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रंग
Recommonsaan
रंग कृपण । “मनहु रंक धन लूटन धाये"- | प्रगट करना । यौ०-रस-रंग-क्रीड़ा-कौतुक, रामा० । संज्ञा, स्त्री०-रंकता।
काम-क्रीड़ा, प्रेम-क्रीड़ा । मुहा०--रंग रंग-संज्ञा, पु. (सं०) नृत्य-गीत या अभिनय | जमाना (जमना) या बाँधना (बँधना) का स्थान, नाच-गान, नाच-गान का -अातंक बैठाना ( बैठना), प्रभाव डालना स्थान, आकार-भिन्न किसी दृश्य वस्तु | (पड़ना)। रंग दिखाना-प्रभाव, अातंक का नेत्रानुभव जन्य गुण, युद्ध-स्थल, वर्ण या महत्व दिखाना। रंग देखना दिखाना) (वस्तु, देह या मुख का ), किसी वस्तु के | -परिणाम या निष्पत्ति देखना (दिखाना)। रंगने का पदार्थ, रंगत, राँगा धातु । रंग- रंग लाना-फल, गुण या प्रभाव दिखाना। शाला-(सं०-"रंजते यस्मिन्-रंगम् )। "रंग लायेगी हमारी फ़ाक़ा-मस्ती एक मुहा०-(चेहरे का ) रंग उड़ना या दिन" -- ग़ालि० । खेल, कौतुक, क्रीडा, उतर जाना- चेहरे की कांति या श्री का । उत्सव, आनंद । यौ०-रंग-रलियाँ (रँगमिट जाना, हत-श्री या हतप्रभ होना । रेलियाँ)--श्रामोद-प्रमोद, मौज, रंगरेली। रंग निखरना (खिलना)-चेहरे का रंग रलना--मौज करना, श्रामोद-प्रमोद साफ या चमकदार होना। रंग बदलना ! करना मुहा०-रंग में भंग पड़ना--अप्रसन्न या क्रोधित होना। (मुख का) श्रानंद में विघ्न पड़ना (होना) । युद्ध, समर, रंग फीका पड़ना-- चेहरे की कांति का दशा, हाल । जैसे-क्या रंग है। मुहा०-- मलिन हो जाना। (गिरगिट सा) रंग। रंग बिगड़ना (बिगाड़ना) हालत ख़राब बदलना- किसी बात पर स्थिर या स्थायी होना करना) । रंग मचाना-संग्राम में खूब न रहना, बात बदलना, दशा परिवर्तन लड़ना। रंग (रानि) रचाना ( मचाना) करना । मुहा० --- रंग उड़ जाना-रंग -होली में खूब रंग फेंकना, मन की उमंग, फीका या उदास पड़ जाना जवानी, यौवन, श्रानंद, मज़ा । मुहा०-रंग जमनायुवावस्था । मुहा०-रंग चना (आना, अति अानंद होना, आतंक या महत्व या टपकना)-पूर्ण यौवन का विकास थाना । प्रभाव फैलना या होना, खूब मज़ा होना। रंग करना-खुशी करना, 'पानंद में समय रंग मचाना-(शुद्ध में ) धूम मचाना। बिताना । रंग चढ़ना- नशे में चूर होना। रंग रचना-महत्व या प्रभाव रखना। रंग चूना या टपकना-गौवन उभड़ना, रंग रचना-उत्सव करना। रंग होना जवानी प्रगट होना। सुषमा, शोभा, छवि, -अातंक या प्रभाव होना । दशा, अद्भुत, सुन्दरता, छटा, प्रभाव, असर. अातंक । कांड, दृश्य, प्रसन्नता, व्यापार, कृपा, प्रेम, मुहा०- रंग खिल उठना-कांति का ढंग, रीति, चाल । यौ०-राग-रंगबढ़ जाना। रंग या जाना (आना)- श्रामोद-प्रमोद, नाच-गान । “राग-रंग गुण-वृद्धि होना, विशेषता या जाना, मज़ा मनहिं न भावै' ... गिर० । यौ०-रंग ढंग श्रा जाना । रंग चढ़ना (चढ़ाना)- --- हाल, दशा, तौर-तरीका, चाल-ढाल, प्रभाव पड़ना (डालना)। “सूरदास की कारी व्यवहार, लक्षण, बरताव । मुहा०-रंग कमरि चढ़ न दूजो रंग'-- रंग जमना में भंग होना ( करना, डालना)-श्रसर या प्रभाव पड़न', अातंक छा आनंद या अच्छे काम में विघ्न पड़ना जाना । रंग फीका होना ( पड़ना )- ( करना या डालना )। रंग काछना - प्रभाव या कांति का कम होना । गुण महत्व ढंग पकड़ना । प्रकार, भाँति, चौपड़ की का प्रभाव, धाक । रंगदिखाना-प्रभावातंक | गोटियों के दो हिस्सों में से एक । मुहा०
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