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लुहार, लोहार
लुती लुहार, लोहार-संज्ञा, पु. दे. ( सं० लूका-संज्ञा, पु० दे० ( सं० लुक ) भाग की लौहकार ) लोहे की चीज़ बनाने वाला, लपट, ज्वाला, लुबाठा। स्त्री० अल्पा०लोहे के काम करने वाली एक जाति । लूकी। स्त्री० लहारिन । " गंधी और लुहार की, लूको-संज्ञा, स्त्री० (हि० लूका ) स्फुलिंग, देखो बैठि दुकान"-०।
। आग की चिंगारी, लूका, जलती लकड़ी। लुहारी, लोहारी-संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि० मुहा० -लूको लगाना-वैमनस्यकारी या लुहार ) लोहे की वस्तु बनाने का कार्य, क्रोधोत्पादक बात कहना। लुहार की स्त्री, लोहारिन ।
| लूख-संज्ञा, स्त्री० (दे०) लूक, प्राग, ज्वाला। लू-संज्ञा, स्त्री० दे० ( सं० लुक = जलना या । लूखा* - वि० दे० (सं० रूक्ष) रूखा, सूखा। हि० लौ - लपट ) ग्रीष्म ऋतु की उष्ण या लूगा- संज्ञा, पु० (दे०) लुगरा, धोती, गर्म वायु का झोंका। महा० - ल लगना। कपड़ा। " रोटी-लूगा नीके राखै भागेहू (मारना)-देह में तपी या उष्ण वायु के | की बेद भाखे , भला है है तेरो ताते जगने से दाह, ताप आदि होना।
श्रानंद लहत हौं”-बिन। लुपाठ, लूयाठा- संज्ञा, पु० दे० (सं० लोक लूट - संज्ञा, स्त्री. ( हि० लूटना) किसी के = कठ ) सुलगती हुई लकड़ो, चुपाती। धन को बल-पूर्वक मार कूट कर छीना जाना, रो. अल्पा--लूाठो।
डकैती, लूट का माल-असबाब । यौ० लूटलक-संना. सी० ( सं० ल 6 ) श्राग की खसोट । यो०-लूटमार लूटपाठलपट, जलती हुई लकड़ी, लूका। (खी० लोगों को अनुचित रूप से मार पीट, छीनलूकी) लुत्ती (प्रान्ती. ) । लू या गर्म झपट कर उनका धन प्रादि छीनना। यौ० वायु, ग्रीष्म काल की तप्स वायु का झोंका, -लूट खंद-लूट मार, लूटखसोट । लपट (दे०) । मुहा०—लूक लगना ! लूटक-संज्ञा, पु. ( हि० लूट ) लूटने वाला, (मारना )- शरीर में गर्म हवा का लुटेरा, ठग, कांति हरने वाला, कमरबंद । प्रभाव पड़ जाना या उसने झुलस जाना। लूटना-स० कि० (सं० लुट = लूटना ) ( लुक, तृका) लृको लगाना--भाग किसी का माल-असबाब या धन मार-पीट लगाना, जलती बत्ती या लकडी छलाना कर या डाँट फटकार बता कर छीन-झपट क्रोधकारी बात करना । संज्ञा, पु० (दे०) लेना, अनुचित रीति से किसी का धनादि उल्का, टूटा हुआ तारा । “दिनहीं लूक लेना, उचित से बहुत अधिक मूल्य लेना, परन बिधि लागे"-रामा० ।
ठगना, मुग्ध या मोहित करना । “ रमैया लूकटो-संज्ञा, स्त्री० (दे०) लोमड़ी, लोवा, तोरी दुलहिन लूटा बजार" - कबी० । लोखरी, लखिया, ( प्रान्मी.)। ___ सं० रूप० --- लुटाना, लुरावना (दे०) । लूकना*---सं० क्रि० दे० (हि. ) जलाना, प्रे० रूपलटवाना ) अपहरण, लटि। आग लगाना, लू से जलाना, लू लगाना पू. का. क्रि० (हि. लूटना ) लूटकर । अ० क्रि० दे० ( हि• लुकना ) छिपना, लुप्त लूटि*-- संज्ञा, खो० दे० (हि० लूट) होना, दुरना।
लूटना, उगना, छीन लेना । पू० क्रि० (व०) लूकबाहा-संज्ञा, पु. (दे०) श्राग-वाही, | लूटकर। होली के दिन का वह डंडा जिसके छोर पर लूत-लूता-संज्ञा, स्त्री. (सं० लूता) मकड़ी। बूट या बाली बाँध कर होली की श्राग में संज्ञा, पु० दे० (हि० लूका) लूका, लुभाठा । उसे छुलाते हैं।
| लूतो-संज्ञा, स्त्री० (दे०) चिनगारी, लुाठी।
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