SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 155
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अरघा *8 अरघा - संज्ञा, पु० (सं० अर्घ ) एक गाव - दुम पात्र जिसमें रखकर अर्घ का जल दिया जाता है, शिव लिंग के स्थापित करने का आकार, जलधरी, जलहरी, कुएँ की जगत पर पानी के लिये बनाया हुआ मार्ग, चवना । अरघान* —— अरघानि - संज्ञा, पु० ( सं० आघाण ) गंध, महक, सुगंधि, स्त्री० आघ्राण । - प० । " तेहि अश्वानि भौंर सब लुबुधे अरचन - संज्ञा, पु० दे० (सं० अर्चन ) पूजन, सम्मान | संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि० अड़चन ) कठिनाई | अरचना* - स० क्रि० दे० (सं० अर्चन ) www.kobatirth.org "" 56 पूजा करना, सम्मान करना । अरचा - संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० अर्चन ) पूजा, सम्मान । प्रचि ज्योति, प्रकाश, किरण । पू० का० क्रि० (दे० ) पूजि, पूजा करके । पू० का ० क्रि० ( अ + रचि ) न रचकर । प्ररचित - वि० दे० (सं० अचिंत ) पूजित, सम्मानित । वि० ( अ + रचित) अविरचित न बनाया हुआ । प्ररज - संज्ञा, स्त्री० दे० ( ० अर्ज ) विनय, प्रार्थना, विनती, निवेदन, चौड़ाई । वि० ( अ + रज ) रज-रहित, धूल- विहीन, विमल, स्वच्छ, निर्मल, साफ़ । 1 वह घोड़ा रज कीन्ह अनुसासन पाई अरजल-संज्ञा, पु० ( ० ) जिसके तीन पैर एक रंग के और एक और रंग का हो, ऐसा घोड़ा ख़राब होता है, ऐबी। वि० बदमाश, बुरा, सदोष, नीच जाति का, वर्णसंकर | तीन पांय तौ एक रंग हैं, एक पांय एक संज्ञा स्त्री० दे० (सं० अर्चि ) "> अरण्य रंग, अरजल घोड़ा ताहि कहत हैं, ता कह कहुँ न लीजै संग 1 "" Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परजना - स० क्रि० दे० ( ० अर्ज़ ) प्रार्थना करना, अर्ज़ करना, विनय करना । राजति - वि० दे० ( सं० अर्जित ) उपार्जित, पैदा की हुई, कमाई हुई, प्राप्त की हुई । वि० रजनीय उपार्जनीय | संज्ञा, पु० दे० अरजन - - ( सं० अर्जन ) उपार्जन | अरजो- संज्ञा स्त्री० दे० (अ० अर्जी ) आवेदन-पत्र प्रार्थना-पत्र, निवेदन-पत्र, प्रार्थना, 8 ) ( ० अर्ज़ ) प्रार्थी, अर्ज़ करने वाला । "गरजी है अरजी करी, टुक मरजी करि दे " -रसाल । 22 1 "अरजी हमारी आगे मरजी तिहारी है। अरझना - ० क्रि० (दे० ) अरुना -- उलझना, फसना, बना, अटकना । 32 agroनी है करन की डार मैं 66 ऊ० श० । अरमा - वि० पु० (दे० ) उलझा, स्त्री० अभी । अरमन - संज्ञा स्त्री० (दे० ) करुनि - (दे० ) उलझन, फंदा, जटिलता । अरकाना - स० क्रि० ( दे० ) उलझाना, फँसाना | प्ररणा - संज्ञा, स्त्री० ( दे० ) जंगली भैंस । अराण, भरणी - संज्ञा, स्त्री० (सं० ) are विशेष, जिसे घिस कर आग निकालते हैं, अग्नि-धारक काष्ट, एक वृक्ष, गनियार, अँगे, सूर्य, यज्ञ में से याग निकालने का एक काठ का बना हुआ यंत्र, श्रग्निमंथ, अरनी- दे० । अरण्ड -संज्ञा, पु० (सं० ) रेंड, थंडी । अरण्य - संज्ञा, पु० (सं० ) वन, जंगल, कायफल, कानन, संन्यासियों के १० भेदों में से एक भेद विशेष । For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy