________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
विजय १५८३
विजोहा एकांत, निराला, अकेला । संज्ञा, पु० दे० विजाति-संज्ञा, स्रो० (सं०) दूसरी जाति । (सं० व्यंजन ) बिजना, बीजना (दे०) वि०-दूसरी जाति का । पंखा, विनवाँ, वैनवा (ग्रा.)। विजातीय- वि० (सं०) दूसरी जाति का। विजय-संज्ञा, स्रो० (सं०) विवाद या युद्ध विजानना- स० क्रि० (हि०) विशेष रूप से में जीत, जय, विजय, बिज (दे०) विष्णु जानना । के एक पार्शद, एक छंद या मत्तगयंद सवैया विजानु--संज्ञा, पु० (सं०) तलवार चलाने के (केश.) । " न कांक्षे विजयं कृष्ण''--भ० ३२ हाथों में से का एक हाथ. अखवा हाथ । गी। वि.--विजयी यौ० जय-विजय। विज़ारत-संज्ञा, स्त्री. ( अ०) वज़ीर या विजय-पताका- संज्ञा, स्त्री. यो. (सं.)। मंत्री का पद या धर्म अथवा भाव, मंत्रित्व। जीत होने पर उड़ाई जाने वाली पताका विजिगीर-वि० (सं०) जयाकांक्षी, जयाभिजय ध्वज, जय-केतु, जीति का झंडा। लाषी, विजय चाहने वाला, विजयेच्छुक । "विजय-पताका राम की, लंका पै फहराय" संज्ञा, स्त्री० विजिगीषा। " होते हैं धनंजै ~क० वि०।
विजिगीष महाभारत के"-अनू० । विजय-यात्रा--संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) देश विजित--संज्ञा, पु. (सं०) जो जीत लिया जीतने के विचार से की गई यात्रा, विजे- गया हो, जीता हुआ देश, हारा हुआ, जात्रा (दे०)।
पराजित । " मुझ विजित जरा का, एक विजयलक्ष्मी-विजयश्री-संज्ञा, स्त्री० यौ० श्राधार जो है -पि. प्र.। (सं०) जय-लक्ष्मी. विजय की प्रधान देवी विजेता- संज्ञा, पु. ( सं० विजेतृ ) जीतने जिपकी दया ही पर विजय का होना निर्भर वाला, विजयी, जिसने विजय पाई हो। है, जयश्री।
| विजे संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० विजय ) विजया--संज्ञा, स्त्री० (सं०) दुर्गा, सिद्धि, विजय, बिजे (दे०) । भाँग, भंग । " या विजया के सकल गुण, | विजैसार - संज्ञा, पु० दे० (सं० विजयसार ) कहि नहि सकत अन्त'-स्फु० । श्री कृष्ण साल जैसा एक बड़ा वृक्ष । जी की माला, १० मात्राओं का एक छंद. विजोग*---संज्ञा, पु० दे० (सं० वियोग ) ८ वर्णा का एक दणिक वृत्त (पिं०), वियोग। विजयदशमी।
विजोगीसंज्ञा, पु० दे० (सं० वियोगी) विजय-दशमी-संज्ञा, स्त्री० यौ० ( सं०) वियोगी।
भाश्विन या क्वार शुक्ल ( सुदी) दशमी विजोर-वि० दे० ( हि वि+ जोर-फा०) (हिंदों के त्यौहार या उत्सव का दिन)। बेज़ोर, कमज़ोर, निर्बल, निवल ।। विजयी-संज्ञा, पु० (सं० विजयिन् ) विजोहा, विज्जोहा-संज्ञा, पु० दे० (सं०
विजेता, जीतने वाला, जय प्राप्त । स्त्री० विमोह ) दो रगण वाला एक वर्णिक छंद, निजी विजयिनी । “ सो विजयी, विनयी, गुण
विमोहा, जाहा (दे०)। सागर"-- रामा।
विज्जु-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० विद्युत् ) विजयोत्सव--संज्ञा, पु० यौ० (सं०) विजया
बिजली । " फैलि गई सब ओर विज्जु दशमी का उत्सव, विलय होने पर उत्सव,
कैसी उजियारी"-रत्ना० । जयोत्सव।
विज्जुलता- संज्ञा, स्त्री० दे० यौ० (सं० विद्युत् विजात-- वि० (सं०) कुजात, वर्ण संकर । +लता) बिजली, विघुल्लता। संज्ञा, पु. (सं०) सखी छंद का एक भेद विज्जोहा-संज्ञा, पु० दे० (सं० विमोहा ) (पि०)।
| जोहा, विमोहा, विजोहा छंद (पिं०) ।
For Private and Personal Use Only