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मोष
मोहरा मोष-संज्ञा, पु. द. ( स० मोक्ष ) मोक्ष, मोहनमाला ---संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) मूंगे मुक्ति । " मोहूँ दी मोष, ज्यों भनेक । धौर सोने के दानों की माला । मोहनअधमन दयो"-वि०
माला सोफ, गंज, कंठा, मान कंठ निराजे" मोषण ---संज्ञा, पु० (सं०) लूटना, हरना, चोरी -कु० वि० । करना, बध करना, माता, सामना (दे०)। माहना---- अ० कि० दे० (सं० महिन) रीझना, मोह-संज्ञा, पु० (०) देह और जगत की। मोहित या भासत होना, मूर्छित होना । वस्तुओं को अपना और सत्य जानने की स० कि..... अपने ऊपर अनुरक्त करना, दुखद बुद्धि या भावना, भ्रांति, भ्रम, मध या भोहित करना, लुभा लेना, धोखा अज्ञान, प्रेम, प्यार, आसक्ति, ३३ संचारी देना था श्रम में डालना ! संज्ञा, पु० दे० भावों में से एक ( काव्य० ) भय, दुख, (सं० मोहर) श्री कृष्ण ! “सोहना तिहारी विकलता, मूळ । “मोह सकल ग्राधिन । माधुरी मुराकानी- सूर०।। कर मूला।" "जो न मोह घस रूप निहारी'बाहनास्त्र - संज्ञा, पु० यौ० (सं.) शत्रु को -रामा० ।
मूच्छित करने वाला बाग या अस्। मोहक-वि० सं०) मोहोत्पादक, मोह उत्पा मोहिनी - संज्ञा स्त्री. (सं० ) विपण का करने वाला, लुभाने वाला, मनोहर,
वह सी रूप जिसे उन्होंने अकृत बाँटते मोहकारी, मोहकारक। " मोइन मुरली
समय (सिंधु-मंथन के बाद ) दैत्यों के धुनि मोह करै सारखी है सब अजवाला "---
मोहित करने को धारण किया था, दशीमना।
करण मंत्र, एक वर्णिक छंद,"देखि मोहिनीमोहज-वि० (सं०) मोह से उत्पन्न, माहजनित, माहजन्य ।
रूप दैत्य गण भये तुरत बश"-स्फु० । मुहा० मोहठा-- संज्ञा, पु० (म०) १० वी का एक
---मोहनीपानना (जाना-माया या वृत्त (पिं० ), बाला।
जादू से वशीभूत करना । " जिन निज रूप मोहड़ा, महडा--संज्ञा, गु० दे० (हि० मुह -- मोहिनी हारी'- रामा० । मोहन पाना डा-प्रत्य०) किसी वस्तु का खुला भाग -लुभा जाना. भोहित होना, पिय लगना, या मुंह, अगला या ऊपरी भाग, सोहरा : माया! वि० श्री.--भोहित करने वाली,
अति सुन्दरी । यौ० महिनी-मरति । मोहताज-वि० दे० (अ० मुहताज़) मुहताज,
माहर --संज्ञा. सी० (फा०) चिन्ह, 'अदर, कंगाल, चाहने वाला।
नामादि को दबा कर छापने का ठप्पा. मोहन-- संज्ञा, पु० (सं० जिसे देख कर चित्त
कागज़ श्रादि पर लगी मुद्रा या लाप, मुग्ध हो जावे, श्री कृारा, एक वर्णिक वृत्त
अशरफ़ी। (पिं०) किसी को मूर्छित या वशीभूत करने
मोहरा--संज्ञा, पु० दे० 'हि. गुह + रा-श्य०) का एक तांत्रिक प्रयोग, शत्र के अचेत करने ।
किमी पान का मस्त्र या सुला हिस्सा, किसी का एक अस्त्र, मदन के ५ बाणों में से एक। वि० (स०) खी. मोहन) मोह पैदा करने !
वस्तु का प्रागला या ऊपरी भाग, सेना
की अग्रिम पंक्ति, सेना के धावे का मुख । वाला। " मोहन-जुख मन-सोहन जोहन जोग"-साल।
(स्त्री० सोहरी । नुहा० सोहरा लेनामोहनभोग-संज्ञा, १० यौ० (हि.) एक सामना करना, भिड़ जाना, युद्ध या प्रतितरह का हलुवा, श्राम ।।
इंदिता करना । कोई द्वार का छेद जिससे मोहन-मंत्र--संज्ञा, पु० यौ० (सं०) मोहने । कोई पदार्थ बाहर निकले, चोली आदि या वशीभूत करने का मंत्र, वशीकर मंत्र की गोट ! संज्ञा, पु. (फा० मोहरः) शतरंज
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