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मायादेवी
१४००
मारजन के प्राज्ञानु पार कार्य करने वाली उसो की मार-संज्ञा, पु. (सं०) कामदेव, धतूरा, कल्पित शक्ति, जादू . इन्द्रजाल, छल, सृष्टि विष । संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. मरना) निशाना, का मुख्य कारण, प्रपंच, एक वर्णिक छंद, चोट, श्राघात, मार-पीट । अव्य० दे० ( हि० इन्द्रवना छंद का एक भेद (पि.), मय मारना ) बहुत, अत्यंत । *-संज्ञा, स्त्री० दे० दानव की कन्या जो सूर्पनखा, त्रिशिरा और (हि० माला ) माला। खरदूषण श्रादि की माता थी। किसी देवता | मारकंडेय - संज्ञा, पु० दे० ( सं० मार्कंडेय ) की शक्ति , लीला या प्रेरणा प्रादि, दुर्गा, मृकंड के पुत्र एक अमर ऋषि, इनका एक बुद्ध की माता ! - संज्ञा, स्त्री. ( हि० माता, । पुराण । सं० मातृ ) माता, माँ । *-संज्ञा, स्त्री० दे० | मारक - वि० (स०) मार डालने या नाश ( सं० ममता ) मया (दे०), ममत्व, दया, करने वाला, संहारक, किसी के प्रभाव थादि कृपा प्रात्मीयता का भाव ।
का मिटाने वाला। मायादेवी- संज्ञा, स्त्री० दे० (सं०) माया. मारका---संज्ञा, पु. १० (अ० मार्क) निशान, बुद्ध की माता।
चित, विशेषता सूचक चिह्न । संज्ञा, पु. मायाकृत - संज्ञा, पु० (सं०) संसार, इन्द्र- (अ०) लड़ाई संग्राम, युद्ध, बड़ी और महत्व जाल। वि० माया से निर्मित ।
पूर्ण बात या घटना। मायापति-संज्ञा, पु. (सं०) परमात्मा, ब्रह्म। मार-काट-संज्ञा, स्त्री० यौ० (हि० मारना + मायावाद--संज्ञा, पु० यौ० (सं०) अद्वैतवाद, काटना ) संप्राम, युद्ध, लड़ाई, जंग, मारनेब्रह्म के सिवा अन्य सब पदार्थों के अनित्य काटने का भाव या कार्य ।
और नश्वर मानने का सिद्धान्त । मारकीन- संज्ञा, पु० दे० ( अं० नैनकिन् ) मायावादी-संज्ञा, पु. ( सं० मायावादिन् ) एक तरह का कोरा मोटा कपड़ा, लट्ठा । वह व्यक्ति जो ब्रह्म के अतिरिक्त सब सृष्टि मारकट-मारकुटाई-- संज्ञा, स्त्री० दे० यौ० को माया या प्रपंच-भ्रम या थऽत्य समझता (हि० मारना | कूटना ) मारना कृटना, हो, ब्रह्मवादी, अद्वतवादी।
धुनाई-पिटाई। मायाविनो-संज्ञा, स्त्री. (सं.) छल-कपट मारकेश---संज्ञा, पु० यौ० (सं.) मार डालने करने वाली, प्रचिनी, ठगिनी।
वाला ग्रह, लग्न से दूसरे और सातवें घर का मायावी--- संज्ञा, पु० (सं० मायाविन् ) फरेबी, स्वामी ( ज्यो०)। धोखेबाज, छली, प्रपंची, कपटी, एक दानव मार खाना-- अ० कि० दे० ( हि० मारना । जो मय का पुत्र था, परमात्मा , जादूगर । खाना) पिटना, मारा-कूटा जाना । स्त्री०-मायाविनी । 'भवन्ति माविषु ये न मारग -संज्ञा, पु० दे० ( सं० मार्ग ) राह, मायिनः "---कि० ।
रास्ता, पंथ, धर्म, मत | "मारग से जा मायास्त्र--संज्ञा, पु० यौ० (सं०) एक अस्त्र कहें जोइ भावा"--रामा० । मुहा०जिसका चलाना रामचन्द्र जी ने विश्वामित्र मारग मारना-रात में लूट लेना । से सीखा था ।
मारग लगना--राह पकड़ना, रास्ता मायिक-वि० (सं०) मायावी, छली, बना- लेना।
वटी, जाली. माया से बना हुप्रा । मारगन-संज्ञा, पु० दे० (सं० मागण) तीर, मायी-संज्ञा, पु० (सं० मायिन् ) मायावी। बाण, शर, भिखमंगा, भिखारी, भिक्षुक । मायुस-वि० (अ०) निराश, हताश । संज्ञा, मारजन-संज्ञा, पुर. दे० (सं० मार्जन ) स्नो०-मायूसी।
परिष्कार, सफ़ाई, नहाना।
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