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रंगीला
रंगनवनि
-रंग मारना-विजय पाना, बाज़ी। रंगरसिया--संज्ञा, पु० यौ० ( हि० रंग+ जीतना । रंग रातना-गहरा प्रेम या रसिया) संसक-विलासी, भोग-विलास करने अति मित्रता । रंग लगना-अधिकार वाला। फैलाना, प्रभाव जमाना।
रंगराज. रंगराट-संज्ञा, पु० (सं०) श्रीकृष्ण रंगअवनि-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) रंगभूमि __ जी । " रमया सह रंगराट"-स्फु.।
"रंगप्रवनि सय मुनिहिं दिखाई -रामा०। रंगराता-वि० यो० (हि.) प्रेम या अनुराग रंगक्षेत्र--संज्ञा, पु० यौ० (सं०) रंगभूमि, से पूर्ण । '' अंगराती चली रंगराती भली।"
नाटक की जगह, तमाशे या जलसे का स्थान । रंगराग--संज्ञा, पु. यौ० (सं०) श्रामोदरंगत-संज्ञा, स्त्री० (हि. रंग+ त-प्रत्य० ) प्रमोद, रसरंग, रागरंग ।।
मानंद, मज़ा, अवस्था, दशा, रंग का भाव। । रंगरावा -- वि० (हि०) रँगा हुआ, प्रसन्न । रंगतरा-संज्ञा, पु० । हि० रंग) मीठी और रंगरूट-संज्ञा, पु० दे० (अं० रिक्रट ) पुलिस
बड़ी नारंगी, संगतरा, संतरा (दे०)। या सेना का नया सिपाही, किपी काम का रंगना-स० कि० ( हि० रंग । ना-प्रत्य० ) प्रारम्भ करने वाला प्रादमी। रंग में डुबो कर किसी वस्तु पर रंग चढ़ाना, रंगरूप --संज्ञा, पु० यौ० (सं०) श्राकार-प्रकार, रंगीन करना, निज प्रेम में किसी को चमक दमक, रङ्ग ढङ्ग । फंसाना, स्वानुकूल करना । अ० क्रि० - रंगरेज-संज्ञा, पु० (फ़ा०) कपड़े रगने वाला। किसी पर मोहित या प्रासक्त होना। | " छीपी श्री रंगरेज़ तें नित्य होति तकरार" (स० रूप-रंगाना, प्रे० रूप-रंगवाना )। - स्फु० । नी० रंगरेजिन | संज्ञा, स्त्रीरंगनाथ-संज्ञा, पु० । सं०) एक विष्णु-मुर्ति, रंगरेजी।
दक्षिण में वैष्णवों का मुख्य तीर्थ । रंगरेली--संज्ञा, स्त्री० (हि.) आमोद-प्रमोद, रंगबिरंगा--वि० यौ। (हि. रंग-बिरंग) कई क्रीडा, खेल । रंगों वाला, विचित्र, चित्रित ! रंगवाई, रंगाई-संज्ञा, स्त्री० ( हि० रंगवानारंगभवन-संज्ञा, पु० यौ० (सं०. रंगमहल, रंगाना ) रंगने की क्रिया या मज़दूरी। रंगभोन (दे०), भोग-विलास करने का रंगशाला- संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) नाटक स्थान । “रंगमौन भीतर पलंग पर संग खेलने का स्थान, नाट्यशाला, प्रेक्षागृह होत"-फु० ।
( नाट्य०)। रंगभूमि--संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) तमाशे रंगसाज-संज्ञा, पु. यौ० (फा०) वस्तुओं या जलसे का स्थान, नाटक खेलने की। पर रंग चढ़ाने वाला. रंग बनाने वाला, जगह, नाट्यशाला, अखाड़ा. यद्धस्थल, रंगसाज (दे०)। संज्ञा, स्त्री० --रंगसाजी । मल्लशाला, रणभूमि। " रंगभूमि जब सिय रंगस्थल, मंगस्थली-संज्ञा, पु० स्त्री०) पगुधारी"-रामा० ।
यौ० (सं०) उत्सव या क्रीड़ा-कौतुक का स्थान, रंगमहल-संज्ञा, पु० यौ० (हि० रंग+ महल रंगशाला। म०) रंगभवन, रंगमंदिर, भोग-विलास रंगी-वि० ( हि० रंग + ई-प्रत्य० ) आनंदी, करने का स्थान, रंगागार, रंगसदन। मौजी. प्रसन्नचित्त, विनोदी। रंगरली-- संज्ञा, स्त्री० (हि० रंग-। रलना ) रंगीन - वि० (फा०) रंगदार, रंगा हुआ, भामोद-प्रमोद, कीड़ा, खेल ।
विलास-प्रिय, श्रामोद प्रिय, मजेदार । संज्ञा, रंगरस - संज्ञा, पु. यौ० सं०) श्रामोद- स्त्री०-रंगीनी।। प्रमोद, क्रीड़ा, खेल।
रंगीला-वि० (हि० रंग+ ईला-प्रत्य०)
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