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वसमा
१५६७
वस्तुनिर्देश
वसमा - संज्ञा, पु० (अ०) उबटन, ख़िज़ाब, सूर्य, शिव, विष्णु, साधु- व्यक्ति, सज्जन,
तालाब, सर, छप्पय का ६६ वाँ भेद (पिं० ) । खुदा - संज्ञा, स्त्री० (सं०) भूमि, पृथ्वी, माली नामक राक्षस की पत्नी, जिसके निल, अनज, हर और संपाति ४ पुत्र थे । वसुदेव- रक्षा, पु० (सं०) यदुवंशियों के शूर कुल के राजा और श्रीकृष्ण जी के पिता और कंस के बहनोई | "विरोचमानं वसुदेव रैचत "भा० द० ।
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एक तरह का छपा कपड़ा । घसवास - संज्ञा, पु० (०) मोह या प्रलोभन, संदेह, संशय, भ्रम । वि० - वसवासी । षसह * संज्ञा, पु० सं० नृपभ ) बैल | "चले वसह चदि शंकर तबहीं स्फु० ।। वसा - संज्ञा, स्रो० (सं०) चरबी, मेद, वसा (दे०) ।
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वसिष्ठ - संज्ञा, पु० (सं०) एक प्राचीन वैदिक ऋषि जो ब्रह्मा के पुत्र थे, वेद, रामायण, महाभारत और पुराणों में इनका उल्लेख है, सप्तर्षि -मंडल का एक तारा, सप्तर्षियों मैं से एक ऋषि, रघुवंश तथा रामचन्द्र जी के गुरु । " तव वसिष्ट बहुविधि समभावा - रामा० । “ वसिष्ट धेनोरनुयायिनं ताम् - रघु० । वसिष्टपुराण - संज्ञा, ५० यौ० (सं०) एक उपपुराण, लिंगपुराण (एकमत) | सीका - संज्ञा, पु० ( ० ) वह धन जो सरकार के खजाने में इसलिये जमा किया नावे कि उसका व्याज उसके संबंधियों को मिलता रहे, ऐसे धन का व्याज, वृत्ति । वसीयत - संज्ञा स्त्री० ( ० ) कोई मनुष्य अपने मरने के समय अपनी धन-संपत्ति के प्रबंध और विभाग आदि के विषय में जो यवस्था लिख जाता है । वसीयतनामा - संज्ञा, पु० यौ० ( ० वसीमत + नामा - फा० ) वह व्यवस्था - लेख या प्रबंध-पत्र जो कोई पुरुष अपने मरते समय अपनी सारी संपत्ति के विभाग या प्रबंधादि के विषय में लिख जाता है।
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बसीला - पंज्ञा, पु० अ० ) श्राश्रय, सहारा, सहायता, द्वारा, जरिया. संबंध । वसुंधरा-पंज्ञा, त्रो० (सं०) अवनि भूमि, पृथ्वी, वसुधा, वसुमती ।
- संज्ञा, पु० (सं०) आठ देवताओं का गया या समूह, आठ की संख्या, धन, किरण, अनि, सोना, जल, कुवेर,
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वसुधा-संज्ञा, स्रो० (सं०) भूमि, पृथ्वी । 'बावरे वसुधा काकी भई " - स्फु० । वखुवारा संज्ञा, स्त्री० (सं०) जैनों की एक देवी, अलकापुरी, कुबेर नगरी ।
वसुमती - संज्ञा, स्त्री० (सं०) भूमि, पृथ्वी, एक वर्णिक छंद जिसके प्रत्येक चरण में छः वर्ण होते हैं (पिं० ) । “ नैकेनापि समंगता वसुमती नूनं स्वया यास्यति " - भोज ० । वसुहंस - संज्ञा, पु० (सं०) वसुदेव के पुत्र एक यादव ।
लब्ध,
घसूल - वि० (अ०) प्राप्त मिला हुआ, जो चुका या ले लिया गया हो । वसूली - संज्ञा खो० ( ० वसूल) दूसरों से वसूल या प्राप्त करने का कार्य, प्राप्ति,
धि | संज्ञा, स्त्रो० वसूलयात्री | वस्तव्य -संज्ञा, पु० सं०) बसने या ठहरने योग्य |
वस्ति - संज्ञा, स्त्री० (सं०) मूत्राशय, पेड़, पिचकारी ।
वस्तिकर्म -- संता, पु० यौ० (सं०) पिचकारी देना या लगाना ( लिंग या गुदा में ) । वस्तु - संज्ञा, खो० (सं० ) पदार्थ, सत्ता या
स्तित्ववान, गोचर पदार्थ, चीज़, नाटक का प्रख्यान या कथन, कथा वस्तु, सत्य । वि० - वास्तव, वास्तविक । वस्तुतः - अव्य० यथार्थतः ।
(सं० ) सत्यतः, सचमुच,
वस्तुनिर्देश - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) मंगला चरण का एक भेद जिसमें कथा का कुछ
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