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मैदा
१४४०
मोंछ, मोंका पुरुष का स्त्री के साथ समागम, भोग, स्त्री- मैमा-संज्ञा, स्त्री० (दे०) विमाता, सौतेली प्रसंग, विषय, संभोग।
माता, मइय्या (मा.) माता। मैदा-संज्ञा, पु. (फा०) बहुत महीन श्राटा। मैया-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० मातृका! माँ,माता. मैदान--संज्ञा, पु. ( फ़ा० ) लम्बा-चौड़ा महतारी, सइय्या (ग्रा०) । " कहै कन्हैया सपाट या समतल भूमि, क्रीडा स्थल । “यहि ! सुनो नपोदा मैया धीरज धारौ” - लाल। विधि गये गम मैदाना"-- रामचं० । मुहा० मेरा-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० मृदर प्रा० मिअर -.-मैदान में प्राला (उतरना)-सामने क्षणिक) साँप के विष की लहर । थाना । मैदान साफ़ होना (करना)- मैरा-संज्ञा, पु. ( ग्रा०, प्रान्ती. ) खेत में कोई बाधा न होना ( बाधा हटाना),
मचान । शत्रुओं को रण में मार डालना या भगाना!
भैल-संज्ञा, पु० दे० ( सं० मालिन ) मल. मैदान मारना - बाज़ी जीनना, रण या
गंदगी, गर्द गुबार । महा०-हाथ-पैर का युद्ध क्षेत्र । मुहा०—मैदान करना -
__ मैल-तुच्छ वस्तु विकार, दोष । मुहा० संग्राम करना, लड़ना। मेदान मारना
-(किसी के प्रति ) मैल रखना (मन ( पाना)-युद्ध में, विजय प्राप्त करना ।
में ) शत्रुता या द्वेष रखना । मैदान लेना -- रण-क्षेत्र में शत्रु का सामना
मैलखोरा-वि० यौ० (हि० मैल --- ख़ोर-फा ) करना, जीतना।
जिस पर मैल शीघ्र न जमे तथा जान न पड़े। मैन-संज्ञा, पु० दे० (सं० मदन ) कामदेव,
मैला - वि० दे० (सं० मलिन, प्रा. मइल ) मदन, मोम, मयन (दे०)।
गंदा, मलिन, अस्वच्छ, गंदा. दूषित, सवि. मैनका-संज्ञा, स्त्री० (दे०) मेनका, अप्परा।
कार, दुगंध-युक्त। संज्ञा, पु०-गलीज, कूड़ा. मैन फल-सज्ञा, पु० दे० यो० (सं० मदनफल)
कर्कट, मल, विष्ठा । मुहा०-मन मैला एक वृक्ष और उसका फल ( श्रौषधि )।
करना-उदासीन होना । “ परसत मन मैनसिल--- संज्ञा, स्त्री० दे० (स० मनः शिलः)
। मैला करै” -रही। पत्थर जैसी एक औषधि ।।
| मैला-कुचैला--वि० यौ० (हि० मैला+ मैना-संज्ञा, स्त्री० दे० ( सं० मदना ) श्याम !
| कुचैला = गंश वस्त्र-सं० ) मैले कपड़े वाला,
__बहुत ही मैला या गंदा । रंग का एक पक्षी जो सिखाने से मनुष्य की
| मैलापन-संज्ञा, पु० (हि० मैला --- पन-प्रत्य०) बोली बोलता है, सारिका । संज्ञा, स्त्री० दे०
मलिनता, गदापन । ( सं० मैना, मैनका ) पार्वती की माता।
मैहर-मइहर -- संज्ञा, पु० (दे०) घी में मिला "हिसगिरि संग बनी जनु मैना'- रामा० ।
महा। मेनका अप्सरा । संज्ञा, पु० (दे०) राजपूताने मों* --- अव्य० दे० (हि० में, मैं । सर्व दे० की मीना नामक एक जाति ।
(सं० मम ) मेरा । “कहा भयो जो वीछुरे, मैनाक- संज्ञा, पु. (सं०) एक पहाड़ जो मों मन तो मन साथ '-- वि० । विभ० हिमालय का पुत्र कहाता है । (पुरा०) हिमा- (ब्र०) में (अधिवारण)। लय की एक चोटी । “तुरत उठे मैनाक तब" मोगरा-संज्ञा, पु० दे० (हि. मोगर) मोगरा. - रामः।
फूल, मुंगरा (प्रान्ती० )। मैनावली-संज्ञा, स्त्री. (०) एक वणिक, मोगरी-मगरी-संज्ञा, स्त्री० (प्रान्ती०) कूटने छंद, (पिं० )।
। को लकड़ी का एक बेलन ।। मैमंत*-वि० दे० ( सं० म्दमत ) मदमत्त, मांद, मांडा--संज्ञा, स्त्री० दे० (हि० मूंछ) मतवाला, मदोन्मत्त, अभिमानी। । मूंछ, मुच्छ, म्बाछा (ग्रा.)।
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