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वस्तुवाद १५६८
वही सूचम भाभास रहता है। "पाशीनमस्क्रिया वहाँ-श्रव्य० (हि० वह), तहाँ (ब० अव०) वस्तुनिर्देशोवापि तन्मुखम्"-काव्य.। उस ठौर, उस जगह, उहाँ (दे०)। घस्तुवाद-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) दृश्य संसार वहावी-संज्ञा, पु. (अ०) मुसलमानों का
जैसा दिखाई देता है वैसे ही रूप में उसकी एक संप्रदाय जिसे अब्दुल वहाब नदी ने सत्ता ठीक है यह दार्शनिक विचार ( न्या. चलाया था, वहाब मतानुयायी। वैशे०)।
वहिः .. अव्य० सं०) बाहर, जो भीतर न वस्त्र-संज्ञा, पु. (सं०) कपड़ा, बस्तर(दे०)। हो । “अंतर्वहिः पूरुषकाल रूपैः "वस्त्रभवन----संज्ञा, पु० यौ० (सं०) कपड़े का । भा. द. । यौ० - पहिरागत-बाहर
घर, वनगृह, डेरा, खेमा, तंबू , रावटी। श्राया हुवा। वस्त्रालय- संज्ञा, पु. यौर (सं०) वस्त्र का वहित्र- संज्ञा, ४० दे० ( सं० वोहिस्य ) घर, कपड़े का भंडार या कारखाना।
जहाज, पोत ।
वहिरंग-संज्ञा, पु० (सं०) किसी पदार्थ का वस्फ़-संज्ञा, पु. (अ.) गुण, हुनर, स्तुति,
। बाहिरी भाग, बाहिरी वस्तु, बाहिरी मनुष्य। प्रशंसा, विशेषता, अधिकता, सिफ़त ।। वस्ल- संज्ञा, पु० (अ०) दो वस्तुओं का मेल,
(विलो..- अंतरंग)। "प्रसिद्धं वहिरंगमिलाप, मिलन, संयोग, प्रसंग ।
मन्तरंगे"- की. व्या० । वि.- बाहिरी,
ऊपरी, ऊपर का। घह-सर्व० दे० ( सं० सः ) एक वचन, अन्य
वर्हिगत-वि० चौ० (सं०) जो बाहर गया पुरुष का सूचक एक संकेत-शब्द ( व्या.),
हो, निकला हुथा, बाहर का, वहिरागत । दूरवर्ती या परोक्ष सूचक एक वचन निर्देश
संज्ञा, पु० (सं०) वहिर्गमन । कारक या संकेत-शब्द (व्या०), कर्तृकारक में प्रथम पुरुष सर्वनाम । वि.वाहक
| वहिद्वार -- संज्ञा, पु. यौ० (सं०) बाहरी
फाटक, सदर फाटक, तोरण, सिंह द्वार । ( समास में )।
वहित-वि० (सं०) वहिर्गत । वहन-संज्ञा, पु० सं० घसीट या अपने
बहिर्मख-वि० (सं०) विमुख, पराङ्मुख । ऊपर लाद कर किसी वस्तु को कहीं से कहीं
वहिापिका-संज्ञा, स्त्री० (सं०) ऐसी पहेली ले जाना । वि०-वहनीय, वहमान,
जिसका उत्तर बाहर से देना पड़े । (विलो. वहित । " धापीनभारोहन प्रयत्नात् "--
-अंताधिका)। रघु० । उठाना, ऊपर लेना, बेड़ा, तरदा । वहिस्कृत-वि० (सं०) बाहर निकाला हुश्रा, (प्रान्ती)।
स्यक्त, त्यागा हुा । “जाति वहिप्कृत ते वहम-संज्ञा, पु. (अ०) भूठी धारण, भ्रम, नर जानहु"- स्फु० । व्यर्थ की शंका, मिथ्याधारण, झूठा संदेह । घहिष्करण, बहिष्कार-संज्ञा, पु० (सं०) वहमी-वि० (अ० वहम) वहम करने वाला, परित्याग, बाहर करना । वि०-हिप्करजो व्यर्थ संदेह में पड़ा हो ।
गाय। पहला-संज्ञा, पु० (दे०) आक्रमण, धावा, वहीं... अव्य० दे० ( हि० वहां नहीं ) उसी चढ़ाई।
स्थान पर, उसी जगह, तहीं, उहैं (ग्रा०)। वहशत-संज्ञा, स्त्री० (अ०) असभ्यता, वही--- सर्व० दे० (हि. वह -1-ही) अन्य
जंगलीपन, उजडता, अधीरता, चंचलता। पुरुष या दूरवर्ती निश्चय-वाचक संकेतवहशी-- वि० (१०) जंगली, बनैला, असभ्य, शब्द, जिसके सम्बन्ध में कुछ कहा गया हो जो पालतू न हो।
उस निर्दिष्ट पूर्व कथित व्यक्ति या वस्तु,
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