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राउ-राऊ
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कह नृप बहुरि
उतारना - दृष्टि दोष मिटाने के लिये राई और नमक को उतार कर आग में डालना | राई से पर्वत करना - राई का पहाड़ बनाना - थोड़ी बात को बहुत बढ़ा देना । राई काई करना - टुकड़े टुकड़े कर डालना, नष्ट करना | संज्ञा, पु० दे० (सं० राजा ) राजा, श्रेष्ठ । सुनहु मुनिराई " - स्फु० । राउ - राऊळ - संज्ञा, पु० दे० राजा । "राउ सुभाय सुकर कर विवश पुनि पुनि कह राऊ राउत | संज्ञा, पु० दे० (सं० राजा बहादुर, वीर पुरुष, एक जाति, राजा के वंश का । राउर - संज्ञा, पु० दे० (सं० राजपुर ) अंतःपुर रनवास, रनिवास । सर्व०, वि० ( ब० ) आप का, श्रीमान् का । " जो राउर अनुशासन पाऊँ - रामा० । राउल संज्ञा, पु० दे० (सं० राजकुल ) राजा, राजकुल में उत्पन्न व्यक्ति ।
-राम० ।
स्त्री० (दे०)
राकस - संज्ञा, पु० दे० ( सं० राक्षस ) राक्षस । स्त्री० राकसिन । " भलिभूजि कै राकस खाकस कै, दुख दीरघ देवन कौ दरि दौं १. राकसिन- राकसी-संज्ञा, राजसी (सं०) रातसिन राका संज्ञा, त्रो० (सं०) पूर्णिमा पूर्णमासी की रात्रि | " उयो सरद राका ससी " - वि० । राकापति - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) चंद्रमा । राकेश - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) चंद्रमा, राकेस (दे० ) । राक्षस - संज्ञा, पु० (सं० ) असुर, दैत्य, निशाचर, दुष्ट जीव । स्त्री० राक्षसी । 'पपात राक्षसो भूमौ" भट्टी० । एक प्रकार का व्याह जिसमें युद्ध से कन्या छीन ली जाती है ।
राख - संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० रक्षा ) भस्म, खाक, विभूति । भा० श० को०- १८६
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(सं० राजा ) लीन्हा-प्रेम
रामा० ।
राज + पुत्र ) क्षत्रियों की
रागनी - रागिनी
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राखना - स० क्रि० दे० (सं० रक्षण ) रखना, आरोप करना, बचाना, रक्षा या रखवारी करना, छल करना, छिपाना, रोक रखना, जाने न देना, ठहरा लेना, बताना । राउ राम-राखन-हित लागी -रामा० । राखी संज्ञा, सी० दे० (सं० रक्षा ) रक्षाबंधन का डोरा, रक्षा, रखिया (दे० ) | संज्ञा स्त्री० दे० ( हि० राख ) भस्म, खाक | " राखी मरजाद पाप-पुन्य की सो राखी गनै' – रत्ना० ! स० क्रि० (दे०) रक्षा करना, बचाना, छिपाना, रखना । " तोहिं हरि, हर, अज सकहिं न राखी " - रामा० । राग - संज्ञा, पु० (सं० ) प्रीति, प्रेम, स्नेह, मत्सर, द्वेष, ईर्ष्या, पीड़ा, कष्ट, किसी प्रिय या इष्ट वस्तु के प्राप्त करने की इच्छा, सांसारिक सुखों की लालसा या चाह, एक वर्णिक छंद (पिं), रंगविशेष, लाल रंग, लाली, महावर, अलता (प्रान्ती० ) अंगराग, देह में लगाने का सुगंधित लेप | मुकलित होत ज्यों, परसिप्रात-रवि- राग " मति० । धुनि विशेष में बैठाये स्वर, गाने की ध्वनि, जिसके ६ भेद हैं:- भैरव, मलार, मेघ, श्री, सारंग, हिंडोल, बसंत, दीपक ( मतभेद है) । मुहा० - अपना (अपना) राग अलापना - अपनी ही बात कहना | "कौ० व्या० | " रंजते अनेनेति रागः
कुवलय
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मुहा० यौ० -राग-लाग ( बैठना ) - सिलसिला, ठीक विधान या प्रबन्ध बनना । रागताग- बिगड़ना - प्रबन्ध का बिगड़ना । राग लगाना- किसी बात का सिलसिला जारी करना ।
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रागना - अ० क्रि० दे० (सं० राग) अनुरक्त होना, अनुराग करना, रँगजाना, मग्न, लीन या रंजित होना. डूबना । स० क्रि० दे० (सं० राग ) अलापना, गाना | रागनी - रागिनी -संज्ञा, त्री० (सं०) संगीत के ६ रागों में से प्रत्येक राग के ५ वाँ भेद, श्रतः छत्तीस रागिनी हैं फिर प्रत्येक रागिनी