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अर्द्धांगी
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अर्द्धांगी - संज्ञा, पु० (सं० अगिन् ) शिव, शंकर, अर्ध शरीरधारी ।
वि० (सं० ) अधींग रोगग्रस्त, पक्षाघात - पीड़ित ।
पु०
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यौ० ( सं० )
श्रद्धांश - संज्ञा,
अर्ध भाग । श्रर्द्धाली—संज्ञा, स्त्री० ( सं० ) श्रर्द्धालि, श्री चौपाई, चौपाई की दो पंक्तियाँ । श्रद्धोदय - संज्ञा, पु० ( सं० यौ० ) एक ऐसा पर्व - दिन, जब माघ की अमावस्या रविवार को पड़ती है और श्रवण नक्षत्र तथा व्यतीपात योग होता है। अर्धग- संज्ञा, पु० दे० (सं०
ध
अर्धगीळ – संज्ञा, पु० दे० (सं०
शिव ।
अर्पण - संज्ञा, पु० (सं० ) देना, नज़र, भेंट, स्थापन करना । प्ररपन ( दे० ) समर्पण | प्रणीय - वि० (सं० ) देने या भेंट करने के योग्य |
प्रर्पित - वि० (सं० ) दी हुई दिया हुआ, समर्पित ।
दान,
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त
संख्या, अरावली पहाड़, एक असुर, कह का पुत्र, एक सर्प, मेघ, बादल, दो महीने का गर्भ, शरीर में एक प्रकार की गांठ पड़ने वाला रोग, बतौरी रोग ।
अपना-अपना * - स० क्रि० दे० (सं० अर्पण) अर्पण करना, भेंट देना, नज़र
अर्भ - संज्ञा, पु० ( सं० ) बालक, शिष्य, शिशिर, सागपात |
अर्भक - वि० पु० (सं० ) छोटा, रूप, मूर्ख, दुबला, पतला, कृश, नासमझ, स्वरूप,
धींग )
है " - श्र० ब० ।
धींगी) अर्य - संज्ञा, पु० (सं० ) स्वामी, ईश्वर,
वैश्य |
सकृश, कृशतृण ।
संज्ञा, पु० (सं० ) बालक, शिशु, शावक । " गर्भन के अर्भक दलन, परसु मोर प्रति घोर ". रामा० ।
(<
गर्भ माँहि अर्भक द
स्त्री० प्रर्या, प्रर्याणी ।
वि० श्रेष्ठ, उत्तम |
अर्यमा - संज्ञा, पु० (सं० अर्यमन ) सूर्य, बारह आदित्यों में से एक, पितर के गणों में से एक, उत्तर फाल्गुनी नक्षत्र, मदार, नित्य ।
असि -- संज्ञा, पु० ( सं० ) अकस्मात गिरना, एक ही समय गिर पड़ना । प्रर्शना- क्रि० प्र० (सं० ) एक बेर में भहरा पड़ना ।
करना ।
वि० [रपित, घरपनीय (दे० ) । - संज्ञा, पु० (दे० ) ( सं० अर्बुद ) दश कोटि, दस करोड़ की संख्या ।
प्रर्वाक - अव्य० ( सं० ) पीछे, इधर, निपट, समीप, पास ।
अर्वाचीन - वि० (सं० ) पीछे का, आयुनिक, नवीन, नया, नूतन, अज्ञान, विरुद्ध ।
यौ० अर्ब खर्ब - श्रसंख्यात् ।
"अर्ब खर्ब लौं द्रव्य हैं, उदय-ग्रस्त लौं अर्श - संज्ञा, पु० (सं० ) पीड़ा, बवासीर, राज " तु० ।
रोग विशेष ।
- दर्ब - संज्ञा, पु० दे० (सं० अर्बुद द्रव्य ) धन-दौलत, सम्पत्ति । अबक - वि० (सं० ) प्राक्, पूर्व, आदि, , वर, निकट, समीप, पश्चात्, बाद । अर्बुद – संज्ञा, पु० (सं० ) गणित में हवें स्थान की संख्या, दश कोटि, दस करोड़ की
कि- दसा की सुधि जागी
संज्ञा, पु० ( ० ) आकाश, स्वर्ग 1 प्रर्शपर्श- संज्ञा, पु० (सं० ) छुवाछूत,
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अशुद्ध ।
अर्हत - संज्ञा, पु० (सं० ) जैनियों के पूज्य देवता का नाम, जिन, बुद्ध, पूज्य या समर्थ व्यक्ति ।