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युष्मद्
योगनिद्रा युष्मद्-सर्व० (सं०) तू, तुम । “ समस्य। इतना, इत्तो (ग्रा.)। " येतो बड़ी
माने यम्मदस्मद् "-कौ० व्या० । समुद्र है जगत पियासो जाय"-रही। य-अव्य० दे० ( हि० यों) यों। येहू*--भव्य दे० (हि० यह + हू ) येऊ युक-संज्ञा, पु० (सं०) जू, मत्कुण, (व.) ये या यह भी। " लोक-वेद सब खटमल।
कर मत येहू"--रामा० । युत-संज्ञा, पु० दे० (सं० यूति) मेल, मिला- यो-यों-अव्य० दे० (सं० एवमेव ) ऐसे, घट।
__इस भाँति, इस प्रकार से, इस तरह पर । यूथ-संहा, पु० (सं० ) झंड, समूह, वृंद। योंही --- अव्य० (हि. यों+ही) ऐसे ही, सेना, दल, जथ (दे०)। यूथ यूथ मिलि- बिना किसी विशेष प्रयोजन के, इसी प्रकार कुं० वि० । यौ०-यथेश-सेनापति । या तरह से, व्यर्थ ही, बिना काम । यूथप-यूथपति --- संज्ञा, पु० (सं०) सेनापति। योग-संज्ञा, पु. ( सं०) मिलना, मेल, "पदम अठारह यूथप बंदर "-रामा० । संयोग, उपाय, शुभ समय, ध्यान, प्रेम, युथिका-संज्ञा, स्त्री० (सं०) जुही का फूल। संगति, स्नेह, धोखा, छल, प्रयोग, यूनान-संज्ञा, पु० दे० (ग्रीक-प्रायोनिया)। औषधि, धन, लाभ, नियम, साम, दाम, साहित्य और सभ्यता के लिये प्रसिद्ध महाद्वीप दंड और भेद नामक चारों उपाय, यूरुप का एक प्राचीन प्रदेश । " यूनान | संबंध, सम्पत्ति और धन कमाना और का सिकन्दर फारिस का शाहदारा'- बढ़ाना, वैराग्य, ध्यान और तप, दो कु. वि.।
या कई राशियों या संख्याओं या अंकों का पनानी-वि० (यूनान---ई--प्रत्य.) यूनान जोड़ (गणि), एक छंद (पिं०)। ताइघात, का, यूनान-संबंधी यूनान-वासी । संज्ञा, स्त्री० सुभीता, कुछ विशेष अवसर (फ० ज्यो०), यूनान की भाषा, यूनान की चिकित्सा- मुक्ति का उपाय, चित्त की वृत्तियों का प्रणाली, हकीमी।
रोकना । "योगश्च चित्तवृत्ति निरोधः" यूप-संज्ञा, पु. ( सं० ) यज्ञस्तंभ, बलि- - (पतं.)। मन को एकाग्र कर ब्रह्म में पशु के बाँधने का खंभा । . कनक यूप योग द्वारा लीन होने का विधायक एक दर्शन समुच्छ्य शोभिनः ''-रघु.)
शास्त्र । यूपा-संज्ञा, पु० दे० (सं० चूत ) जुआ, योगक्षेम--संज्ञा, पु. (सं०) नवीन वस्तु की प्र-कर्म।
प्राप्ति और प्राप्त की रक्षा, जीवन निर्वाह, यूष-संज्ञा, पु. ( सं० ) जूस (दे०), पथ्थ । कुशल क्षेम, कुशल-मंगल, राज्य का सुप्रबंध । यूह-संज्ञा, पु० दे० (सं० यूथ ) झुड, “नियोग ऐम प्रात्मवान् " . भ० गी०। समूह, समुदाय, वृंद।
। योगज-संज्ञा, पु० (सं०) अलौकिक संनिकर्ष । ये-सर्व० दे० ( हि० यह का आदर-सूचक । वि०-योग संबंधी। था, बहु. १०) यह सब, । “ केशव ये योगतत्व-- संज्ञा, पु० यौ० (सं.) एक उपनिषद् । मिथिलापति हैं"--राम ।
योगत्व-संज्ञा, पु० (सं०) योग का भाव । येई -सर्व० दे० (हि. यह+ ई-प्रत्य०) | योगदर्शन-संज्ञा, पु० यौ० (स०) षट् दर्शनों यही, येही।
में से एक जिसके कर्ता पतजलि ऋषि हैं । येऊो-सर्व० दे. (हि० ये-ऊ-प्रत्य०) योगनिद्रा-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) युगान्त पह भी।
में विष्णु की नींद, जिसे दुर्गा मानते हैं येतो-एतो*-वि० दे० (हि० एतो ) ( पुरा०)। मा० श. को०-१३
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