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अंगड-खंगड
अंगराग
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मुहा०-अंगछूना, शपथ खाना, अंग- अंगभंगी। वि० -- टूटे अंगवाला, अपाहज, टूटना, अँगड़ाई आना, अँग तोड़ना- लँगड़ा, लूला, लुंजा। जंभाई लेना, अंग लगना, लगाना- अंगभंगी-संज्ञा, स्त्री. (सं० ) स्त्रियों के आलिंगन करना, कराना, ( भोजन का) वशीभूत या मोहित करने की शारीरिक शरीर का पुष्ट होना, काम में आना, हिल क्रिया या चेष्टा । जाना, अंगी करना, स्वीकार करना ।-वि० | अंगभाव-संज्ञा, पु. ( सं० ) सङ्गीत या अप्रधान, गौण, उलटा।
नृत्य में नेत्र, भृकुटी, हाथ, पैर आदि अंगों अंगड-खंगड-- वि० ( अनु०) बचा-खुचा, से मनोविकारों का प्रकाशन । गिरा-पड़ा, टूटा-फूटा सामान। | अंगभून--वि० (सं० ) अङ्ग से उत्पन्न, अंगड़ाई-संज्ञा, स्त्री० (हिं०, कि० अँगड़ाना) अन्तर्गत, भीतरी, अन्तर्भत --- संज्ञा पु० देह टूटना, पालस्य से जंभाई श्राना। पुन । अंगभू-संज्ञा, पु० (सं० --बेटा। मु०-अँगड़ाई तोड़ना-पालस्य में अंगमर्द -- संज्ञा, पु० (सं० ) हड्डियों का रहना, काम न करना ।
फटना, दर्द होना, हड़ फूटन, हाथ-पैर दबाने अँगड़ाना -+कि० अ० ( सं० अँग अटन) | वाला नौकर, सेवक ।
सुस्ती से अंग ऐंठना, देह तोड़ना। अंगरक्षा -- यौ० संज्ञा स्त्री० (सं० -- अंग अंगण-संज्ञा, पु० (सं०) आँगन, सहन । -- शरीर + रक्षा-बचाव) यौगिक शब्द हो अंगत्राण - संज्ञा० यौ० पु. (सं० अंग+' कर एक प्रकार के वस्त्र विशेष के अर्थ में
त्राण) शरीर-रक्षक, अँगरखा, कुरता, कवच । रूदि हो गया है । शरीर की रक्षा, देह का अंगद -संज्ञा, पु० (सं०) बाहु का गहना, बचाव, एक प्रकार का सिला हुआ देह पर विजायट, बाजूबन्द बालि वानर का पुत्र, पहिनने का वस्त्र या कपड़ा, अँगरखा (दे०) लक्ष्मण का एक कुमार ।
अँगरवा-( तद् यौ० दे० ) संज्ञा, पु०अंगदान--संज्ञा, पु० (सं० ) पीठ दिखाना, (सं०-अंग-देह - रक्षक ---बचाने वाला)युद्ध से पीछे भगना, तनुदान, सुरति, अंगा, चपकन, अचकन, एक प्रकार का वस्त्र रति ( स्त्री के हेतु )।
जिसमें बाँधने के लिए बंद लगे रहते हैं।। अंगना -- संज्ञा, स्त्री० (सं०) सुन्दर देह | अँगरा-संज्ञा, पु० (तद्०, ग्रा.)---[सं.-. वाली, कामिनी, सार्वभौम नामक उत्तर अंगार ]--दहकता हुया कोयला, बैलों के दिग्वी हाथी की हथिनी। ती
पैर का एक रोग। अँगना ( दे० ) संज्ञा० पु०-आँगन । अंगराग-संज्ञा, पु. ( सं० ---- अंग = अँगनाई-संज्ञा, स्त्री०, (दे० ) अँग नैया देह + राग-प्रेम, रंग--शरीर के लिए प्रेम(संज्ञा स्त्री०)
पूर्ण व्यापार रंगना ) रूढ़ि शब्द होकरअंगन्यास-संज्ञा, पु. (सं० ) मंत्र पढ़ते चन्दन, केसर, कस्तूरी, कपूर आदि का
हुए किसी अंग का स्पर्श करना ( तंत्रशास्त्र) शरीर पर सुगन्धित लेप, उबटन, बटना, अंगपाल-( पु० अंगपालक ) संज्ञा- २-वस्त्राभूषण, ४-शरीर-शोभा के लिए यौ० (सं०) शरीर-रक्षक, अंग-रक्षक, अंग देश महावर श्रादि जैसे पदार्थों की रँगने वाली का राजा।
सामग्री, ५-स्त्रियों की पंचांग-सजावट की अंग-भंग-संज्ञा, यौ० पु० (सं०) अवयव का वस्तुयें ----माँग के लिए सिंदूर, मस्तक के टूटना, नाश होना, शरीर के किसी अंग की लिए रोली, कपोल-तिल की रचना के लिये हानि-स्त्रियों के मोहित करने की चेष्टा- कस्तूरी श्रादि काले रंग की वस्तु; केसर
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