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शाखा
जाति-वर्ग,
- दोष निकालना । भेद, प्रकार, विभाग, टुकड़ा, फाँक, खंड | शाखा -- संज्ञा, स्त्री० (सं०) डाली, टहनी, प्रकार, विभाग, हिस्सा, वेद की संहिताओं के पाठ तथा क्रम-भेद, अंग, हाथ-पैर, किसी वस्तु से निकले भेद-प्रभेद, साखा (दे० ) । शाखामृग - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) बंदर, बानर । शाखामृग की यह प्रभुताई
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-रामा० ।
शाखी - संज्ञा, पु० (सं० शाखिन् ) पेड़,
वृक्ष, तरु |
शाखोच्चार - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) व्याह के समय उभय ओर की वंशावली का कथन | शागिर्द - संज्ञा, पु० (फ़ा० ) शिष्य, चेला,
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सेवक | संज्ञा, स्त्री०-शागिर्दगी, शागिर्दी । शाख्य- संज्ञा, पु० (सं०) क्रूरता, दुष्टता, धुर्तता । लो०--- “ शठे शाठ्यं समाचरेत् ' " शाठ्यं दुष्ट जने 19 - भ० श० । शाण -- संज्ञा, पु० (सं०) कमौटी, चार माशे की तौल, हथियार पैने करने की सान । शात - संज्ञा, पु० (सं०) कल्याण, मंगल | शातकुंभ संज्ञा, पु० (सं०) सोना, सुख । शातवाहन - संज्ञा, पु० दे० (सं० शालिवाहन ) शालिवाहन नाम के एक राजा । शातिर - संज्ञा, पु० ( प्र०) शतरंज - बाज़, शतरंज का खिलाड़ी । वि० -- प्रवीण, पटु । शाद - वि० ( फा० ) खुश, हर्षित, प्रसन्न | विलो०- नाशाद | शादियाना -संज्ञा, पु० (का० ) हर्ष - वाद्य, श्रानंद, मंगल-सूचक बाजा, बधाई, बधावा । शादी - संज्ञा, नो० (फा० ) खुशी, प्रसन्नता, आनंद, आनंदोत्सव, व्याह, विवाह । शाद्वल -- वि० (सं०) हरा-भरा मैदान, हरी घास, दूब । "ययौ मृगाध्यासित शाद्वलानि
- रघु० । संज्ञा, पु० - रेगिस्तान के बीच की हरियाली और बस्ती, बैल | शान - संज्ञा, स्त्री० ( प्र०) ठाठ-बाट, सजावट, तड़क-भड़क उसक, गुमान प्रतिष्ठा, शक्ति,
शाब्दी व्यंजना
विशालता, मान-मर्यादा, विभूति, भव्यता, करामात । वि० शानदार । मुहा०किसी की शान में किसी की इज्जत या प्रतिष्ठा के संबंध में । गर्व की वेशमुहा०--शान करना ( दिखाना ) - गर्व प्रगट करना | शान-शौकत - संज्ञा, स्त्री० यौ० (०) दबदबा, मर्तवा, तड़क-भड़क, सजावट, तैयारी,
ठाट-बाट सजधज ।
शाप -- संज्ञा, पु० (सं० ) कोसना, स्राप, भर्त्सना, बददुआ, अहित - कामना सूचक शब्द फटकारना. धिक्कार, साप (दे० ) । शापग्रस्त - वि० यौ० (सं०) शापित, जिसे शाप लगा हो ।
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शापना - स० क्रि० दे० (सं० शाप) सापना
(दे० ) शाप देना | " जियमें डस्यो मोहि मति शापै व्याकुल वचन कहंत " - सूरा० । शापित - वि० (सं०) शाप-ग्रस्त, जिसे शाप दिया गया हो ।
शावर भाष्य संज्ञा, पु० ( सं० ) मीमांससूत्रों पर एक प्रसिद्ध भाष्य या व्याख्या । शावरी - संज्ञा, पु० (सं०) शाबरों की भाषा, प्राकृत भाषा का एक भेद ।
शाबाश -- भव्य० ( फा० ) खुश रहो, वाहवाह साधु-साधु, धन्य हो । संज्ञा, स्रो०शावाशी ।
शाब्द वि० (सं०) शब्द का, शब्द-संबंधी, शब्द पर निर्भर, एक प्रमाण । स्त्री० शाब्दी | शाब्दिक - वि० (सं०) शब्द-संबंधी, वैया
करण ।
शाब्दी - वि० स्त्री० (सं०) शब्द - संबधिनी, जो शब्द ही पर निर्भर हो । शाब्दी व्यंजना--संज्ञा, स्रो० यौ० (सं०) वह व्यंजना जो केवल किसी विशेष शब्द के ही प्रयोग पर निर्भर हो और उसके पर्यायवाची शब्द के प्रयोग से न रह जाये । विलो० - प्रार्थी व्यंजना ।
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