हुआ । स्त्री० प्रलंकृता । अलंकृत काल - संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) हिन्दी साहित्य का वह मध्य काल ( लगभग १६०० ई० से १८०० ई० तक ) जिसमें अलंकार-ग्रंथों तथा काव्यालंकारयुक्त काव्य की विशेष रचना हुई है । प्रलंकृत शैली - संज्ञा, स्त्री० यौ० ( सं० ) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अलक हिन्दी गद्य लिखने का वह ढंग या तरीक़ा जिसमें शब्द-संगठन और वाक्य - विन्यास काव्यालंकार से सजा हुआ रहता है, गद्यकाव्य की एक विशेष रचना - रीति । अलंग - संज्ञा, पु० ( सं० अलंपुर्ण + अंग ) थोर, तरफ़, दिशा । लँग, (दे० ) अलंग ( प्रान्ती० ) । 16 लेन प्रायो कान्ह कोऊ मथुरा लगते 29 - दास० । स्त्री० बाजू, सेना का पक्ष | वि० ( हि० ० - + लंग लँगड़ा ) जो लँगड़ाता न हो । मुहा०—लंग पर आना या होनाघोड़ी का मस्तान | लंघन - संज्ञा, पु० ( सं० अ + लंघन ) न लाँघना, न फाँदना, अनुल्लंघन, अनुपवास, उपवास का अभाव । वि० [प्रलंबित | प्रलंघनोय - वि० (सं० ) जो लाँघने योग्य न हो, अलंघ्य | अलंध्य - वि० (सं० ) जो लांघने योग्य न हो, जिसे न फांद सकें, जिसे टाल न सकें, अटल । प्रलंब - संज्ञा, पु० (दे० ) आलंब, सहारा, सहाय । आसरा, ( दे० ) श्राश्रय, श्राधार । अलंबन - संज्ञा, पु० दे० (सं० आलंबन ) सहारा, आधार, श्राश्रय, श्रासरा । प्रलंबित - वि० दे० (सं० प्रलंवित ) श्राश्रित, आधारित । For Private and Personal Use Only चाल - संज्ञा, पु० (सं० ) भूषण, पर्याप्ति, वारण, वृथा, शक्ति, निरर्थक I संज्ञा, पु० (दे० ) बिच्छू का डंक, विष । अलक - संज्ञा, पु० (सं० ) मस्तक के इधरउधर लटकने वाले बाल, केश, लट, घुंघरार बाल, छल्लेदार बाल, हरताल, मदार, महावर ।
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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